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सीधे चेतना पर दस्तक देते मुक्तक

07:05 AM May 05, 2024 IST
सीधे चेतना पर दस्तक देते मुक्तक
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सुभाष रस्तोगी
महावीर सिंह ‘वीर’ के सद्यः प्रकाशित प्रथम मुक्तक-संग्रह ‘वीर के तीर’ में कुल 501 मुक्तक संगृहीत हैं। वीर के विभिन्न विषयों पर संगृहीत यह मुक्तक-संग्रह अपने समवेत पाठ में जीवन के एक व्यापक परिदृश्य को रेखांकित करते हैं। कवि की मानें तो उन्हें कविता का संस्कार अपने पिता से विरासत में मिला था और उन्होंने प्राथमिक विद्यालय में ही राष्ट्रीय पर्वों पर अपने पिता द्वारा लिए गए देशभक्ति के गीत प्रस्तुत करना प्रारंभ कर दिया था।
वीर के यह मुक्तक विचारोत्तेजक और मर्मस्पर्शी हैं। यह मुक्तक अलग-अलग शीर्षकों पर केंद्रित हैं जिनमें कुछ मुख्य शीर्षक इस प्रकार हैं- अदालत, दीपक, समुंदर, संस्कार, समय, संघर्ष, नम्रता, अमन, नदियां, अमर शहीद हिन्दी, दिनकर, श्रीराम, दर्पण आदि। पिता को नमन करते हुए यह मुक्तक आज के आपाधापीपूर्ण समय में विरल होते जा रहे नमन के संस्कारी व्यक्तित्व का आईना बन कर सामने आया है :-
संग-सा दिखता रहा, हिमखंड-सा गलता रहा।/ पांव में छाले पड़े, फिर भी अथक चलता रहा॥
उस पिता को छोड़‌कर, यू जूं किसे संसार में,/ छांव देने को मुझे, जो धूप में जलता रहा॥
आज के तथाकथित राजनेता पूरे रंग सियार हैं। कुर्सी मिलते ही उनके रंग और ढंग दोनों बदल जाते हैं। कैसे उनकी कुर्सी दरिदों की हिफाजत का जरिया बन जाती है। इस मुक्तक का व्यंग्य सीधे पाठक की चेतना पर दस्तक देता है :-
पापियों के पाप सारे, हर रही हैं कुर्सियां।
ताक पर आदर्श सारे, धर रही हैं कुर्सियां॥
कौन पाेंछेगा यहां, आंसू भले इंसान के,
जब दरिंदों की हिफाजत, कर रही हैं कुर्सियां॥
कवि नदियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। इस दृष्टि से उसका यह मुक्तक काबिलेगौर है :-
जिन नदियों ने क़तरा-क़तरा देकर हमें संवारा है।/ उनकी पूर्ण सुरक्षा करना भी तो फर्ज हमारा है॥
वरना आने वाली पीढ़ी, यह कहकर धिक्कारेगी,/ तुमने पालन करने वाली, माताओं को मारा है।
समग्रतः महावीर सिंह ‘वीर’ के सद्य: प्रकाशित ‘वीर के तीर’ के यह मुक्तक इस सत्य के साक्ष्य के रूप में सामने आए हैं कि सादगी का भी एक सौन्दर्य होता है और अपनी सहजता में साफ कहन की वक्रता से वे पाठकों से एक आत्मीय संबंध स्थापित कर लेते हैं। मुक्तक रूप मुश्किल विधा है जिसे साधना सहज नहीं, लेकिन वीर का प्रयास सार्थक है।
पुस्तक : वीर के तीर लेखक : महावीर सिंह ‘वीर’ प्रकाशक : अविचल प्रकाशन, हल्द्वानी, उत्तराखंड पृष्ठ : 176 मूल्य : रु. 400.

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