राममंदिर में प्रयुक्त नागर शैली को मिली प्रतिष्ठा
नरेंद्र शर्मा
अयोध्या में बन रहा राममंदिर पारंपरिक नागर शैली में बनाया जा रहा है। इसी के साथ ही इन दिनों मंदिरों की नागर शैली, लोकप्रियता के अपने चरम पर पहुंच गई है। वैसे यह भारत में पारंपरिक हिंदू मंदिर वास्तुकला की दो मुख्य शैलियाें में से एक है। नागर शैली के अलावा मंदिरों की वास्तुकला में जो दूसरी बहुत मशहूर शैली है, वह है द्रविड़ शैली। उत्तर भारत के ज्यादातर मंदिर नागर शैली के बने हैं, जबकि दक्षिण भारत के मंदिर द्रविड़ शैली के। भारत में नागर शैली की वास्तुकला का सबसे पुराना और जीवित मंदिर उत्तर प्रदेश के भीतरगांव का मंदिर है, जो आज भी जीवंत स्थिति में है। यह मंदिर 5वीं शताब्दी ईस्वी मंे गुप्त साम्राज्य के दौरान बना था। यह छत और ऊंचे शिखर वाला सबसे पुराना टेराकोटा हिंदू मंदिर है। इस मंदिर के अंदर गणेश, विष्णु, शिव और दुर्गा की मूर्तियां हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार में एक गजबहार छत है और इतने साल गुजर जाने के बावजूद इस मंदिर की आज भी एक-एक ईंट सुंदर और आकर्षक आलेखनों से रचित है।
उत्तर भारत की इस खास मंदिर निर्माण शैली में कोई भी मंदिर पत्थर के एक चबूतरे पर बनाया जाता है और इसमें एक से ज्यादा शिखर देखने को मिलते हैं। हालांकि, प्रारंभिक मंदिरों में केवल एक ही शिखर होता था। इन मंदिरों में हमेशा गर्भगृह उच्चतम शिखर के नीचे होता है। भारत के कई मशहूर मंदिर नागर शैली के हैं जैसे खजुराहों के मंदिर, विशेषकर खजुराहों का कंदरिया महादेव मंदिर।
भुवनेश्वर स्थित लिंगराज मंदिर, जिसे भारत के सबसे सुंदर और ऊंची छत वाला मंदिर माना जाता है। नागर शैली के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों में सोमनाथ का मंदिर, आबू पर्वत स्थित राजस्थान में दिलवाड़ा के मंदिर, खजुराहो के बाकी सभी मंदिर, कोर्णाक का सूर्य मंदिर, उड़ीसा का ही जगन्नाथपुरी मंदिर और यहीं का मुक्तेश्वर महामंदिर, इस नागर शैली के प्रसिद्ध उदाहरण हैं। लेकिन इस शैली के सबसे उत्कृष्ट आधुनिक उदाहरण के रूप में महाबोधि मंदिर को लिया जाता है। यह बिहार के गया नगर में स्थित है और विश्व धरोहर के रूप में सम्मानित है। इसी जगह गौतम बुद्ध ने ईसा पूर्व छठी शताब्दी में ज्ञान प्राप्त किया था।
मंदिरों की नागर और द्रविड़ शैली में जो कुछ भिन्नताएं साफ तौर पर देखी जाती हैं, उनमें एक तो यही है कि नागर शैली में जहां कई मीनारें होती हैं, वहीं द्रविड़ शैली के मंदिरों में एक ही मुख्य मीनार होती है। नागर शैली में जहां केंद्रीय मीनार का आकार घुमावदार होता है, वहीं द्रविड़ शैली में मीनार का आकार पिरामिड जैसा होता है। द्रविड़ शैली में प्रवेश द्वार लंबे होते हैं, जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। जबकि नागर शैली में प्रवेश द्वार होते ही नहीं। नागर शैली के मंदिर ऊंची चारदीवारी से घिरे नहीं होते, साथ ही नागर शैली की सबसे खास विशेषता यह होती है कि समूचा मंदिर एक विशाल चबूतरे की वेदी पर बनाया जाता है और उस तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां होती हैं। जबकि द्रविड़ शैली के मंदिरों में ऐसा चबूतरा नहीं होता। द्रविड़ शैली के मुख्य मंदिरों में कांचीपुरम स्थित कैलाशनाथ मंदिर है। इसे दक्षिण भारत का सबसे शानदार और प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है। द्रविड़ शैली 9वीं और 12वीं शताब्दी में चोल साम्राज्य के शासनकाल में विकसित हुई। यह शैली मूलतः कृष्णा और कावेरी नदियों के बीच में फली-फूली।
तमिलनाडु और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में अधिकतर मंदिर द्रविड़ शैली के ही हैं। इन मंदिरों के गर्भगृह में 4 से अधिक भुजाएं होती हैं। इस शैली में मंदिर का आधार भाग वर्गाकार होता है तथा गर्भगृह के ऊपर का शिखर प्रिज्मवत या पिरामिडनुमा होता है। इन मंदिरों मंे क्षैतिज विभाजन के लिए अनेक मंजिलें होती हैं। द्रविड़ शैली के मंदिरों के शिखर के ऊपरी हिस्से पर कलश की जगह स्तूपिका बनी होती है। इस शैली के मंदिर काफी ऊंचे होते हैं और उनका प्रांगण भी बहुत बड़ा होता है, जिसमंे कई कक्ष, जलकुंड और छोटे मंदिर होते हैं। जबकि नागर शैली हिमालय और बिंध्य के बीच की मंदिर निर्माण शैली है। नागर शैली में नागर शब्द नगर से लिया गया है। नागर शैली की अन्य खासियतों में एक विशेष खासियत यह है कि इस शैली के मंदिर वास्तुशास्त्र के आधार पर निर्मित होते हैं और इनका मूल आधार चतुष्कोणीय होता है। पूर्णतः विकसित नागर शैली के मंदिर में गर्भगृह, मंडप तथा अर्धमंडप होते हैं।
इन दो प्रसिद्ध मंदिर निर्माण शैलियों के साथ ही एक तीसरी शैली भी काफी मशहूर है, जिसे वेसर शैली कहते हैं। यह कृष्ण नदी और बिंध्य के बीच के क्षेत्र में लोकप्रिय शैली के रूप में विकसित हुई। वास्तव में कर्नाटक के चालुक्य वंश के मंदिर वेसर शैली के मंदिर माने जाते हैं। वेसर शैली के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में होयसला मंदिर, चेन्नाकेशव मंदिर और द्वार समुद्र तथा बेलूर मंदिर हैं।
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