मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

चांद-सी सौम्यता-शीतलता दांपत्य जीवन में उतरे

07:02 AM Oct 30, 2023 IST
Advertisement

सरस्वती रमेश
स्त्रि यां पौराणिक काल से सूर्य और चंद्र की आराधना करती आई हैं। अपनी संतान और परिवार के सुख की कामना के लिए उन्होंने सूर्य देवता का पूजन किया और जीवनसाथी की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए चंद्र देवता का वंदन किया। लेकिन हमारी परंपराओं में चंद्रमा सिर्फ देवता की तरह नहीं पूजे गए। वह देवता होकर भी हमारी कामनाओं में, हमारी अभिव्यक्तियों में खीर में मिठास की तरह शामिल रहे हैं। हमारा उनसे संवाद परस्पर होता रहा। करवा चौथ के पर्व पर एक बार फिर चंद्रमा को अर्घ्य दे, महिलाएं इस परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।

प्रेम का रूपक

हमारे लोक-व्यवहार में चंद्रमा को प्रेम, सौंदर्य और मधुरता का रूपक माना गया है। लड़कों ने चांद-सी महबूबा की कामना की तो लड़कियों ने चांद से दूल्हे की। हमारा दांपत्य जीवन भी इन्हीं तीन भावों पर टिका होता है। पति-पत्नी के बीच प्रेम उन्हें एक साथ बांधकर रखता है। उनकी पसंद-नापसंद, स्वभाव, सोच भले ही विपरीत हो, कमियां उजागर हों और चाहते जुदा हों, फिर भी वे एक-दूसरे के साथ सुख का अनुभव करते हैं। उनके संबंधों की मधुरता उनके दांपत्य जीवन को सौंदर्य से भर देती है। उन्हें जीवन जीने में आनंद का अनुभव होता है और रोजमर्रा के कामों में भी रुचि जागती है।

Advertisement

सौंदर्य का पर्याय

चांद स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही संपूर्ण सौंदर्य का पर्याय रहा है। भले ही यह अपने पूर्ण आकार में हो या अर्ध। दूज का चांद हो, चौथ का चांद या शरद पूर्णिमा का चांद सबका सौंदर्य अनुपम माना जाता है। क्योंकि अपूर्णताओं में भी कोई न कोई सौंदर्य अवश्य होता है। बिल्कुल हमारे जीवन की तरह। हमारे रिश्तों की तरह। हमारे दाम्पत्य की तरह। हमारा स्वभाव, आदतें किसी न किसी कमी का शिकार होती हैं। फिर भी हमें स्वयं से प्रेम होता है। हमारे रिश्तों में खटास-मिठास का मिला-जुला स्वाद होता है फिर भी हमें अपने प्रिय होते हैं। पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़ों के बीच भी हमेशा सुलह की उम्मीद कायम रहती है। हमारी आशाओं में प्रेम का पूर्ण चांद उगा रहता है। हम कहीं भी पूर्ण नहीं हैं फिर भी यह जीवन खूबसूरत है। प्रेम है। मिलन है। स्वप्न है। इन्हीं के बीच बेहतर बनने, सुंदर होने, पाने, करने की कामना है। यही तो चंद्रमा के बढ़ते-घटते आकार का संदेश है, जिसे हमें धारण करना है।

चंद्रमा जैसी शीतलता

मौसम में चाहे कितनी ही तपन हो, चंद्रमा के उदित होते ही सब शीतल, सौम्य लगने लगता है। यह शीतलता हमारे मन को सुकून देती है। हमारा दाम्पत्य जीवन भी ताप और शीतलता का संगम होता है। कभी मुश्किलों की तपन से सारी व्यवस्थाएं चरमराने लगती हैं। तब हम शांति, सुकून की आशा का दीपक मन में जलाए अपने मुश्किल दिनों से निकलने की प्रार्थना करते हैं। देर-सवेर जीवन में सुख के लम्हें भी जरूर आते हैं। ये सुख बिल्कुल चंद्रमा की किरणों की तरह शीतल, सुखद होते हैं। करवा चौथ पर चंद्रमा को पूजने के पीछे भी भावना यही है कि उसकी शीतलता, सौम्यता हमारे दांपत्य जीवन में भी उतरे।

विश्वास की रोशनी

सदियों से हम चांद को साक्षी मानकर अपने जीवनसाथी के प्रति अपने प्रेम, निष्ठा, विश्वास का इजहार करते आए हैं। यह विश्वास बिल्कुल वैसा ही मजबूत है जैसे अमावस्या की अंधेरी रात के बाद चांद के दोबारा निकलने का विश्वास। अपनी आभा से धरती पर स्वर्णिम किरणें बिखरने का विश्वास। इसी विश्वास की रोशनी में हमारे दांपत्य का आकाश अब तक टिमटिमाता रहा है और सुख के सितारों से हमारी झोली भरती रही है। करवा चौथ इसी विश्वास की रोशनी में नहाने का पर्व है। अपने प्रेम, विश्वास की रोशनी से दाम्पत्य के रिश्ते को और प्रगाढ़ करने का सुनहरा अवसर।
हर पर्व की अपनी परंपरा होती है। मगर लगभग सभी का उद्देश्य एक-सा होता है। जीवन, परिवार, दाम्पत्य और संतान सबकी मंगल कामना। एक बार फिर करवा चौथ पर स्त्रियां चांद को अपनी छन्नी से निहारकर अपने जीवनसाथी की लंबी आयु और सुख की कामना करेंगी और चांद इसका साक्षी बनेगा।

Advertisement
Advertisement