धरती तले रहस्य अनसुलझे
भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स तीसरी बार अंतरिक्ष की राह पर हैं। सिर्फ सुनीता विलियम्स ही नहीं, फरवरी 2024 तक दुनिया के 681 इंसान अंतरिक्ष कही जाने वाली दहलीज पार कर चुके हैं। इनमें ज्यादातर वैज्ञानिक और कुछ पर्यटक हैं। इसी तरह 610 लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने इस दहलीज के नजदीक पृथ्वी की निचली कक्षा (ऑरबिट) तक पहुंचने का पराक्रम किया है। यानी धरती के ऊपर आकाश और फिर अंतरिक्ष में आना-जाना कोई बहुत मुश्किल नहीं है। लेकिन बात अगर धरती के अंदर की यात्रा की हो, तो ऐसा कोई वाकया सुनाई-दिखाई नहीं पड़ता। क्या कभी याद पड़ता है कि किसी इंसान ने उस पृथ्वी के केंद्र की यात्रा की है जो उसका अपना घर है।
हां, ऐसा हुआ। पर सिर्फ कल्पनाओं में। दुनिया के क्लासिक विज्ञान गल्पकार जूल्स वर्न ने पहली बार फ्रेंच भाषा में जब जर्नी टू द सेंटर ऑफ अर्थ लिखा, तो लगा कि उन्होंने जिस जर्मन वैज्ञानिक प्रोफेसर ओटो लिडेनब्रॉक के जरिये निष्क्रिय ज्वालामुखी के रास्ते पृथ्वी के केंद्र तक पहुंचने की कहानी रची है, वह एक दिन हकीकत बन जाएगी। लेकिन यह एक कहानी यानी गल्प थी। अगर धरती के अंदर की दुनिया को पाताल कहें तो, हकीकत में किसी भी शख्स का पाताल लोक में उतरना नामुमकिन है। इसकी कुछ वजहें हैं जिनके रहते इंसान धरती से दूर अंतरिक्ष की अतल गहराइयों में तो गोते लगा सकता है, लेकिन उसी ग्रह के भीतर कुछ सौ मीटर के आगे पांव धरना रखना उसके लिए मुश्किल है, जिसकी सतह पर वह हर वक़्त चहलकदमी करता रहता है। इसकी वजह है कि धरती के केंद्र का तापमान और दबाव इतना अधिक होता है कि वहां ठोस हीरा भी द्रव में बदल जाए। लोहे-निकिल और कुछ अन्य तत्वों से निर्मित इस केंद्र (कोर) का औसत तापमान 5430 डिग्री सेंटिग्रेड (9800 डिग्री फॉरेनहाइट) होता है, जो हमारे सूर्य की सतह के टेंपरेचर जितना ही है। ऐसे में, सवाल है कि जब कोई जगह इस तरह की हो तो क्या उसे हम पाताल नहीं कह सकते?
पृथ्वी के गर्भ में चंद्रमा और प्लूटो
सतह से 5 हजार किलोमीटर भीतर चंद्रमा से तनिक ही छोटे या कहें कि प्लूटो के तकरीबन बराबर ठोस धातुओं से बने इस केंद्र को कुछ वैज्ञानिक अपनी गणनाओं के आधार पर पृथ्वी का इंजन-रूम और ऐसा टाइम कैप्सूल कहते हैं जिसमें एक साथ कई खूबियां हो सकती हैं। जैसे, अरबों वर्ष पूर्व पृथ्वी के निर्माण के समय जितना पुराना यह केंद्र अपने भीतर वे सारे रहस्य समेटे हुए हैं जो धरती के विकास की लाखों-करोड़ों साल पुराने अतीत के किस्से बयान कर सकता है। साथ ही, धातुओं के द्रवीय रूप से घिरे इस कोर की वजह से पैदा चुंबकीय क्षेत्र यानी मैग्नेटिक फील्ड धरती पर जीवन की संभावनाओं को साकार करने में अपनी भूमिका निभा रहा है।
