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हमास के उप-प्रमुख की हत्या से क्षुब्ध मिडिल ईस्ट

07:25 AM Jan 04, 2024 IST
हमास के उप प्रमुख की हत्या से क्षुब्ध मिडिल ईस्ट
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पुष्परंजन
मंगलवार को एक ड्रोन हमले में हमास के उप-नेता सालेह अल-अरौरी को मार गिराया गया। इस्राइली फोर्स ने बेरूत के एक अपार्टमेंट को निशाने पर लिया था, जहां सालेह अल-अरौरी की मौत हो गई। हमास ने इसकी पुष्टि की है और यह बताया है कि इस हमले में छह और लोग मारे गये हैं। सालेह अल-अरौरी ने अगस्त में कहा था, ‘मैं शहादत का इंतज़ार कर रहा हूं।’ अल क़सम ब्रिगेड के संस्थापक रहे सालेह अल-अरौरी ने इस्राइल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में फलस्तीनियों से हथियार उठाने की अपील की थी।
हमास ने हत्या की पुष्टि से अधिक कुछ कहा नहीं, किंतु उसके सहयोगी समूह ‘इस्लामिक जिहाद’ ने मंगलवार को एक बयान में अरौरी की हत्या का बदला लेने की कसम खाई, और कहा कि वह सज़ा दिए बिना नहीं मानने वाला। इस बयान से स्पष्ट है कि 2024 में इस्राइल और हमास के बीच शांति नहीं होने वाली। सालेह अल-अरौरी हमास में इस्माइल अल हानिया के बाद दूसरे नंबर के नेता माने जाते थे। आखि़री बार ईरानी मीडिया ने तेहरान में सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई के साथ अगस्त, 2023 में देखा था।
हानिया और अरौरी ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई के साथ किस पैलेस में मिले थे, इसकी जांच में पश्चिमी मीडिया के बहुत सारे पत्रकार लगाये गये थे। मशहूर फिल्म निर्माता और ईरानी विपक्ष के प्रवक्ता मोहसिन मखमलबाफ के अनुसार, ‘ईरान के सर्वाेच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई छह महलों में रहते हैं और उनके पास आठ निजी हवाई जहाज, पांच हेलीकॉप्टर और 1,000 से अधिक कारें हैं। मखमलबाफ ने ख़ामेनेई की निजी संपत्ति 30 अरब डॉलर और उनके परिवार की अतिरिक्त संपत्ति 6 अरब डॉलर बताई है। मखमलबाफ का कहना है कि ख़ामेनेई 10,000 पर्सनल गार्डों से घिरे रहते हैं, इसलिए यह जानकारी निकालना थोड़ा कठिन था कि हमास के नेता, उनसे किस महल में मिले। सालेह अल-अरौरी की हत्या ने ईरानी लीडरशिप को परेशान किया होगा, यह तो तय मानिये।
हमास के भीतर, अरौरी का अक्स प्रतिद्वंद्वी फलस्तीनी गुटों के बीच सुलह कराने के वास्ते वर्णित किया जाता था। सालेह अल-अरौरी के फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास की पार्टी फतह के साथ भी अच्छे संबंध थे, जिसका वर्चस्व वेस्ट बैंक में है। हमास और फतह के बीच वर्षों से मतभेद रहे हैं, 2007 में हमास के प्रतिद्वंद्वी गुटों से लड़ाई हुई थी। बाद में हमास ने गाजा की सत्ता पर कब्जा कर लिया था। बाद के दिनों में प्रतिद्वंद्वी संगठनों ने समय-समय पर बातचीत जारी रखी जिसमें सालेह अल-अरौरी की बड़ी भूमिका बताई जाती थी। अरौरी थोड़े लचीले माने जाते थे, मगर जब इस्राइल के साथ संघर्ष की बात आई, तो अरौरी को एक कट्टरपंथी के रूप में देखा गया। अरौरी ने सैन्य शाखा ‘इज़ अल-दीन अल-क़सम ब्रिगेड’ की स्थापना में मदद की थी। उसके हवाले से इस्राइल ने अरौरी पर घातक हमलों को अंजाम देने का आरोप लगाया था।
