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सौदागर

08:54 AM Nov 05, 2023 IST

लघुकथा

मोहन राजेश

‘विश्व विजयी तिरंगा प्यारा झंडा ऊंचा रहे हमारा...’ हाथ में एक छोटा-सा राष्ट्रध्वज लेकर फटे-पुराने चिथड़ों में लिपटा तेरह-चौदह साल का एक लड़का उछल-उछल कर निरंतर नारेबाजी की टोन में यही गीत गा रहा था। देखने से ही वह कूड़ा-कचरा बीनने वालों की जमात का सदस्य नजर आ रहा था। सोचा शायद उसने राह में किसी मकान के दरवाजे पर लगा यह झंडा उठा लिया होगा। उसके गंदे हाथों में राष्ट्रध्वज...! मुझे अच्छा नहीं लगा।
मैंने उसे रोक कर सख्त लहजे में पूछा, ‘ऐ लड़के, यह झंडा तुमने कहां से उड़ाया है?’
‘एक बड़ी गाड़ी वाले साहब ने दिया है...’ बच्चे ने सहमे से स्वर में कहा, ‘मैंने कहीं से चुराया नहीं है, साहब।’
मुझे संदेह हुआ कि जरूर उसने मौका देख कर पार्किंग में खड़ी किसी कार पर लगा झंडा उतार लिया होगा। ‘झूठ बोलता है?’ मैं कुछ डपट कर बोला-- ‘साहब ने तुम्हें यह झंडा क्यों दे दिया?’
‘उन्होंने मुझसे अपनी गाड़ी साफ़ करवाई थी साहब। उनके पास पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने यह झंडा मुझे दे दिया।’ लड़के ने निर्भीकता के साथ स्थिति स्पष्ट की।
‘साहब के पास पैसे नहीं थे?’ मुझे लड़के की बात पर विश्वास नहीं हुआ।
‘उनके पास बीस का नोट था साहब, मेरे पास वापस लौटाने के लिए दस रुपए नहीं थे। मैं झंडे की ओर देख रहा था इसलिए मेमसाब ने झंडे की ओर इशारा करते हुए मुझसे पूछा -
‘यह झंडा लोगे?’
मैं सिर हिला कर ‘हां’ बोला तो मेमसाब ने कहा, ‘निकाल लो तुम्हारे गाड़ी साफ करने के काम आएगा।’
‘और मैंने अपनी मजदूरी के बदले में झंडा ले लिया साहब’। लड़के ने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा- ‘लेकिन यह झंडा मैंने गाड़ी साफ करने के लिए नहीं लिया है, मैं इसे अपनी झुग्गी पर लगाऊंगा।’
‘और तुम्हें यह ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’ गीत, किसने सिखाया?’ मैंने जिज्ञासावश पूछ लिया।
‘मेरी बहन स्कूल में साफ़-सफाई करने जाती है, वहीं पर उसने सुना और वह गुनगुनाती रहती है, मुझे भी यह गीत अच्छा लगा इसलिए...।’
‘यह राष्ट्रीय ध्वज है। झुग्गियों पर लगाने के लिए नहीं है। मुझे दे दो, मैं तुम्हें बीस रुपए दे देता हूं।’ -लड़के के गंदे हाथों से झंडा छुड़ाने के लिए मैंने कहा।
लड़के ने तमक कर जवाब दिया, ‘यह मेरे देश का झंडा है साहब, गाड़ी पोंछने या बेचने की चीज नहीं है। मेरा घर झुग्गी-झोपड़ी है तो मेरी झुग्गी पर भी तिरंगा लहरायेगा।’
मैं अवाक‍् रह गया।

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