Mindless Eating माइंडलेस ईटिंग के रुझान से नुकसान
नयी पीढ़ी के खाने को बिना ध्यान दिए खाने के जो भी कारण हों, माइंडलेस ईटिंग उनकी सेहत के लिए हानिकारक है वहीं इसके चलते वे भोजन के सांस्कृतिक और भावनात्मक अनुभव से वंचित हो जाते हैं। फैमिली बोंडिंग तक पर असर पड़ता है।
लोकमित्र गौतम
खाते वक्त हमेशा अपनी आंखें मोबाइल के स्क्रीन पर गड़ाये रखना, उदासीनता से खाना खाना। घर में खाने के बारे में कोई पूछे तो किसी बात का जवाब तक नहीं देना- आजकल किशोरों और युवाओं का खाने को लेकर कुछ ऐसा ही बर्ताव देखने में आ रहा है। खानपान विशेषज्ञ इसे माइंडलेस ईटिंग कहते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक खाने का यह तरीका स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। जबकि खाने को कंसेंट्रेशन के साथ खाने पर इसके भरपूर फायदे मिलते हैं। जानिये माइंडलेस ईटिंग हमारे स्वास्थ्य और मनोविज्ञान को किस तरह से प्रभावित करती है?
सेहत को नुकसान
माइंडलेस ईटिंग का मतलब है खाने को बिना ध्यान दिए खाना। इस तरह खाने से हम ज्यादा बार जरूरत से कहीं ज्यादा खा जाते हैं, तो कई बार हम जरूरत से कम भी खाते हैं। लेकिन अकसर ज्यादा खाते हैं। जब हम ज्यादा और जल्दी जल्दी खाते हैं, तो हमें इसके कई तरह के नुकसान भुगतने पड़ते हैं। सबसे पहला नुकसान है मोटापा। माइंडलेस ईटिंग से युवाओं को पता ही नहीं चलता कि वह कितना खा गए, जिससे वे आमतौर पर ओवर ईटिंग करते हैं और मोटापे का शिकार बनते हैं। वहीं जल्दी जल्दी खाने से शरीर भोजन को सही तरीके से नहीं पचा पाता, जिससे गैस, एसिडिटी जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। यूं भी इस तरह खाने की आदत वाले किशोर जंकफूड या प्रोसेस्ड फूड ज्यादा खाते हैं।
खाने से भावनात्मक दुराव
जब हम ध्यान देकर नहीं खाते, तो हम खाने के प्रति भावनात्मक लगाव से वंचित रहते हैं। खाने को सिर्फ ऊर्जा प्राप्ति के साधन के रूप में देखने से हम इसके सांस्कृतिक और भावनात्मक अनुभव से वंचित हो जाते हैं। साथ ही जब हम माइंडलेस ईटिंग करते हैं तो फेमिली बोंडिंग में कमी देखी जाती है। पारिवारिक तौरपर भोजन करना, परिवार के साथ समय बिताने का बहुत महत्वपूर्ण जरिया है। लेकिन जब हम माइंडलेस ईटिंग करते हैं तो किसी से कोई जुड़ाव महसूस नहीं करते। यही नहीं इस तरह के खाने से एक नये तरह का तनाव पैदा होता है, जिसे स्ट्रेस ईटिंग कहते हैं।
कंसेंट्रेशन क्यों जरूरी?
खानपान विशेषज्ञ कहते हैं यदि हम खाते समय खाने पर कंसेंट्रेशन रखते हैं तो यह न केवल हमारे शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है। जब हम खाने पर ध्यान देकर और उसमें रुचि लेकर खाते हैं, तो हम अपने शरीर की जरूरतों को समझकर सही भोजन का चुनाव करते हैं। ध्यान से खाना खाने पर हम इसका बेहतर स्वाद महसूस करते हैं। इसकी बनावट, इसकी सुगंध का अहसास करते हैं, जिससे भूख ही खत्म नहीं होती बल्कि खाने से मन भी तृप्त होता है।
उदासीनता की वजह
शायद खाने के प्रति उदासीनता की एक बड़ी वजह इस पीढ़ी के लिए खाने के अनेक विकल्प मौजूद हैं। आज बाजार में मौजूद विभिन्न तरह के खाद्य उत्पादों की विविधता है। लोग स्वाद और आकर्षण को आज खाने में ज्यादा तरजीह देते हैं, न की पोषण और इसके प्रति किसी तरह की भावनात्मक लगाव को। फास्ट फूड ने हमारी पारंपरिक फूड कल्चर खत्म कर दी। आज प्रोसेस्ड और पैकेज्ड फूड हर जगह और एक क्लिक की दूरी पर मौजूद है, इसलिए युवा चटपट खाने को तरजीह देते हैं।
माइंडफुल ईटिंग की ऐसे डालें आदत
स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि खुशी और तनावमुक्त रहने के लिए भी आज माइंडफुल ईटिंग की सख्त जरूरत है। माइंडफुल ईटिंग यूं तो एक माहौल और पारिवारिक वातावरण से आती है, लेकिन अगर यह न हो तो इसे धीरे धीरे कोशिश करके बनानी चाहिए। जिसे हम कुछ उपायों से बना सकते हैं। खाने को धीरे धीरे खाएं। स्वाद लेकर खाएं और अपने शरीर के संकेतों को पहचानकर खाएं। दिन में कम से कम एक बार परिवार के साथ मिल बैठकर खाना खाएं, यह न केवल खाने को अर्थपूर्ण बनाता है बल्कि इससे पारिवारिक रिश्ते बेहतर होते हैं। खाते समय मन और तन की सेहत को ध्यान में रखकर अपने पारंपरिक और विरासत में उपलब्ध खाने ज्यादा से ज्यादा खाएं। भोजन के समय, मोबाइल, टीवी या दूसरे डिवाइस का उपयोग न करें। खाने पर ध्यान देना खाने का सम्मान करना और उसकी महत्ता को समझना है। ऐसा करने से हमारी सेहत भी बेहतर रहती है। -इ.रि.सें.