मां का बिछौना
डॉक्टर टोडरमल की मां उसे सदा टोडर कहकर बुलाती थी। डॉक्टर साहब को मां का यह एक वचनी संबोधन अप्रिय लगता था। एक दिन उसने अपनी मां को यह कहते हुए झिड़क दिया कि, ‘मां! तमाम बड़े-बड़े लोग सदा मुझे ढंग से बुलाते हैं, पर तुम हमेशा मुझे बेहुदा तरीके से पुकारती हो, यह ठीक बात नहीं है।’ मां भांप गई कि बेटा बड़ाई का भूखा है। उसने बेटे को नसीहत देने के लिए एक तरकीब सोची। शाम को मां ने बेटे से कहा कि, ‘बेटा, शैशवावस्था में जिस तरह तुम मेरे साथ सोते थे अगर अब एक रात इस प्रकार मेरे साथ लेटोगे तो मैं तुम्हें सदैव सम्मान के साथ पुकारूंगी।’ बेटे ने हामी भर ली। शाम को दोनों एक साथ सो गए। आधी रात को उसकी मां ने पीने का पानी मांगा। डॉक्टर ने उठकर पानी का गिलास पकड़ा दिया। उसकी मां ने आधा गिलास पानी पी लिया और बाकी का जान-बूझकर बिछौने पर उड़ेल दिया। यह देखकर डॉक्टर उखड़ गया और बोला, ‘मां, अब मैं इस गीले बिछौने पर कैसे सोऊंगा?’ मौका पाकर मां ने कहा, ‘बेटे! जब तुम छोटे थे तो इसी तरह नित्य मेरे बिछौने को बार-बार पेशाब करके भिगोया करते, पर मैंने कभी उफ तक न की। मैं सदा गीले में सोई किन्तु तुम्हें मैंने हरदम सूखे में सुलाया।’ मां की बात सुनकर डॉक्टर साहब का शर्म से माथा झुक गया।
प्रस्तुति : राजकिशन नैन