अभिमान का चंद्रयान
निस्संदेह, यह चंद्रमा पर भारतोदय है। भारतीयों की आस्था व साहित्य के तमाम प्रतीक-प्रतिमानों में गहरे तक ऊंचा स्थान रखने वाले चंद्रमा पर भारतीय मेधा की दस्तक विषमयकारी है। जिस भारत को पश्चिमी देश हेय दृष्टि से सांप-सपेरों का देश कहते थे, उसके वैज्ञानिकों ने वो करिश्मा कर दिखाया कि हैरत में दुनिया ने दांतों तले अंगुली दबा ली है। वह इसीलिये कि इस बेहद जटिल अभियान के लक्ष्य चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत पहला देश बना है। विश्व की एक महाशक्ति रूस के लूना-25 मिशन के पिछले दिनों क्रैश होने ने बताया कि यह अभियान कितना जटिल था। चंद्रयान-2 की कड़वी यादों से सबक लेकर हमने कामयाबी की नई इबारत लिखी है। वह भी इतनी किफायती लागत में कि जितने में हॉलीवुड की एक फिल्म बन पाती है। यही वजह है कि दुनिया में भारत की कामयाबी की चर्चा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा तथा यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने चंद्रयान की सफलता पर इसरो को बधाई दी है। निस्संदेह, बधाई बनती है क्योंकि चांद के दक्षिण ध्रुव पर दस्तक देने की कोशिश में रूस, चीन व इस्राइल के मिशन विफल हो चुके हैं। चांद के इस हिस्से में भविष्य के लंबी दूरी के अंतरिक्ष अभियान के लिये पानी की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। दरअसल, भारत द्वारा 2008 में भेजे गये पहले चंद्रयान अभियान ने नये सिरे से चंद्रमा के अभियानों की होड़ दुनिया में पैदा की। निस्संदेह, चंद्रयान अभियान की कामयाबी ने राष्ट्रवाद का ज्वार देश में पैदा किया। ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दक्षिण अफ्रीका से वर्चुअली इसरो के वैज्ञानिकों व देशवासियों को बधाई दी। कहा कि भारत ने बार-बार साबित किया है कि उड़ान की कोई सीमा नहीं है। उन्होंने भविष्य में अंजाम दिये जाने वाले ह्यूमन मिशन गगनयान का उल्लेख किया। साथ ही जल्दी सूर्य के विस्तृत अध्ययन के लिये भेजे जाने वाले इसरो के आदित्य एल-वन मिशन का भी जिक्र किया।
निस्संदेह, भारत का चंद्रयान-3 अभियान मानवतावादी विचार के साथ आगे बढ़ा है। जो जी-20 की अध्यक्षता करते भारत में इसके उद्घोष वन अर्थ, वन फैमिली का प्रतिनिधित्व करता है। अब चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद प्रज्ञान रोवर के निकलने और शोध अभियान को आगे बढ़ाने की तैयारी है। फिर जमीन के अध्ययन से चंद्रमा में मौजूद रसायनों के बारे में भी जानकारी मिल सकेगी। चौदह जुलाई को श्रीहरिकोटा से उड़ान भरने वाले चंद्रयान ने यह कामयाबी चालीस दिनों की यात्रा में पूरी की। भारत ने नई तकनीक से इस अभियान को अंजाम दिया। जिसकी कामयाबी के बाद भारत दुनिया में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक मजबूत अंतर्राष्ट्रीय साझेदार के रूप में उभरेगा। निस्संदेह, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान यानी इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ व उनकी टीम बधाई की पात्र है। उनके अथक प्रयासों ने देश को गर्व करने का एक विशिष्ट दिन दिया। विश्वास किया जाना चाहिए कि इस अभियान से चंद्रमा के बारे में ऐसी जानकारियां सामने आएंगी जिनसे अब तक दुनिया अनभिज्ञ थी। निस्संदेह, इस अभियान की सफलता में नासा, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन के ग्राउंड स्टेशंस का भी सहयोग मिला। जो देश की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता को दर्शाता है। इसी कड़ी में देश को सूर्य मिशन आदित्य एल-1 के सफल प्रक्षेपण का इंतजार है, जो धरती से पंद्रह लाख किलोमीटर की दूरी पर सूर्य के रहस्यों को खोजने का प्रयास करेगा। बहरहाल, ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं राष्ट्र के जीवन में नई चेतना का संचार करने में सहायक होती हैं। किसी भी राष्ट्र के जीवन में ये पल अविस्मरणीय होते हैं। निस्संदेह, इसरो के वैज्ञानिकों की मेधा का शंखनाद नयी वैज्ञानिक उपलब्धियों व शोध का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। बेशक, अब हम खुली आंख से चांद से आगे के सपने देखने का दावा कर सकते हैं। सफलता के इस मौके पर हमें देश के महान वैज्ञानिकों होमी भाभा और विक्रम साराभाई की दूरदर्शिता का स्मरण करना चाहिए, जिनकी कोशिशों से हम दुनिया में विज्ञान व शोध की नई इबारत लिख पा रहे हैं। निश्चित रूप से यह नीति-नियंताओं के प्रोत्साहन और वैज्ञानिकों की मेधा व अथक प्रयासों से संभव हो पाया है।