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पर्यावरण संरक्षण के साथ संगीत का उत्सव

06:42 AM Sep 20, 2024 IST
पर्यावरण संरक्षण के साथ संगीत का उत्सव
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धीरज बसाक
देश-विदेश के कला प्रेमी पर्यटकों को पूरे साल अरुणाचल प्रदेश के जिस एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का इंतजार रहता है, वह है—सितंबर माह के अंत में आयोजित होने वाला चार दिवसीय संगीत समारोह यानी ‘जीरो फेस्टिवल ऑफ म्यूजिक’। यह फेस्टिवल अरुणाचल प्रदेश की शानदार जीरो घाटी में आयोजित होता है। इसे स्वदेशी अपतानी जनजाति द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसे प्रकृति के साथ अपनी निकटता जताने के लिए जाना जाता है। इस साल यह जीरो फेस्टिवल ऑफ म्यूजिक 26-29 सितंबर तक मनाया जाएगा।
संगीतिक स्वतंत्रता का परिदृश्य
जीरो फेस्टिवल ऑफ म्यूजिक सिर्फ एक संगीतमय उत्सव भर नहीं है, बल्कि यह स्थिरता, सांस्कृतिक विविधता और यहां तक कि सामुदायिक अंतरंगता का उत्सव भी है। यह 4 दिवसीय उत्सव, बांस जैसी स्थानीय रूप से प्राप्त सामग्री का उपयोग करके पारंपरिक प्रथाओं को प्राथमिकता देता है। इंडी और मेनस्ट्रीम संगीत क्षेत्र के कुछ सबसे बड़े नामों को समेटे हुए, 2024 के इस समारोह के लिए लाइनअप में कोलकाता से फकीरा, अरुणाचल प्रदेश से डोबोम डोजी कलेक्टिव, स्वीडन से हॉलो शिप, केरल से गौवली, दिल्ली से परिक्रमा, गोवा से पिंक मॉस और बंगलुरु से हनुमानकाइंड आदि ग्रुप्स हैं।
आत्मा को झकझोर देने वाले संगीत को सुनते हुए तारों को निहारना, इस फेस्टिवल में सर्वाधिक आनंद के क्षण होते हैं। पर्यटक महोत्सव स्थल पर कैम्पिंग का आनंद लेते हुए तब अपने आनंद को पराकाष्ठा पर ले जाते हैं, जब वे अपतानी (एक स्थानीय जनजाति) आर्टिस्ट से संगीत का आनंद लेते हुए टैटू बनवा रहे होते हैं। वास्तव में जीरो फेस्टिवल ऑफ म्यूजिक पूर्वोत्तर भारत के महत्वपूर्ण राज्य अरुणाचल प्रदेश की जीरो घाटी में आयोजित एक बाहरी संगीत समारोह है, जो कि भारत में संगीतिक स्वतंत्रता के परिदृश्य को प्रदर्शित करता है।
नामी फनकारों का संगीत
इस उत्सव की स्थापना साल 2012 में बॉबी हानो, मेनहोपॉज़ और गिटारवादक अनूप कुट्टी द्वारा की गई थी। इस महत्वपूर्ण संगीत समारोह में आज तक एक से बढ़कर एक संगीत कलाकार हिस्सा ले चुके हैं, जिनमें ली रानाल्डो, स्टीव शेली, दामो सुजुकी, शाय बेन तजुर, मोनो डिवाइन, एसिड मदर्स टेम्पल, लूव मजॉ, शायर एन फंक जैसे संगीत कलाकार शामिल हैं। इंडस क्रीड, पीटर कैट रिकॉर्डिंग कंपनी, मेनहूपॉज, गुरु रेबेन मशांगवा तथा बाड़मेर बॉयज आदि भी इसका हिस्सा हो चुके हैं।
जैसा कि बताया जा चुका है कि यह उत्सव चार दिनों तक चलता है और इसका समूचा आयोजन अपतानी लोगों द्वारा किया जाता है। इस त्योहार के बुनियादी ढांचे का निर्माण पूरी तरह से स्थानीय सामग्री से किया जाता है। यह दुनिया का सबसे पर्यावरण अनुकूल फेस्टिवल होता है। इस फेस्टिवल को भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश के पर्यटन मंत्रालय द्वारा समर्थन प्राप्त है।
उत्सव के अनूठे मंच
इस उत्सव में तीन मंच होते हैं, एक मंच का नाम होता है डोनी यानी सूर्य, दूसरे मंच का नाम होता है पिइलो यानी चंद्रमा और तीसरे का नाम ताकर उर्फ तारा होता है। ये तीनों मंच स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए जाते हैं और यह पूरी तरह से बांस के बने होते हैं।
प्लास्टिक प्रतिबंध, स्वच्छता प्राथमिकता
अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों में प्रचलित एनिमिस्ट डोनी पोलो आस्था के मुताबिक इस उत्सव में एकल प्लास्टिक का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता होता है यानी यहां प्लास्टिक पूरी तरह से प्रतिबंधित है। साथ ही यहां हिस्सा लेने वाले हर व्यक्ति को साफ रहने और गंदगी न फैलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

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विभिन्न संगीत शैलियां
इस प्रसिद्ध संगीत समारोह में रॉक से लेकर लोक तक कई तरह की संगीत शैलियों को प्रस्तुत किया जाता है और इस मंच से पूर्वोत्तर भारत के उभरते हुए कलाकारों को एक्सपोजर दिए जाने पर फोकस किया जाता है। इस समारोह की प्रसिद्धि दिन पर दिन बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि पिछले कुछ संस्करणों में यहां पंडित विश्व मोहन भट्ट, ज्योति हेगड़े, सुकन्या रामगोपाल तथा डॉ. कमला शंकर जैसे शास्त्रीय संगीतकारों ने भी अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। इस उत्सव में खास तौर पर सोनिक यूथ के ली रानाल्डो, दामो सुजुकी, एसिड मदर्स टेम्पल, मोनो और नुब्या गार्सिया जैसे अंतर्राष्ट्रीय कलाकार भी शामिल हुए हैं।
परमिट की आवश्यकता
इस शानदार सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए गैर-अरुणाचल प्रदेश के भारतीयों को इनर लाइन परमिट और विदेशियों को संरक्षित परमिट की जरूरत होती है। ये सभी परमिट भारत के सभी प्रमुख पर्यटन कार्यालयों में उपलब्ध हैं।
कैसे पहुंचें
यहां पहुंचने के लिए अगर हवाई मार्ग से आ रहे हैं तो ईटानगर के हवाईअड्डा पहुंचना होगा और अगर रेलगाड़ी द्वारा यहां पहुंचना है तो ईटानगर में नाहरलागुन रेलवे स्टेशन यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है। इ.रि.सें.

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