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नवीन को मोदी, सुशील को केजरीवाल, अभय को किसानों का सहारा

08:45 AM May 16, 2024 IST

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
कुरुक्षेत्र, 15 मई
धर्मक्षेत्र यानी कुरुक्षेत्र में इस बार चुनावी ‘महाभारत’ पर सभी की नजरें लगी हैं कि कुरुक्षेत्र का नया ‘अर्जुन’ यानी सांसद कौन होगा। जीटी रोड बेल्ट की इस संसदीय सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय नजर आ रहा है। भाजपा प्रत्याशी नवीन जिंदल को पीएम मोदी के नाम और मनोहर सरकार की नीतियों का फायदा मिलने की उम्मीद है। वहीं, आम आदमी पार्टी से डॉ़ सुशील गुप्ता इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी हैं। उन्हें दिल्ली के सीएम और आप संयोजक अरविंद केजरीवाल का सहारा है। इनेलो के अभय चौटाला किसान आंदोलन को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।
अभय के चुनावी रण में आने के बाद मुकाबला रोचक हो गया है। नवीन जिंदल लंबे समय तक कांग्रेस में सक्रिय रहे हैं। 2014 में भाजपा के राजकुमार सैनी के हाथों शिकस्त खाने के बाद जिंदल ने 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए नवीन जिंदल को भाजपा ने हाथों-हाथ कुरुक्षेत्र से टिकट दे दिया। ‘जिंदल हाउस’ का इस संसदीय क्षेत्र में पुराना प्रभाव इसलिए है क्योंकि जिंदल की ओर से गरीब परिवारों को समय-समय पर सहयोग किया जाता रहा है।
गरीब परिवारों की बेटियों में शगुन, गरीब महिलाओं को सिलाई मशीन, मकान की मरम्मत के लिए गरीबों की मदद, मुफ्त स्वास्थ्य चेकअप शिविर और गरीब लोगों की आंखें बनवाने जैसे ऐसे काम हैं, जो ‘टीम जिंदल’ कभी से करती आ रही है। ऐसे में गरीब परिवारों के साथ उनका पुरान लगाव है। इस संसदीय क्षेत्र में पिछड़ा वर्ग वोट बैंक भी काफी अधिक है। ओबीसी वोट बैंक को चुनाव में निर्णायक माना जाता है। वैश्य समुदाय से होने के चलते खुद की बिरादरी में भी जिंदल की पैठ है।
उनके स्व़ पिता ओमप्रकाश जिंदल हरियाणा के कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं और वे कुरुक्षेत्र से सांसद भी थे। यह भी एक कारण है कि कुरुक्षेत्र लोकसभा क्षेत्र जिंदल के लिए नया नहीं है। देश के नामचीन और बड़े उद्योगपतियों में शामिल नवीन जिंदल ने सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़कर आम लोगों को अपने घरों पर तिरंगा फहराने का अधिकार दिलवाया। इतना ही नहीं, कुरुक्षेत्र, कैथल, हिसार सहित प्रदेश के कई शहरों में मुख्य जगहों व पार्कों में जिंदल द्वारा ऊंचे तिरंगे भी लगवाए हैं। जिंदल के पिता ओमप्रकाश जिंदल की छवि ‘धाकड़’ नेताओं वाली रही। वहीं, नवीन जिंदल अपने पिता के मुकाबले काफी सॉफ्ट और मधुरभाषी हैं। जिंदल की माता सावित्री जिंदल हिसार से विधायक रही हैं और वे सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं। जिंदल के चुनाव को धार देने के लिए भाजपाई कड़ी मेहनत कर रहे हैं। थानेसर हलके से विधायक और नायब सरकार में शहरी स्थानीय निकाय मंत्री सुभाष सुधा की बड़ी परीक्षा है। थानेसर से सुधा लगतार दूसरी बार विधायक हैं। उनकी पत्नी नगर परिषद की चेयरपर्सन हैं। ऐसे में सुधा का इस इलाके में अच्छा प्रभाव है। थानेसर से विधायक रह चुके पूर्व स्पीकर अशोक अरोड़ा इस इलाके में कांग्रेस का बड़ा फेस हैं। वे सुशील गुप्ता के लिए प्रचार करने में जुटे हैं। अरोड़ा खुद भी इनेलो के टिकट पर कुरुक्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। वे लंबे समय तक इनेलो के प्रदेशाध्यक्ष रहे। ऐसे में पूरी बेल्ट में उनकी पकड़ है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद व राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला भी इंडिया गठबंधन प्रत्याशी के लिए काम कर रहे हैं। वे भी कई बैठकें कर चुके हैं। लाडवा विधायक मेवा सिंह और रादौर विधायक बिशनलाल सैनी भी सुशील गुप्ता के लिए अपने हलकों में मोर्चा संभाले हुए हैं। कांग्रेस के पास इस संसदीय क्षेत्र में दो विधायक हैं। पुंडरी से निर्दलीय विधायक रणधीर सिंह गोलन अब कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान कर चुके हैं।
