वन्य जीवों के लिए मौत बरसती है मानसून में
के.पी. सिंह
हर साल की तरह इस साल भी असम के कई वन्यजीव अभयारण्यों में बाढ़ का संकट आया हुआ है। प्रसिद्ध काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 5 जुलाई तक 31 जानवर डूबकर मर चुके थे, जबकि 82 जानवरों को डूबने से बचाया गया था। हर साल असम में कई हजार वन्यजीव बाढ़ के कारण मारे जाते हैं। हिरण, उदबिलाव, सांभर, गैंडे, खरगोश और जंगली बिल्लियों की हर साल यहां सामत आती है।
नॉर्थ ईस्ट के करीब सभी राज्यों में बारिश के दिनों में जबरदस्त बाढ़ आती है और तब इंसानों की तरह हर साल वन्यजीव भी बड़ी तादाद में प्रभावित होते हैं। बस फर्क ये रहता है कि इंसानों के लिए जहां प्रशासन चिंताएं जताता है, वहीं वन्यजीवों को आमतौर पर उन्हीं के हाल पर छोड़ दिया जाता है। उत्तर पूर्व में ही नहीं बल्कि गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा से शुरू होकर गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल से होते हुए कन्याकुमारी तक फैले पश्चिमी घाट में भी हर साल हजारों जानवर जानलेवा बाढ़ के शिकार होते हैं।
शेर पूंछ वाले मैकाक, नीलगिरि ताहर व लंगूर जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों के भी दर्जनों जानवर पश्चिम घाट में होने वाली जबरदस्त बारिश और उसके कारण अलग-अलग जगहों पर आने वाली बाढ़ के कारण हर साल मारे जाते हैं। गौरतलब है कि पश्चिमी घाट दुनिया के उन कुछ गिने-चुने वन्यजीव क्षेत्रों में से है, जहां दुनिया के सबसे पुराने वन्यजीव मौजूद हैं। इसलिए पश्चिमी घाट को यूनेस्को ने विश्व विरासत घोषित किया है। यहां कई तरह के लुप्तप्राय जानवरों के लिए जो आवास का संकट है, उसे मुहैया कराने के लिए लगातार सरकारों और विश्व के वन्यजीव संगठनों से अपील भी करता है। यहां सिर्फ दुनिया के लुप्तप्राय अनेक जानवर ही नहीं मौजूद बल्कि कई ऐसी वनस्पतियां और जंगली फूल भी मौजूद हैं, जो धरती में और कहीं नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में स्थित दुधवा जंगल में जुलाई के दूसरे सप्ताह पानी भर जाने के कारण सैकड़ों जंगली जानवर बाढ़ से बुरी तरह घिर गये थे। इसमें कई तो भाग दौड़कर अपना बचाव कर लेते हैं, लेकिन सैकड़ों जानवर मारे जाते हैं।
वक्त आ गया है कि हमें वन्यजीवों की सुरक्षा को लेकर, बाढ़ से उन्हें बचाने का पुख्ता इंतजाम करना होगा वरना संरक्षण के बावजूद हर साल हजारों जानवर इस विभीषिका का शिकार होते रहेंगे।