कार्यस्थल में मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों, नियोक्ताओं के लिए गंभीर मुद्दा
रोहतक, 19 अक्तूबर (हप्र)
आज के समय में कार्यस्थल बेहद तेज गति से चल रहे हैं, जहां लोग लगातार व्यस्त रहते हैं। इस माहौल में मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। न केवल कर्मचारियों बल्कि नियोक्ताओं के लिए भी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के हालिया आंकड़ों के अनुसार, कामकाजी उम्र के लोगों में से 15 प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हैं।
पीजीआईएमएस रोहतक की मनोरोग विभाग की अंतिम वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टर भूमिका मलिक ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि अवसाद और चिंता के कारण हर साल अनुमानित 12 बिलियन कार्यदिवस नष्ट हो जाते हैं। इसके पीछे के कारणों में भारी कार्यभार, नौकरी की असुरक्षा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न और प्रबंधन से समर्थन की कमी शामिल हैं।
समस्याओं को साझा करने के लिए करें प्रोत्साहित
मनोरोग विभाग की प्रोफेसर डॉ. सुजाता सेठी ने बताया कि मानसिक बीमारियों को लेकर कलंक और दूसरों द्वारा आंका जाने का डर भी स्थिति को और जटिल बना देता है। इन समस्याओं को हल करने के लिए, नियोक्ताओं को आगे आकर जागरूकता फैलाने और कर्मचारियों को अपनी चिंताओं को साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। डॉक्टर सुजाता ने कहा कि इसके लिए खुली बातचीत को बढ़ावा देना, प्रबंधकों को मानसिक बीमारी के शुरुआती संकेतों और लक्षणों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित करना, काम के लचीले घंटे देना, कार्यशालाओं का आयोजन करना और परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराना और अत्यधिक काम और थकावट को रोकने के लिए रणनीतियां विकसित करना शामिल है।