बेशक, पृथ्वी का भीतरी कोर पूरी तरह ठोस है, लेकिन इसके चारों ओर मौजूद पिघले हुए लोहे और निकिल की एक मोटी परत कायम है। अपने तरल रूप में यह परत बिजली का संचालन करने के लिए एक आदर्श माध्यम है। पृथ्वी के घूर्णन के साथ जब यह परत चारों ओर घूमती है तो उस वक्त बिजली के एक जेनरेटर की तरह काम करती है। यह विद्युत धाराएं पैदा करती है, जिससे स्वाभाविक रूप से एक बड़ा चुंबकीय क्षेत्र पैदा हो जाता है। वैसे तो यह चुंबकीय क्षेत्र अपने आप में एक बड़ा रहस्य है। इसकी तमाम गुत्थियों को सुलझाया जाना बाकी है, लेकिन यह चुंबकीय क्षेत्र सतह पर वह आवश्यक गर्माहट उत्पन्न करता है जिससे जिंदगी पनपती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र इधर-उधर घूम सकता है, अनजान कारणों से पलट भी सकता है, लेकिन पृथ्वी निर्माण की अरबों वर्ष की अब तक की प्रक्रिया में इसने ज्यादातर सकारात्मक काम ही किए हैं। जैसे यह बाह्य अंतरिक्ष से आने वाले तमाम विकिरणों को फिल्टर करता है और हानिकारक सौर ऊर्जा को एक सुरक्षित दूरी पर रोकने में एक बेशकीमती ढाल बनने की अपनी भूमिका निभाता है।
हालांकि बीते करीब दो सौ वर्षों में चुंबकीय क्षेत्र और पृथ्वी के आंतरिक कोर का घूर्णन हमेशा बदलता रहा है, इससे कई आशंकाएं भी पैदा हुई हैं। जैसे क्या इससे भूकंपों की तीव्रता और बारम्बारता में कोई इजाफा तो नहीं हुआ है। या फिर मौसम चक्र में कोई बड़ी तब्दीली इस वजह से तो नहीं आई है। धुरी पर निरंतर घूमते कोर के कारण गतिशील चुंबकीय क्षेत्र से जुड़ा एक सवाल यह भी पैदा हुआ है कि अगर किसी वजह से कोर ने अपनी जगह पर घूमना बंद कर दिया तो क्या। सोशल मीडिया पर ऐसी कई अफवाहें पिछले कुछ वर्षों में छाई रही हैं कि पृथ्वी के कोर ने घूमना बंद कर दिया है। ऐसी अफवाहों को एक प्रमुख साइंस मैगजीन नेचर जियोसाइंस ने स्पष्ट किया। इस पत्रिका में एक वैज्ञानिक वॉन ऑरमैन ने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पृथ्वी का कोर रुक गया हो या आने वाले वक्त में यह घूमना बंद कर दे। बल्कि यह अभी भी घूम रहा है और इसकी गति तेज है। वैसे भी, जिस दिन कोर एक स्थान पर रुक जाएगा, तो इसे बताने के लिए पृथ्वी पर कोई जीवित नहीं होगा। हो सकता है कि ऐसी स्थिति में पृथ्वी की सतह पर मौजूद हर चीज उड़कर अंतरिक्ष में पहुंच जाए। वॉन ऑरमैन के मुताबिक पृथ्वी का भीतरी धात्विक कोर युगों-युगों तक ठंडा नहीं होगा और यह घूमना भी बंद नहीं करेगा। अपने दावों के समर्थन में ऑरमैन ने बीते छह दशकों के भूकंपों के कारण पैदा हुई भूगर्भीय तरंगों का अध्ययन किया। इससे उन्हें पता चला कि 1970 के दशक में पृथ्वी की तुलना में उसके केंद्र यानी कोर ने थोड़ा तेज घूर्णन शुरू किया था। लेकिन पृथ्वी की चाल से तालमेल बिठाने के क्रम में यह वर्ष 2009 के दौरान थोड़ा मंद पड़ गया। माना जा रहा है कि कोर की गति में अब अगली कोई बड़ी तब्दीली 15 साल बाद 2040 में आ सकती है। इस शोध का नतीजा यह है कि पृथ्वी का केंद्र (कोर) औसतन हर 60-70 साल के अंतराल में अपने घूर्णन की गति में परिवर्तन लाता है।
कोर की संरचना के रहस्य
हालांकि पृथ्वी के कोर तक अभी तक न कोई पहुंचा है और न ही निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना है। लेकिन प्रेक्षणों और अध्ययनों के आधार पर इसके कई रहस्य खुल चुके हैं। पता चला है कि सतह से 5 हजार किलोमीटर (3100 मील) भीतर लोहे और निकिल धातु की बेहद सघन-ठोस गेंदुनमा संरचना वाला आंतरिक कोर (केंद्र) अपनी धुरी पर तेजी से घूम सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह चारों ओर से बाह्य कोर से घिरा हुआ है जोकि अत्यधिक गर्म तरल धातुओं से निर्मित है। ठोस आंतरिक कोर का व्यास 1220 किलोमीटर है। यह जिस बाह्य कोर की चारदीवारी से घिरा है, उसे लेमैन सीस्मिक डिस्कॉन्टिन्यूइटी कहा जाता है। इस कोर का तापमान 4 हजार से 4700 डिग्री सेंटिग्रेड (7200 से 8500 डिग्री फॉरेनहाइट) रहता है।
