राष्ट्रीय परिवेश की रागात्मक अभिव्यक्ति
अश्वनी शांडिल्य
समकालीन परिदृश्य के पहलुओं में आतंकवाद, अलगाववाद, वोट बैंक व तुष्टीकरण की घिनौनी राजनीति, नशे का ज़हर, छद्म धर्मनिरपेक्षता, ज़िंदगी के खट्टे-मीठे अनुभव, देश के प्रति गद्दारी, प्रकृति व पर्यावरण की चिन्ता तथा औरत की शक्ति, प्रेरणा व अस्तित्व आदि विषयों को ‘पगडंडी से पनघट तक’ पुस्तक में कवि सुशील हसरत नरेलवी ने नवगीत के आंशिक तत्वों के साथ रचनाओं की लय को साधकर चित्रित किया है।
‘कवि कुल गौरव’ में छद्म सेकुलरवादियों तथा धर्म के नाम पर बने हिंसक दरिंदों को ललकारते हुए कवि ने प्रश्न भी उठाया है कि ये लोग सह-अस्तित्व को क्यों नहीं स्वीकारते? ‘ज़िंदगी’ तथा ‘जीवन कहानी’ में ज़िंदगी के फलसफे को विभिन्न हालात के बीच हंसते-रोते, डगमगाते-खिलखिलाते हुए अनेक राहों पर चलते चित्रित किया गया है : ‘कैसी एहसास की जंग है ज़िंदगी/अनबुझी प्यास का अंग है ज़िंदगी।’ ‘पनघट’ अनुपयुक्त शीर्षक के बावजूद शानदार रचना है जो गुजरे जमाने की स्वर्णिम झलकियां प्रस्तुत करती है।
‘मुफ्तखोरी’ देशभक्ति की सुन्दर रचना है जो वोट बैंक की ओछी राजनीति के दलदल में धंसते जा रहे राष्ट्र की गंभीर चिन्ता के साथ-साथ उन लोगों को आगाह भी करती है जो छोटे स्वार्थों के वशीभूत अपनी ही जड़ खोद रहे हैं। बानगी देखिए : ‘कुछ पलों का राजसुख ‘कजरी’ सितम वो ढाएगा/ ये चमन अपना नहीं, गैरों का फिर हो जाएगा।’ कश्मीर में सेना पर पत्थरबाजी करने वाले तथा देश के सभी अलगाववादियों को बेनकाब करते हुए कवि ने तीखे-तल्ख शब्दों में अपनी बात कही है।
यदि इस संग्रह को नवगीत विधा की तात्विक तुला पर रखा जाए तो इसका वजन काफी हल्का प्रतीत होता है। नवगीत की विशेषताओं के चौखट में रखने पर यह पुस्तक अपनी वस्तुस्थिति को बयां कर देती है। नवगीत के कलेवर में 77 पृष्ठों में से 29 पृष्ठ नज़्मों को दे देना पुस्तक की विधा को लेकर संशय होता है।
पुस्तक : पगडंडी से पनघट तक कवि : डासुशील ‘हसरत’ नरेलवी प्रकाशक : सुकीर्ति प्रकाशन, कैथल पृष्ठ : 95 मूल्य : रु. 300.