हरियाली अमावस्या के जरिये पर्यावरण संरक्षण का संदेश
धर्मग्रंथों के अनुसार अच्छी सेहत पाने के किए नीम का पौधा लगाना चाहिए। संतान के लिए केले का पौधा, सुख-शांति और समृद्धि पाने के लिए तुलसी का और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए आंवले का पौधा लगाना चाहिए। पीपल लगाने से पितृदोष दूर होता है तथा लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। बरगद का पौधा लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। शिवजी और गणेशजी का प्रिय वृक्ष सभी रोगों का नाश करता है।
चेतनादित्य आलोक
हिंदू संस्कृति में सावन का महीना वैसे ही विशेष धार्मिक-आध्यात्मिक महत्व का होता है, उसमें भी अमावस्या एवं पूर्णिमा तिथियां अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं कल्याणकारी मानी जाती हैं। गौरतलब है कि हिन्दू पंचांग के अनुसार एक चंद्र मास में दो पक्ष होते हैं- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में चंद्रमा छोटे से बड़ा होता जाता है और पक्ष के अंतिम यानी 15वें दिन पूर्णिमा तिथि होती है। वहीं, कृष्ण पक्ष के दौरान चंद्रमा बड़े से छोटा होने लगता है और पक्ष के अंतिम यानी 15वें दिन अमावस्या तिथि होती है। आकाश में चन्द्रमा की पूर्ण अनुपस्थिति अथवा महीने की सबसे काली रात को अमावस्या के रूप में जाना जाता है। अमावस्या तिथि को वर्ष के सबसे महत्वपूर्ण समय में से जरूरी समय माना जाता है। पूर्णिमा की तरह ही अमावस्या तिथियां भी वर्ष में 12 ही होती हैं। सनातन धर्म में यह तिथि पूर्वजों और देवताओं से जुड़ी होती है। अमावस्या पितृ दोष या कालसर्प दोष जैसे बड़े और घातक दोषों से निवारण पाने के उद्देश्य से यज्ञ, अनुष्ठान, पूजन, अर्चन, वंदन, व्रत आदि करने के लिए बेहतर समय होता है। इसीलिए इस दिन स्नान, दान आदि का विशेष महत्व होता है।
सावन महीने की अमावस्या को ‘श्रावणी अमावस्या’ कहा जाता है। बरसात का मौसम होने के कारण इस समय पूरी पृथ्वी हरी-भरी और संतुष्ट हो जाती है। प्रकृति में सर्वत्र फैली हरियाली संपूर्ण सृष्टि को सुंदर और मनोहारी बना देती है। यही कारण है कि सावन की अमावस्या को ‘हरियाली अमावस्या’ भी कहा जाता है।
हरियाली अमावस्या के व्रत में पर्यावरण संरक्षण का सारगर्भित संदेश अंतर्निहित है। गौरतलब है कि प्राचीन काल से ही इस दिन पौधे लगाने एवं उनका पूजन, वंदन आदि करने की परंपरा रही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि हमारी संस्कृति में आरंभ से ही पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण को संरक्षित करने की दृष्टि से ही पेड़-पौधों में ईश्वरीय रूपों को प्रतिबिंबित किया और उनकी पूजादि का विधान बनाया। भविष्य पुराण के अनुसार संतानहीन लोगों के लिए वृक्ष ही संतान होते हैं। इसलिए जो मनुष्य पौधे लगाते हैं, उनके लौकिक-पारलौकिक कार्य वृक्ष ही करते हैं। वहीं, नारद पुराण के अनुसार इस दिन देवपूजा के अतिरिक्त पौधरोपण करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।
धर्मग्रंथों के अनुसार अच्छी सेहत पाने के किए नीम का पौधा लगाना चाहिए। संतान के लिए केले का पौधा, सुख-शांति और समृद्धि पाने के लिए तुलसी का और लक्ष्मी प्राप्ति के लिए आंवले का पौधा लगाना चाहिए। पीपल लगाने से पितृदोष दूर होता है तथा लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। बरगद का पौधा लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। शिवजी और गणेशजी का प्रिय वृक्ष सभी रोगों का नाश करता है। इनके अतिरिक्त अशोक के पौधे लगाने से व्यक्ति का जीवन शोकमुक्त होता है, जबकि अर्जुन, नारियल एवं बरगद (वट) के पौधे लगाने से जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
हरियाली अमावस्या का उत्सव भारत के उत्तरी राज्यों जैसे राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश में तो लोकप्रिय है ही, साथ ही यह देश के कई अन्य राज्यों में भी अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे ‘गतारी अमावस्या’, आंध्र प्रदेश में इसे ‘चुक्कल अमावस्या’ तथा उड़ीसा में ‘चितलगी अमावस्या’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन यदि कुंवारी कन्याएं भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा करती हैं तो उन्हें मनचाहा वर मिलता है तथा सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कुंडली में कालसर्प दोष, पितृदोष या शनि का प्रकोप होने पर हरियाली अमावस्या के दिन शिवलिंग पर जल या पंचामृत से अभिषेक करने से लाभ होता है। वैसे इस दिन रुद्राभिषेक करना बेहद कल्याणकारी होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मछली को आटे की गोलियां तथा चींटियों को चीनी या सूखा आटा खिलाना शुभ होता है। साथ ही हरियाली अमावस्या के दिन हनुमान मंदिर जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करना तथा हनुमानजी को सिंदूर एवं चमेली का तेल अर्पित करना अत्यंत कल्याणकारी माना गया है।
पितृ दोष से मुक्ति
पितरों की आत्मा की शांति के लिए हवन-पूजा, श्राद्ध, तर्पण आदि करने के लिए तो हरियाली अमावस्या श्रेष्ठ तिथि होती है। इस दिन पितरों के निमित्त सुयोग्य पात्र को दान देने से पितृ खुश होते हैं, जिससे घर में खुशहाली आती है।
दीपदान
अग्नि पुराण के अनुसार जो मनुष्य इस दिन मंदिर अथवा नदियों के किनारे दीपदान करता है, उसके घर में सुख-समृद्धि आती है। बता दें कि यह चार्तुमास का समय होता है और चातुर्मास में मंदिर या पवित्र नदियों के किनारे दीपदान करने वाला मनुष्य विष्णु लोक को प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा स्थल पर जब तक दीपक जलता है, तब तक भगवान स्वयं उस स्थान पर उपस्थित रहते हैं, इसलिए वहां पर मांगी गई मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं।
बाबा वैद्यनाथ पर जलार्पण
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवघर में पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की थी। इसलिए सावन में बाबा वैद्यनाथ पर जलार्पण करने से व्यक्ति के पापों, तापों और संतापों का नाश होता है।