For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

मनरेगा को ठेंगा

04:00 AM May 27, 2025 IST
मनरेगा को ठेंगा
Advertisement

श्रमिकों को घर के पास जीविका उपार्जन के अवसर उपलब्ध कराने के लिये शुरू की गई मनरेगा से जुड़ी धांधलियां अकसर उजागर होती रहती हैं। ताजा घटनाक्रम में ठेकेदारों व निहित स्वार्थी तत्वों की सांठगांठ को ऑनलाइन भुगतान के जरिये बेनकाब किया गया, जिसमें लाखों फर्जी श्रमिकों को भुगतान के मामले उजागर हुए। निश्चित रूप से ये घटनाएं हमारे समाज में येन-केन-प्रकारेण धन अर्जन की लालसा को ही उजागर करती हैं। साथ ही नैतिक मूल्यों के पतन की गाथा भी कहती हैं। ऐसे ही पंजाब के गुरदासपुर के गाजीकोट गांव में उजागर हुआ कार्टून घोटाला एक हास्यास्पद, लेकिन बेहद परेशान करने वाला उदाहरण है कि भ्रष्टाचार के लिये किस हद तक गिरा जा सकता है। कथित तौर पर पंचायत सदस्यों ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा के तहत मजदूरों की उपस्थिति को फर्जी ढंग से दर्शाने के लिये एक सरकारी स्कूल के गेट पर बनाए गए कार्टूनों का सहारा लिया। इन चित्रों के साथ लाभार्थियों की तसवीरें मजदूरी के सबूत के तौर पर अपलोड की गई। विडंबना देखिए कि उस काम के लिए भुगतान लिया गया जो कभी किया ही नहीं गया था। दरअसल, पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड ने एक योजना के तहत स्कूल की दीवारों पर पेंटिंग्स बनायी थी, जिससे छात्र-छात्राओं को प्रेरित किया जा सके। लेकिन शातिर लोगों ने उसका दुरुपयोग मनरेगा में घोटाले को अंजाम देने के लिए किया। निश्चय ही यह हमारे समाज में कुशासन, नैतिक पतन और तकनीकी खामियों की घातक जुगलबंदी को दर्शाता है। इस घोटाले का एक बेशर्म पहलू यह भी था कि कथित तौर पर पंचायत अधिकारियों के करीबी दो भाइयों को कार्टून के रूप में प्रस्तुत किया गया। इस तरह काल्पनिक काम के लिये बेशर्मी से भुगतान कर दिया गया। यही वजह है कि मनरेगा के तहत वित्तीय आवंटन व योजना के क्रियान्वयन को व्यावहारिक बनाने की मांग लंबे समय से की जाती रही है। इसका कारण यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में दृश्य व अदृश्य बेरोजगारी दूर करने में इस योजना की बड़ी भूमिका रही है।
निस्संदेह, लंबे अरसे से मनरेगा के तहत मजदूरी देने में धांधली के आरोप लगते रहे हैं। यह केवल पंजाब के गुरदासपुर का मामला ही नहीं है, हाल के वर्षों में पूरे देश में इस तरह की धोखाधड़ी के मामले उजागर होते रहे हैं। कुछ दिन पहले, गुजरात में एक राज्य मंत्री के बेटों से जुड़े 71 करोड़ रुपये के मनरेगा घोटाले में फर्जी प्रोजेक्ट और अन्य धांधलियां सामने आई थीं। मृत व्यक्तियों के नाम पर भी भुगतान किया गया। कुछ माह पूर्व कर्नाटक में, पुरुष श्रमिकों ने महिला जॉब कार्डधारकों का रूप धारण करने के लिये साड़ी पहनी थी। ये उदाहरण ग्रामीण आजीविका और सम्मान को बनाये रखने के लिये बनायी योजना का मजाक उड़ाने वाले हैं। दरअसल, ऐसे घोटालों का उजागर होना अंतत: कल्याणकारी कार्यक्रमों में जनता के विश्वास को ठेस पहुंचाता है। सही मायनों में ऐसी धांधलियों से वास्तविक लाभार्थियों के हितों को नुकसान पहुंचता है। साथ ही ऐसी घटनाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई का अभाव संगठित भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करता है। निस्संदेह, ऐसी धांधलियों को दूर करने के लिये गहन तथा प्रणालीगत सुधारों की आवश्यकता है। दरअसल, तसवीरों में धांधली और उपस्थिति रिकॉर्ड में हेराफेरी रोकने के लिये डिजिटल उपकरणों के माध्यम से तीसरे पक्ष द्वारा समय-समय पर निगरानी की जानी चाहिए। साथ ही एक पारदर्शी शिकायत निवारण व्यवस्था भी कायम की जानी चाहिए। इसके अलावा दोषी अधिकारियों तथा बिचौलियों के खिलाफ त्वरित दंडात्मक कार्रवाई भी उतनी ही जरूरी है। ग्रामीण गरीबों को सांकेतिक रोजगार और खोखले वायदों से कहीं ज्यादा मिलना चाहिए। निश्चय ही वे सम्मानजनक पारिश्रमिक पाने के हकदार हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मनरेगा ने देश में अंतर्राज्यीय प्रवास को कम किया है। साथ ही ग्रामीण उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को भी बढ़ाया है। काम की तलाश में शहरों की ओर जाने वाले श्रमिकों की संख्या में कमी इसका एक सकारात्मक पक्ष भी है। खासकर कोरोना संकट में जब ग्रामीण महानगरों से पलायन करके बड़ी संख्या में गांवों की तरफ लौटे तो इस योजना ने जीवनदायिनी भूमिका निभाई।

Advertisement

Advertisement
Advertisement