सुलह-कुल का संदेश
तेजिंद्र
हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित एवं ‘रौनक’ हरियाणवी द्वारा रचित ‘सुलह-कुल’ एक दस्तावेज़ी पुस्तक है। ‘सुलह-कुल’ शीर्षक पढ़ते ही बादशाह अकबर द्वारा चलाई गई ‘सुलह-कुल’ की नीति का ध्यान आता है। इस नीति के अनुसार अकबर ने सर्व-धर्म समन्वय करते हुए सभी धर्मों से अच्छी बातें लेते हुए एक नया मज़हब चलाया था। ‘सुलह-कुल’ का लेखक भी सभी लोगों के हित की बात करता है। पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखता है।
लेखक राजा, राज्य, राजनीति, ईश्वर, जीवन-दर्शन, प्रेम, समाज एवं संस्कृति आदि की बात करता है। अतीत और आज के सम्बंधों की बात करते हुए लेखक कहता है : ‘कभी हज़ारों मील की दूरियां भी कोई मायने नहीं रखती थीं, मगर आज एक छत की दूरी भी बहुत बड़ा फ़ासला बनकर हमारे हाथ खींचकर हमें अलग कर रही हैं।’
इस पुस्तक में ‘रौनक़’ जी लेखक, चिंतक, विचारक, विश्लेषक तथा वार्ताकार की भूमिका एकसाथ निभाते हैं। अपनी बात की पुष्टि में वे उर्दू-फ़ारसी के शे’रों और हिंदी-अंग्रेज़ी की उक्तियों का सहारा लेते हैं। उर्दू-फ़ारसी न जानने वालों को कुछ शे’रों को समझने में कठिनाई हो सकती है। शे’र और उक्तियां उद्धृत करने योग्य हैं। इसलिये ‘सुलह-कुल’ संभाल कर रखने योग्य पुस्तक है।
पुस्तक : सुलह-कुल लेखक : रौनक हरियाणवी प्रकाशक : शब्दांकुर प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 298 मूल्य : रु. 500.