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अधिक सहूलियत मगर फिर भी कम मतदान

06:40 AM Jun 08, 2024 IST
अधिक सहूलियत मगर फिर भी कम मतदान
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पंकज चतुर्वेदी

भारत की 18वीं लोकसभा के निर्वाचन की प्रक्रिया सम्पन्न होने के साथ ही एक सवाल फिर खड़ा हुआ कि आखिर बड़े शहरों में रहने वाले, खासकर सम्पन्न इलाकों के लोग वोट क्यों नहीं डालते, जबकि उनके क्षेत्रों में जन सुविधा-सुंदरता और शिकायतों पर सुनवाई सरकारें प्राथमिकता से करती हैं। दिल्ली हो या राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के दो इलाकों- फरीदाबाद और गुरुग्राम या फिर देश के दूसरे बड़े शहर, मतदान का आंकड़ा सामने आया तो स्पष्ट हो गया, जिस इलाके में अधिक शिक्षित और संपन्न लोग रहते हैं, वहां सबसे कम मतदान हुआ। लोकसभा के तहत जिन विधानसभा क्षेत्रों में विकास, सफाई, नागरिक सुविधा के लिए सबसे अधिक धन खर्च होता है, उन्हें मतदान के कर्तव्य की सबसे कम चिंता है। हो सकता है कि धनाढ्य वर्ग यह सोचता हो कि वे सबसे अधिक टैक्स देते हैं, इसलिए उनके इलाके में सरकारी धन से अधिक रखरखाव होना ही चाहिए। समझना होगा कि तभी संपन्नता संभव है क्योंकि देश में लोकतंत्र है। लोकतंत्र तभी है जब अधिक से अधिक लोग अपने पसंद की सरकार चुनने के अनुष्ठान में अपने आहुति दें, एक मत के रूप में।
दरअसल, शहर जितना बड़ा है, जहां विकास और जन-सुविधा के नाम पर सरकार बजट का अधिक हिस्सा खर्च होता है, जहां प्रति व्यक्ति आय आदि औसत से बेहतर है, जहां सड़क-बिजली-पानी-परिवहन अन्य स्थानों से बेहतर होते हैं, वहीं के लोग वोट डालने निकले नहीं। चेन्नई –सेंट्रल सीट में सर्वाधिक शिक्षित और संपन्न घराने रहते हैं, वहां मतदान हुआ महज 53.91 प्रतिशत। बेंगलुरु सेंट्रल और साउथ भी पढ़े-लिखे, नौकरीपेशा और सम्पन्न लोगों का क्षेत्र है और वहां केवल क्रमशः 52.81 और 53.15 फीसदी लोग ही मतदान को निकले। यही हाल मुंबई साउथ का रहा जहां देश के बड़े उद्योगपति, फिल्मी सितारे रहते हैं, यहां मतदान 47.7 प्रतिशत ही था, जबकि शहर का सबसे साफ-सुथरा जगमगाता संसदीय क्षेत्र यही है।
राजधानी दिल्ली में लोकसभा की सात सीटें हैं, जिसमें नई दिल्ली सर्वाधिक प्रतिष्ठित कहलाती है, क्योंकि यहां राष्ट्रपति से लेकर बहुत से सांसद, अधिकांश उच्च नौकरशाही, बड़े व्यापारी आदि निवास करते हैं। हर बार की तरह इस बार भी इस सीट पर सबसे कम महज 51.98 फ़ीसदी मतदान हुआ। इसमें भी सबसे कम मात्र 48.84 प्रतिशत वोट सबसे धनाढ्य कहे जाने वाले ग्रेटर कैलाश विधानसभा क्षेत्र में डाले गये।
दिल्ली में सबसे अधिक मतदान हुआ उत्तर-पूर्वी दिल्ली में जिसका बड़ा हिस्सा विस्थापित और कच्ची कालोनियों से बना है। यहां 62.87 फीसदी वोट पड़े। दिल्ली में एकमात्र पहली श्रेणी में उत्तीर्ण लोकसभा सीट यही है। मतदान वाले दिन, जब आसमान से आग बरस रही थी तब सिग्नेचर ब्रिज की तरफ जाने वाली सड़क से जाफराबाद से आगे करावल नगर मार्ग तक हर जगह सड़क पर, जहां भारी यातायात भी था और कोई छाया नहीं थी; क्या औरत क्या मर्द, लंबी कतारें थीं। एक मतदान केंद्र पर मतदान की गति इतनी धीमी कि एक से डेढ़ घंटे कतार में फिर भी लोग खड़े थे। न्यूनतम सुविधाएं हैं, लेकिन वोट डालने में कोई कोताही नहीं। एक बेहतर कल की उम्मीद या लोकतंत्र पर भरोसा या उसी पर आशा– जो कुछ भी हो, इन गरीब, मेहनतकश लोगों ने जमकर वोट डाले। यहां भी सीलमपुर, मुस्तफाबाद, सीमापुरी जैसे झोपड़-झुग्गी वाले इलाकों में 60 फ़ीसदी से अधिक वोट पड़े। जबकि सरकारी इमारतों और मध्य वर्ग के तिमारपुर में 54.58 प्रतिशत ही। दक्षिणी दिल्ली में महज 55.15 फीसदी वोट पड़े। उसमें भी पालम के अलावा कहीं भी मतदान 60 तक नहीं पहुंचा। कालकाजी जैसे पुराने संभ्रांत विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम 53.22 फ़ीसदी वोट ही गिरे।
चांदनी चौक लोकसभा के संकरी गलियों वाले मटिया महल, बल्ली माराना, शकूर बस्ती में 60 प्रतिशत से अधिक लोग वोट देने निकले तो मॉडल टाउन में 49.80, शालीमार बाग़ में 57.24 आदर्श नगर में 53.76 फीसदी लोग ही घर से निकले। यहां भी स्पष्ट दिखा कि ऊंचे घरों से मतदान कम हुआ।
हरियाणा की दस सीटों में जिन दो जगहों पर सबसे कम मतदान हुआ, वह हैं दिल्ली का विस्तार कहे जाने वाले फरीदाबाद और गुरुग्राम। गाजियाबाद और नोएडा में भी वोट प्रतिशत वहीं ठीक रहा जहां जरूरतमन्द लोगों की घनी आबादी है, वरना भरे पेट के मोहल्लों ने तो निराश ही किया।
सवाल यह है कि क्या लोकतंत्र को सहेज कर रखने की जिम्मेदारी सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर लोगों पर ही है। इसके बाद भी जब विकास, सौन्दर्यीकरण, नई सुविधा जुटाने की बात आती है तो प्राथमिकता उन्हीं क्षेत्रों को दी जाती है जहां के लोग कम मतदान करते हैं।
मतदान को अनिवार्य करना भले ही फ़िलहाल वैधानिक रूप से संभव न हो लेकिन यदि दिल्ली एनसीआर से यह शुरुआत की जाये कि विकास योजनाओं का पहला हक उन विधानसभा क्षेत्रों का होगा, जहां लोकसभा के लिए सर्वाधिक मतदान हुआ तो शायद अगली बार पॉश इलाकों के लोग मतदान की अनिवार्यता को महसूस कर सकें।

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