संवेदना की स्याही से उकेरा स्मृति प्रदेश
अलका कौशिक
‘पूरब की बेटियां’ पुस्तक के पन्नों से गुजरते हुए बार-बार ख्याल आता है जैसे उनमें बंद शब्दों और शब्दों में गुंथे भावों से पहले भी कई बार मुठभेड़ हो चुकी है। हम उनमें पिरोए अहसासों की सुरंगों से गुजरे हैं और सुरंगों के उस पार चमकती रोशनी से पहले भी आंखें चुंधियायी हैं। अपनी फेसबुक वॉल को ‘मेमोरी कैनवस’ की तरह सजाकर रखने वाली शैलजा पाठक की यह पहली कथेतर विधा की किताब है, हालांकि इससे पहले उनके कुछेक कविता संग्रह आ चुके हैं।
राजकमल पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित ‘पूरब की बेटियां’ स्मृति-कथा या डायरी लेखन परंपरा को सींचती है। शैलजा ने इसमें अपनी यादों की तहों को बेलौस उघाड़ा है और पहले ही पन्ने से वह पाठक का हाथ खींचकर उसे अपने नैहर की गलियों में ला छोड़ती हैं। बनारस की उन गलियों में मध्यवर्गीय जीवन की रोज़-बरोज़ की घटनाएं हैं, आकांक्षाएं हैं, डर हैं, उधेड़बुन हैं, भटकन हैं...
किताब बनारस से आगे सरकती है तो स्निग्ध प्रेम को समर्पित कुछ पन्नों में अटकाती है। उनमें एक अजीब तरलता का अहसास तारी रहता है, भले ही शैलजा कहती हैं– ‘प्रेम हमारी धमनी में जम गया खून है।’ प्रेम की कई खोह हैं उनके पास जिनसे वह अकेली नहीं गुजरतीं, पाठक को साथ लिए चलती हैं।
किताब का कवर डिजाइन भी इशारा करता है कि इसमें स्त्री-विमर्श और उनके संघर्षों की दास्तां गुंथी हो सकती है। लेकिन यह जिस पूरब को हमारे सामने लाती है वह कोई दिशा नहीं बल्कि एक भौगोलिक-सांस्कृतिक क्षेत्र है। यह वही इलाका है जो शैलजा का स्मृति-प्रदेश है, जिसमें वह बार-बार लौटती हैं। यहीं है उनके नैहर का आंगन, नादानियों का परिवेश जिससे दूर मुंबई महानगर में जा बसने के कितने ही बरस बाद भी उनका मनोजगत यहीं है।
शैलजा की लेखनी की नोंक हर दम संवेदनाओं की स्याही में डूबी होती है और शुरू से आखिर तक नॉस्टेल्जिया की खुमारी उन पर तारी रहती है। माना कि डायरी विधा में लिखी गई किताब में सघन आत्मानुभव होंगे परंतु भावों की सघनता और अनुभवों की संश्लिष्टता के लिहाज़ से कुछ कमी-सी महसूस होती है। शैलजा के नॉस्टेल्जिक संसार में भाषा की रवानी और शब्दों के खेल भले से लगते हैं, उनके अहसासों की मासूमियत पर प्यार उमड़ता है। इस डायरी के बहाने उनके आत्मानुभव व्यापक संदर्भों में अधिक प्रासंगिक बन सकते थे।
पुस्तक : पूरब की बेटियां लेखिका : शैलजा पाठक प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 152 मूल्य : रु. 199.