चार विधानसभा हलकों में भारतीय जनता पार्टी के विधायक हैं। इनमें थानेसर विधानसभा क्षेत्र से सुभाष सुधा, पिहोवा हलके से सरदार संदीप सिंह, कैथल विधानसभा क्षेत्र से लीलाराम गुर्जर व कलायत हलके से कमलेश ढांडा हैं।
दो हलकों, शाहबाद में रामकरण काला और गुहला में ईश्वर सिंह जजपा विधायक हैं। रोचक पहलू यह है कि ये दोनों ही विधायक जजपा नेतृत्व से दूरी बनाए हुए हैं। दोनों की ही कांग्रेस नेताओं के साथ बैठकें हो चुकी हैं। यानी देर-सवेर ईश्वर सिंह और रामकरण काला कांग्रेस ज्वाइन कर सकते हैं।
बिना खर्ची-पर्ची नौकरियों की चर्चा
मनोहर सरकार द्वारा सरकारी नौकरियों को लेकर अपनाई गई नीति भी इस क्षेत्र के लोगों विशेषकर ग्रामीणों के बीच चर्चाओं में है। ग्रामीण यह स्वीकार करने में बिल्कुल हिचक नहीं रखते कि पहले इस तरह नौकरियां नहीं मिलती थीं। सिफारिशों का खेल चलता था, लेकिन अब गांवों में युवाओं को बिना सिफारिश के नौकरी मिल रही है। शाहबाद हलके के करीब चार हजार मतदाताओं वाले खरींडवा गांव के सुलेख चंद, जागर सिंह व रामकिशन ने कहा- पढ़े-लिखे गरीब परिवारों के युवाओं को घर बैठे नौकरी मिली है। ये ऐसे परिवार हैं, जिनकी किसी के पास सिफारिश नहीं थी। मोदी के नाम की भी गांव में चर्चा सुनने को मिली। मौची का काम करने वलो रामकिशन कहते हैं- ग्रामीण प्रत्याशी नहीं, बल्कि मोदी के नाम पर वोट देंगे। सभी प्रकार की जातियों के लोग इस गांव में रहते हैं। मुस्लिम परिवार भी गांव में हैं। इन परिवारों के भी चार-पांच युवाओं को सरकारी नौकरी मिली है। लाडवा के बजगांवा गांव के किसान सतपाल का कहना है कि किसानों पर लाठीचार्ज करके सरकार ने गलत किया। किसानों की बात सुननी चाहिए थी। मिल-बैठकर हर समस्या का हल निकाला जात सकता है। लाठीचार्ज ही जरिया नहीं हो सकता।
रादौर में भी बदले हुए हालात
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी व मौजूदा सीएम नायब सिंह सैनी ने रादौर हलके से अच्छे मतों के अंतर से जीत हासिल की थी। हालांकि, इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी व पूर्व मंत्री कर्णदेव कम्बोज कांग्रेस के बिशनलाल सैनी के मुकाबले चुनाव हार गए। रादौर में कम्बोज भाजपा के लिए और सैनी इंडिया गठबंधन उम्मीदवार के लिए जोर लगा रहे हैं। वहीं, पूर्व विधायक श्याम सिंह राणा अपनी ‘गुडविल’ के जरिये हलके में अभय के लिए समर्थन में जुटे हैं। सुखदेव सिंह ने कहा- अभी चुनाव ठंडा है। 18 के बाद तस्वीर पूरी तरह से साफ होगी। खुर्दबन के हरेंद्र सिंह कहते हैं- महंगाई और बेरोजगारी चुनाव में बड़ा मुद्दा है। वीरेंद्र सिंह भी महंगाई की बात करते हैं। करीब दो लाख मतदाताओं वाले इस हलके के शहर यानी रादौर में 12 हजार के लगभग वोटर हैं। शहर में मिला-जुला असर देखने को मिला। गांवों में भाजपा को अधिक पसीना बहाने की जरूरत दिखी।
अभय के लिए ‘तिकड़ी’
कुरुक्षेत्र में इनेलो के अभय चौटाला को अपनी ‘तिकड़ी’ से सबसे अधिक उम्मीद है। पूर्व सीपीएस और इनेलो प्रदेशाध्यक्ष रामपाल माजरा का कैथल जिले विशेषकर कलायत में प्रभाव माना जाता है। उनके प्रधान बनने के बाद उनका राजनीतिक कद और बढ़ा है। इसी तरह, पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला के राजनीतिक सलाहकार रहे पूर्व विधायक शेर सिंह बड़शामी लाडवा हलके में अभय के लिए पसीना बहा रहे हैं। शेर सिंह रादौर हलके से सटे लाडवा हलके के बड़शामी गांव के रहने वाले हैं। इसी तरह से रादौर हलके में पूर्व विधायक श्याम सिंह राणा का प्रभाव माना जाता है। अभय को इन तीनों नेताओं के बूते तीनों हलकों- कलायत, लाडवा व रादौर से अच्छे नतीजे आने की उम्मीद है।