असल में, पृथ्वी की सतह और केंद्र कई लेयर्स वाले केक की तरह तीन परतों में विभाजित है। इसकी सबसे ऊपरी बाहरी परत क्रस्ट कहलाती है जो बसाल्ट और ग्रेनाइट नामक ठोस चट्टानों से बनी हुई है। इसके बाद वाली अंदरूनी परत को मेंटल कहते हैं। यह क्रस्ट और कोर के बीच वाली जगह में स्थित है और इसकी मोटाई 2900 किलोमीटर है। इस परत में लोहे और मैग्नीशियम की ठोस चट्टानें हैं और ये अति सघन व गर्म होती हैं। सबसे अंदर है कोर- जो पृथ्वी का केंद्र है। यह दो हिस्सों में बंटा हुआ है- 1. तरल रूप वाला बाह्य कोर और 2. लोहे और निकिल से बना हुआ ठोस आंतरिक कोर।
कहने को तो पृथ्वी का कोर (केंद्र) एक ठोस संरचना है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके अंदर एक गर्म कॉफी जैसी संवहन (कन्वेक्शन) की प्रक्रिया चलती रहती है। इससे यह ग्रह धड़कता हुआ प्रतीत होता है। संवहन की यह प्रक्रिया तब होती है, जब तरल पदार्थों या गैसों की यहां-वहां मूवमेंट के कारण गर्मी एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानांतरित होती है। गर्म कॉफी में सतह पर काफी झाग यानी फोम होता है, लेकिन वाष्पीकरण की वजह से कॉफी का ऊपरी हिस्सा जल्दी ठंडा हो जाता है। ठंडे होने के साथ-साथ कॉफी सघन होती जाती है। इसी तरह पृथ्वी ही नहीं, इस ब्रह्मांड के हरेक ग्रह और तारे की ऊपरी सतह ठंडी होते जाने के साथ-साथ ठोस होती जाती है। वैज्ञानिक समुदाय लंबे समय से आंतरिक कोर के अंदर संवहन की परिकल्पना कर रहा है और दावा है कि यह प्रक्रिया सतत जारी है। चूंकि संवहन (कन्वेक्शन) निरंतर हो रहा है, इसलिए आतंरिक कोर पृथ्वी के “धड़कते हुए दिल” की तरह प्रतीत होता है।
अब आखिरी सवाल यह कि वैज्ञानिकों-भूगर्भवेत्ताओं को पृथ्वी के हजारों किलोमीटर अंदर बेहद घनी चट्टानों और गर्म तरल धातुओं के द्रव के बीच स्थित कोर से जुड़ी जानकारियां कैसे मिल जाती हैं। दरअसल, दुनियाभर में मौजूद भूकंपमापी यंत्रों का नेटवर्क है , जो जलजले के दौरान पैदा होने वाली तरंगों का विश्लेषण करके डाटा जमा करता है। भूकंप के कारण पैदा हुई ऊर्जा से पनपी ये तरंगें आंतरिक और बाह्य कोर से गुजरते हुए आती हैं और कई संकेत देती हैं। इनमें से मुख्यतः दो तरंगें आती हैं- पी वेव्स (तरंगें) और जे वेव्स। पी-तरंगें सबसे आम हैं, लेकिन आंतरिक कोर से गुजरकर आने वाली जे-तरंगें खास हैं पर उनका पता लगाना मुश्किल है। यही वे भूकंपीय तरंगें हैं जो आंतरिक कोर की संरचना-बनावट के आधार पर धीमी या तेज हो जाती है। इनके विश्लेषण से वैज्ञानिक पता लगा सकते हैं कि जिस स्थान से ये आ रही हैं, वह जगह तरल, ठोस, गैसीय या क्रिस्टलीकृत है। यूं तो अब भूगर्भवेत्ता जे-तंरगों के अनुसंधान के लिए सुपर कंप्यूटरों का इस्तेमाल करने लगे हैं, फिर भी वैज्ञानिक मत है कि असल में जे-तरंगों का पता लगाना भूसे के ढेर में सूई ढूंढ़ने जैसा है।
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