मन की लगाम
स्वामी अनंतदेव अपने घोड़े पर सवार होकर एक गांव की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में एक राहगीर मिला। उसने संत से कहा कि मुझे अमुक गांव जाना है, थोड़ा साथ दे दो तो आपकी बड़ी कृपा होगी। संत अनंतदेव ने उसकी बात को स्वीकारा और अपने घोड़े पर बिठा लिया। बीच में राहगीर बोला, ‘महाराज! आपके न बाल-बच्चे, न धंधा-न व्यापार, आप तो संत हैं, आप इस घोड़े का क्या करेंगे? हम गृहस्थ हैं। घोड़े का अधिक उपयोग तो हमारे लिए है। इसलिए कृपया ये घोड़ा मुझे दे दो तो आपकी बड़ी कृपा होगी।’ संत अनंतदेव ने बोला, ‘ठीक है, मैं तुम्हें घोड़ा दे दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है कि आपका गांव तीन मील दूर है। जब तक गांव नहीं आता तुम्हें पूरे रास्ते केवल राम नाम जपना होगा और अगर एक बार भी ‘राम, राम, राम...’ छूटा तो मैं घोड़ा नहीं दूंगा। यह सुनकर राहगीर ने सोचा कि साधु को अच्छा पटा लिया। घोड़ा अपनी गति से चल रहा था और राहगीर का मन उससे तेज गति से चल रहा था। उसने सोचा संत ने कहा है कि घोड़ा दूंगा, लेकिन लगाम की तो बात हुई नहीं। मुंह से ‘राम-राम’ बोल रहा है और मन में लगाम देंगे कि नहीं? कुछ समय बाद आखिर उसने पूछ ही लिया कि महाराज आप घोड़ा तो दोगे, लगाम दोगे कि नहीं? संत ने कहा ‘ज्ञानी’ अब न घोड़ा मिलेगा न लगाम, क्योंकि तुम शर्त हार गये?
प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री