भय का मनरेगा टीआरपी देगा
आलोक पुराणिक
उस टीवी चैनल पर लगभग रोज ही घोषणा होती है कि आज रात को रूस के राष्ट्रपति पुतिन परमाणु बम चला देंगे, एक साल से ज्यादा हो गया। रोज ही पुतिन परमाणु बम चलाने वाले होते हैं, बस चला नहीं पाते। टीवी पर खबरों का नहीं डर का कारोबार होता है।
ईरान में हाल में हुए एक भीषण विस्फोट की जिम्मेदारी आईएसआईएस ने ली है। यह वही आईएसआईएस है, जिसके मुखिया बगदादी हुआ करते थे। यह वही बगदादी थे, जिन्हे टीवी चैनल वाले करीब सौ बार मार चुके थे। फिर एक दिन बताया गया कि अब सचमुच में मर गये बगदादी। अब आईएसआईएस ने फिर धमाके कर दिये, तो क्या बगदादी वापस आ गया। बगदादी है या बिग बास, कितने सीजन तक आयेगा।
आफत यह है कि टीवी चैनलों को भी अपना कारोबार चलाने के लिए कुछ न कुछ जुगाड़ चाहिए होता है। सरकारी रोजगार स्कीम होती है मनरेगा। इसमें कुछ हो या नहीं, कुछ लोगों को रोजगार मिल जाता है। ऐसे ही कई खबरें टीवी चैनलों के लिए मनरेगा हैं।
मैं तलाशता हूं कि कोई काम की खबरें आ जायें टीवी पर वो न आतीं। मेरे घर के पास एक सड़क कई साल से बन रही है। मैंने एक टीवी पत्रकार से कहा–इस पर रिपोर्ट कर दो, और पूछो रिपोर्ट में-यह सड़क कब बनेगी। टीवी वाले भाई ने मुझसे पूछा कि क्या सड़क पर आधी रात को चुड़ैल आती है। मैंने पूछा, खबर सड़क पर बननी है या चुड़ैल पर।
टीवी वाले ने मुझे डांटा-असल खबर चुड़ैल ही है। सड़क-वड़क की कौन चिंता करता है।
मैंने कहा कि भाई मैं ही चुड़ैल बनकर खड़ा हो जाता हूं रात में सड़क पर, फिर खबर लिख दे सड़क पर।
टीवी वाले भाई ने बताया-खबर यह बनेगी कि गरीब हिंदी लेखक रात में चुड़ैल बनकर लोगों को डराता है। बताओ लिख दूं यह खबर। खबर असल में चुड़ैल ही है। सारी पूछ चुड़ैल की हो रही है।
हिंदी का लेखक सड़क पर खबर लिखवाने जाये, तो बेइज्जत होकर लौटता है, टीवी वाले के हाथों भी और चुड़ैल के हाथों भी। टीवी वालों की एक मनरेगा स्कीम अब नयी यह चल रही है-ठंड में इंडिया गेट पर होगी बर्फबारी। दिल्ली में आ जायेगा हिमयुग। मनरेगा है जी मनरेगा। बस जी रोजगार धंधा चलता रहे, इससे ज्यादा क्या चाहिए।
चलिये फिर खबरें आना शुरू हो जायेंगी-बगदादी आ गया है। आ जा भाई, महंगा टमाटर न हमारा कुछ बिगाड़ पाया, बगदादी तू क्या बिगाड़ लेगा, हम बहुत बेशरम लोग हैं।