दूध का कर्ज
न्यायवादी गुरुदास वंदोपाध्याय ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की प्रशंसनीय पहल की थी। वे जीवन भर निष्ठापूर्वक महिला सशक्तीकरण के काम में जुटे रहे। दरअसल, बालक गुरुदास जब छह महीने के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था। बाद में एक दाई ने गुरुदास को अपना दूध पिलाकर पाला था। बड़े होकर इन्होंने न्याय-कर्ता के रूप में नाम कमाया। एक बार न्यायाधीश सर गुरुदास वंदोपाध्याय कलकत्ता हाईकोर्ट की अदालत में एक मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे कि सहसा उनकी नजर न्यायालय के दरवाजे पर टिक गई। उन्होंने देखा कि एक बुढ़िया गंगास्नान करके लौटती हुई अपने भीगे वस्त्रों में ही कक्ष के भीतर घुसने का प्रयास कर रही थी और अदालत का चपरासी उसे अंदर आने से रोक रहा था। उस दृश्य को देखते एकाएक न्यायाधीश की स्मृति में कोई विचार कौंधा। उसने बुढ़िया को पहचान लिया। बचपन में वह गुरुदास की धाय मां रह चुकी थी। उन्होंने फौरन मुकदमा बीच में ही रोक दिया और वे तत्क्षण कुर्सी छोड़कर स्वयं दरवाजे पर जा पहुंचे। वहां जाकर उन्होंने विनम्रता से झुककर अपनी धाय मां के पांव छुए और फिर सबको सगर्व बतलाया कि, ‘देखिए ये मेरी मां हैं, बचपन में इन्होंने मुझे अपना दूध पिलाकर बड़ा किया है।’
प्रस्तुति : राजकिशन नैन