बार-बार की परीक्षा से आजिज है नाचीज
आलोक पुराणिक
बचपन में जिस क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल में पढ़ा हूं, उसकी प्रार्थना का अंत कुछ यूं होता थाmdash; हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा। मेरे में कोई दोष रहा होगा-मेरी प्रार्थना की सुनवाई न हुई, हर साल के अंत में फाइनल परीक्षा से बच न पाया और बुराई से भी कहां बच पाया, बड़ा होकर हिंदी का लेखक बन गया, भले आदमी कहते हैं-यह कौन-सा काम है, क्या काम पकड़ लिया है, कोई ढंग का काम न मिला तुमको।
परीक्षा में न ला, परीक्षा को इंग्लिश में टेस्ट कहा जा सकता है, हमें टेस्ट में न ला, हमें टेस्ट मैच में न ला, अब यह प्रार्थना भारतीय क्रिकेट टीम करती दिख रही है, हालांकि वह स्कूल में नहीं है।
टेस्ट मैचों से बचा-यह प्रार्थना भारतीय क्रिकेट टीम की है। पांच दिनों तक लगातार खेलना बहुत मुश्किल है। ट्वेंटी-ट्वेंटी बीस ओवरों के खेल का स्टेमिना पांच दिनों तक चलाना मुश्किल काम है। पुराने वक्त की बात है गावस्कर, बायकाट जैसे खिलाड़ी कई कई दिन खेल जाते थे। अब पांच सात ओवर खेलना खिलाड़ियों को लांग टर्म प्रोजेक्ट लगता है। परीक्षा में न ला, यह बात आम तौर पर कई नेता चुनावों के ठीक पहले कहते पाये जाते हैं। लोकसभा चुनाव करीब एक साल में होने वाले हैं, परीक्षा में न लाने की प्रार्थना चल रही है, पर यह प्रार्थना भारत में निरर्थक साबित होती है। पाकिस्तान में इस तरह की प्रार्थनाओं की कामयाबी का इतिहास है, तब ही वह देश नाकामयाब हो गया है। तो परीक्षा से हर कोई बचना चाहता है, पर बच पाना मुश्किल है।
ट्वेंटी-ट्वेंटी के सुपरस्टार प्लेयर टेस्ट मैच में कोई हारे-थके दिखते हैं। यह सच है कि आदतें खराब हो गयी हैं। दर्शक तक पांच दिनों का मैच देखने में कन्नी काट जाते हैं। टेस्ट मैचों में स्टेडियम खाली दिखते हैं, लोग आकर देखने को तैयार नहीं हैं। घर पर टीवी पर देखने को तैयार नहीं हैं। पांच दिन का टेस्ट मैच दरअसल ऐसे क्लासिकल म्यूजिक की तरह है, जिसकी तारीफ में लंबे-लंबे कसीदे सब काढ़ सकते हैं, क्लासिकल म्यूजिक ही असली म्यूजिक है, यह भी कह सकते हैं। पर ऐसा कहने वाले तीन घंटे बैठकर राग दरबारी सुनने को तैयार न होंगे। टेस्ट मैच ही असली क्रिकेट है-यह कहने वाले भी असली क्रिकेट देखने न आते। लोगों को अब लंबे चलने वाले घटनाक्रमों की आदत नहीं रही। बिपरजॉय तूफान की गहमागहमी लोगों में एक दिन रही, टीवी चैनलों पर उसकी कवरेज एक दिन ही देखने को तैयार हुए दर्शक। अगले दिन फिर वही देखना चाहते थे दर्शक-सचिन पायलट नयी पार्टी बनायेंगे या पुराने तरीके से गहलौत को परेशान करेंगे। सचिन पायलट ने अपना नाटक लंबा खींचा, तो पब्लिक उसे भी देखना बंद कर देगी। पुरानी बात को दिखाना है, तो कम से कम दिखाने का ढंग तो नया लाओ।