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मुगलपुरा का टीला संरक्षित घोषित

11:36 AM Jun 07, 2023 IST
मुगलपुरा का टीला संरक्षित घोषित
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कुमार मुकेश/ मनोज कुमार

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हिसार/ उकलाना मंडी, 6 जून

हिसार में हड़प्पा सभ्यता की प्रमुख साइट राखीगढ़ी के बाद अब उकलाना के समीप मुगलपुरा गांव का टीला भी पुरातात्विक महत्व का हो गया है। इस टीले से मौर्य काल, कुषाण काल, गुप्त काल की ऐतिहासिक सामग्री मिलने के बाद प्रदेश सरकार के विरासत एवं पर्यटन विभाग ने इसे संरक्षित स्मारक की सूची में शामिल कर लिया है। इस संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार, इस टीले की कुल 34 एकड़ 4 कनाल भूमि को पुरातात्विक महत्व के स्थल के तौर पर संरक्षित घोषित कर दिया गया है। इस टीले से विविध प्रकार के चित्रित टुकड़े, चीनी मिट्टी कला, बर्तन, ईंटें और ईंटों से निर्मित संरचनाएं, अलंकृत टुकड़े, पक्की मिट्टी की मूर्तियां, पक्की मिट्टी के पहिये, खिलौना गाड़ी, मनके, चूड़ियां, गेंदें, पशु मूर्तियां, अर्द्धकीमती पत्थर के मनके आदि मिले हैं।

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कई संग्रहालयों में है यहां से मिला सामान : मुगलपुरा गांव के पूर्व सरपंच सत्यवान वर्मा ने बताया कि यहां से प्राप्त सामग्री को दयानंद महाविद्यालय हिसार के संग्रहालय, आईबी कॉलेज पानीपत संग्रहालय, धरोहर संग्रहालय कुरुक्षेत्र, राजकीय संग्रहालय हिसार में सुरक्षित रखा गया है।

पालिका डालती है कूड़ा : ग्रामीण कृष्ण कुमार ने कहा कि इस टीले पर नगरपालिका कूड़ा डालती है और इसको डंपिंग स्थान बना रखा है। उन्होंने कहा कि प्रशासन को अब नगरपालिका को ऐसा करने से तुरंत रोकना चाहिए।

ईंटों पर कमल का फूल, बौद्ध स्तूप मिलने की आस

इस स्थान की खोज करने वाले इतिहासकार प्रोफेसर महेंद्र सिंह का कहना है कि यहां बौद्ध स्तूप भी मिल सकता है। दयानंद महाविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर महेंद्र सिंह ने बताया कि यहां सबसे दिलचस्प चीज कमल के फूल वाली पक्की ईंटें हैं, जो महात्मा बुद्ध का प्रतिनिधित्व करती हैं और बौद्ध काल की तरफ इशारा करती हैं। इसके अलावा यहां पीजीडब्ल्यू (पेंटेंड ग्रे वेयर) भी मिले हैं, जो मौर्य काल से पहले की तरफ संकेत करते हैं। मौर्य काल व कुषाण काल की भी काफी सामग्री यहां मिली है। अंग्रेजों के शासन काल में भी यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण रहा। यह हांसी के शासक मुनीर बेग के अधिकार क्षेत्र में आता था।

ऐसे हुई खोज : प्रोफेसर महेंद्र सिंह ने बताया कि बरसात के बाद मुगलपुरा के टीले से अकसर कई तरह की चीजें निकलती थीं। वर्ष 2004-05 में गांव के सरपंच सत्यवान उनके पास कुछ चीजें लेकर आए, तो उनको वह पुरातत्व महत्व की लगीं। उन्होंने गांव जाकर टीले का निरीक्षण किया और फिर पुरातत्व विभाग के स्थानीय अधिकारी डॉ. धूप सिंह धत्तरवाल को वहां लेकर गये। विभाग के उप निदेशक बिनानी भट्टाचार्य ने भी दौरा किया।

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