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कुरुक्षेत्र में स्थापित श्रीकृष्ण का भव्य स्वरूप।

ओबीसी वोटरों की रहेगी अहम भूमिका
कुरुक्षेत्र के मौजूदा सांसद नायब सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद सीट का गणित काफी बदला है। सबसे अधिक सैनी वोट बैंक इसी लोकसभा क्षेत्र में है। सैनी के अलावा ओबीसी की अन्य जातियों की संख्या भी यहां काफी अधिक है। यानी चुनावों में ओबीसी वोट बैंक का बड़ा रोल रहने वाला है। बड़ी बात यह है कि इस बार यह वोट बैंक साइलेंट बना हुआ है। चुप्पी ने इंडिया गठबंधन की टेंशन बढ़ाई हुई है।
पिछले तीन चुनावों के नतीजे
2009
कांग्रेस के टिकट पर नवीन जिंदल ने लगातार दूसरी बार चुनाव जीता। जिंदल को 3 लाख 97 हजार 204 वोट मिले। इनेलो के अशोक अरोड़ा 2 लाख 78 हजार 475 मतों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। बसपा के गुरदयाल सिंह सैनी को एक लाख 51 हजार 231 वोट मिले थे।

2014
इस चुनाव में कांग्रेस के हेवीवेट नवीन जिंदल को भाजपा के राजकुमार सैनी ने एक लाख 29 हजार 736 मतों के अंतर से शिकस्त दी। इतना ही नहीं, जिंदल तीसरे नंबर पर जा पहुंचे। सैनी को 418112 वोट मिले थे। 288376 वोटों के साथ इनेलो के बलबीर सैनी दूसरे नंबर पर रहे थे।

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2019
नवीन जिंदल ने चुनाव नहीं लड़ा। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री निर्मल सिंह को टिकट दिया। भाजपा के नायब सैनी ने 686588 वोट लेकर निर्मल को 3 लाख 84 हजार 591 मतों के अंतर से हराया। निर्मल सिंह को 303722 वोट मिले। अभय के बेटे अर्जुन चौटाला को महज 60574 वोट ही मिले।

अभय भुना रहे किसान आंदोलन
कुरुक्षेत्र सीट पर किसान आंदोलन का असर भी देखने को मिल रहा है। इस आंदोलन की वजह से नाराज किसानों का समर्थन हासिल करने के लिए इनेलो उम्मीदवार अभय चौटाला किसान आंदोलन को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ और किसान आंदोलन के समर्थन में उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया था। हालांकि, बाद में ऐलनाबाद में हुए उपचुनाव में उन्होंने जीत हासिल की थी। अभय यह कहकर किसानों में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि कुरुक्षेत्र में दो बिजनेसमैन और किसान के बीच चुनावी जंग है। यह स्पष्ट है कि किसान आंदोलन की वजह से कथित रूप से नाराज़ चल रहे वर्ग विशेष का अभय को कितना सहयोग मिलेगा, इस पर ही पूरा चुनाव निर्भर करेगा। अभय इसी वोट बैंक के सहारे चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं।

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