इस्राइली अधिकारियों के अनुसार, 2014 में वेस्ट बैंक में तीन इस्राइली किशोरों के अपहरण और हत्या में अरौरी की प्लानिंग थी। यह एक ऐसा कृत्य था जिसके कारण गाजा पर सात सप्ताह तक इस्राइली हमले होते रहे, जिसमें 2,100 फलस्तीनी मारे गये थे। यों, अरौरी को दिसंबर, 2023 में हुई शांति वार्ता में आगे रखा गया था। लेकिन अरौरी बंधकों की रिहाई पर अड़ंगे डालते रहे। उन्होंने दिसंबर में कहा था कि पूर्ण युद्धविराम होने तक बाक़ी बंधकों को रिहा नहीं किया जाएगा। बताते हैं कि इसके बाद ही इस्राइल के टारगेट में अरौरी आ गये। अब निशाने पर दूसरे हमास नेता याह्या सिनवार, मोहम्मद दीफ और मारवान ईसा हैं। ये लोग तुर्की के अलावा मिडिल ईस्ट के अलग-अलग ठिकानों में भूमिगत हैं। इस्राइल ने संकल्प किया है कि हमास की टॉप लीडरशिप इस्माइल हानिया ही हमारा टारगेट है। हानिया इस समय क़तर में हैं, मिस्र में हैं, लेबनान या ईरान में हैं, इसे सुनिश्चित करने में मोसाद लगा हुआ है। मोसाद यह समझने लगा है कि सालेह अल-अरौरी की हत्या के बाद से उसकी साख़ की वापसी हुई है।
तीन दशकों से अधिक समय तक इस्राइली खुफिया विभाग के साथ काम करने वाले उदी लेवी ने अल-अरौरी को ‘हमास के अंदर ईरान का आदमी’ बताया था। अमेरिका ने सालेह अल-अरौरी को 2015 में आतंकवादी घोषित किया था। अल-अरौरी को इस्राइल पर 7 अक्तूबर, 2023 के हमले का वास्तुकार माना जाता है। इसके अलावा वेस्ट बैंक में हमास की गतिविधियों का विस्तार करने में सालेह अल-अरौरी को बड़ी भूमिका के लिए भी जाना जाता था। वर्ष 1966 में रामल्ला के पास जन्मे अरौरी हमास की बुनियाद रखने वाले चंद लोगों में जाने जाते रहे। 1987 में जब हमास का गठन हुआ, तब फलस्तीनियों ने इस्राइली कब्जे के खिलाफ अपना पहला इंतिफादा विद्रोह शुरू किया था। उन दिनों अरौरी फलस्तीनी इंतिफादा के प्रमुख चेहरों में से एक थे।
अरौरी को 1992 में जेल में डाल दिया गया था। 2007 में उन्हें इस्राइल की जेल से रिहा किया गया। जेल से छूटने के तुरंत बाद उन्हें इस्राइल द्वारा निर्वासित कर दिया गया, और वे सीरिया चले गए, जहां वे खालिद मेशाल के नेतृत्व वाले हमास के राजनीतिक ब्यूरो में शामिल हो गए। बाद में अल-अरौरी इस्तांबुल चले गए। वहां उन्होंने अपना खुद का ब्यूरो स्थापित किया। वर्ष 2015 तक अरौरी तुर्की में थे, बाद में वह लेबनान चले आये। तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोआन से अरौरी की नजदीकियां बढ़ीं, चुनांचे अरौरी की हत्या को लेकर तुर्की भी ग़ुस्से में है। इस्राइली सेना के प्रवक्ता डैनियल हगारी ने अरौरी की हत्या पर सीधे तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन बाद में कहा कि सेना इस ऑपरेशन की तैयारी में थी, अब हम इसके अंजाम का सामना करेंगे।
वाशिंगटन ने इस्राइल के वित्त मंत्री बेजेलेल स्मोट्रिच को बुलाया है, जिन्होंने फलस्तीनी निवासियों को गाज़ा छोड़ने को कहा था। इस्राइल दरअसल, दो मोर्चे पर काम करता दिख रहा है। पहला गाज़ा से फलस्तीनी आबादी को स्थानांतरित करना, दूसरा हमास लीडरशिप का सफाया। इस पर इस्राइल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-गविर ने कहा कि अमेरिका हमारा सबसे अच्छा दोस्त है, लेकिन हम वही करेंगे, जो इस्राइल के लिए बेहतर होगा। हमास के उप-प्रमुख की मौत के बाद इस्राइली सेना के एक कमांडर ने कहा है कि वह किसी भी स्थिति के लिए तैयार है। इस बयान से डर है कि गाजा पट्टी में चल रहा युद्ध व्यापक क्षेत्रीय संघर्ष में बदल सकता है। यानी, जो कुछ हो रहा है, वह मध्यपूर्व के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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