For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

चांद और बाकी मसले

07:19 AM Oct 23, 2023 IST
चांद और बाकी मसले
Advertisement

मंजीत ठाकुर

Advertisement

अपना टीवी मीडिया अच्छे-भले संजीदा मसले का भी कचरा कर देता है। भूकंप से लेकर चंद्रयान-मंगलयान सब पर एक ही राग। मुझे सोशल मीडिया पर पोस्ट्स पढ़ने और अलग किस्म की शख्सियत बनाने के मारे बहुत सारे लोग अनाकर्षक और भद्दे लगने लगे हैं।
खैर, बात चंद्र अभियान की। चंद्रयान-3 जब लॉन्च हुआ था तब बिहार के एक पूर्व आईपीएस अधिकारी ने लिखा था कि चांद पर राकेट भेजकर देश को क्या मिलेगा? मुझे तब उनकी बात से दुख हुआ कि अपनी ऐसी सोच के साथ उन्होंने लंबे समय तक प्रशासन चलाया होगा। और ऐसे लोग आज सफल लैंडिंग के लिए देशभर में की जा रही पूजा प्रार्थना, दुआ-नमाज को गलत बता रहे हैं।
बहरहाल, सोशल मीडिया पर एक जहीन शख्स ने लिखा कि नमाज-पूजा वगैरह की जरूरत ही क्या थी। बल्कि देश को वैज्ञानिकता का जश्न मनाना चाहिए। इस मरदे ने, उस पूर्व आईपीएस की उस पोस्ट पर दिल बनाया था, जिस में उन पूर्व अधिकारी ने चंद्रयान लॉन्च को निरर्थक बताया था। खैर, जब चंद्रयान-2 लॉन्च होने वाला था तो मेरे एक मित्र ने इसरो के चेयरमैन की तिरुपति मंदिर जाने की तस्वीर पोस्ट की थी। साथ में उनकी टिप्पणी का मूल भाव था कि एक वैज्ञानिक मंदिर कैसे जा सकता है!
असल में, कथित उदारवादियों को किसी वैज्ञानिक के मंदिर जाने पर बहुत हैरत होती है। असल में, हमें यह सिखाया जाता है कि वैज्ञानिक होने का मतलब उद्देश्यपरक होना है। यह उद्देश्यपरकता लोगों को खालिस वस्तुनिष्ठ बनाती है यानी दुनिया को एक मानव के रूप में या मनुष्यता के तौर पर नहीं देखने का गुण विकसित करना ही नहीं, बल्कि खुद को एक अवैयक्तिक पर्यवेक्षक के रूप में तैयार करना भी।
बड़ी विडंबना है कि बदबूदार निशानियां भी इंसान चांद पर छोड़ आया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इंसानों ने छह अपोलो मिशनों से पाखानों से भरे 96 बैग चांद की राह (ऑर्बिट) में फेंके हैं और इनमें से कुछ चांद पर भी पड़े हैं। खैर, अंत में चांद पर इब्न-ए-सफ़ी का लिखा सुंदर-सा शेर हो जाए- चांद का हुस्न भी ज़मीन से है, चांद पर चांदनी नहीं होती। ...और ये बात, विक्रम लैंडर को पता चल गई होगी।
साभार : गुस्ताख डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

Advertisement
Advertisement
Advertisement