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जलने लगे पहाड़

10:43 AM May 26, 2024 IST

डाॅ. रामनिवास 'मानव'
पेड़ कटे, जंगल घटे,
मौसम हुआ उदास।
लेकिन चिट्ठी दर्द की,
भेजे किसके पास॥

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चिड़िया बैठी घोसले,
साधे बिल्कुल मौन।
दर्द-भरी उसकी कथा,
लेकिन समझे कौन॥

दिन-भर गोले दागती,
सूर्यदेव की तोप।
इसीलिए इतना बढ़ा,
लू-गर्मी का कोप॥

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भरा क्रोध की आग में,
सूरज रहा दहाड़।
वन्य जीव भयभीत हैं,
जलने लगे पहाड़॥

जीने के अधिकार की,
खारिज हुई दलील।
मौसम ने की क्रूरता,
मरी प्यास से झील॥

ऋतुएं भूली चाल हैं,
चिड़िया भूली गीत।
छांव कहीं भटकी फिरे,
गर्मी से भयभीत॥

पर्वत सब नंगे हुए,
सूखे सारे खेत।
विवश देखती है नदी,
भर आंखों में रेत॥

पानी पर पहरा लगा,
फिरे भटकती प्यास।
अब दुनिया करने लगी,
जीवन का उपहास॥

पहले पानी, फिर हवा,
बिके बदलकर रूप।
बिकने को बाजार में,
कल आयेगी धूप॥

सूखा-सूखा खेत है,
खड़ा बिजूका बीच।
भरकर अंजलि आग की,
मौसम रहा उलीच॥

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