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धारदार व्यंग्य की अर्थपूर्ण कहानियां

07:30 AM Sep 05, 2021 IST

सुशील कुमार फुल्ल

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वर्तमान समय अनेक विसंगतियों एवं समाज में हो रहे त्वरित बदलाव का समय है। स्वाभाविक है कि ऐसे समय में परम्परागत मान्यताएं टूटती हैं और नये प्रतिमान स्थापित होते हैं। ब्रह्मदत्त शर्मा का कहानी संग्रह ‘पीठासीन अधिकारी’ ऐसा ही एक संकलन है, जो यथार्थ को बहुत ही सार्थक ढंग से चित्रित करता है। संग्रह में कुल दस कहानियां हैं परन्तु सभी में कुछ ऐसा विचारोत्तेजक कथानक विद्यमान है जो पाठक को चाैंकाता तो हरगिज नहीं और न ही भरमाता है बल्कि उसका प्रभावी ढंग से यथार्थ से साक्षात्कार करवाता है। कहानियों में रोचकता बराबर बनी रहती है।

संग्रह की छठी कहानी ‘पच्चीस वर्ष बाद’ बहुत ही संतुलित, कलात्मक एवं अर्थ गाम्भीर्य से सम्पन्न कहानी है। दरअसल यह कहानी जीवन के अनेक पक्षों को एक साथ उजागर करती है। ढांचा तो प्रेम कहानी का बनाया गया है परन्तु प्रेम के अतिरिक्त भी इस में बहुत कुछ है। गांव और शहर के जीवन की तुलना, उनके समय के अनुरूप बदलते स्वरूप का चित्रण। सतनाम पच्चीस वर्ष बाद शहर में लौटता है और देखता है कि सब कुछ बदल गया है। गाड़ियां ही गाडि़यां, भीड़ ही भीड़। कोई उसे पहचानता ही नहीं। वह निराश होता है। वह अमीर बाप की बेटी शीतल को चाहता था परन्तु कभी प्रस्ताव नहीं कर सका। दीपक ने तो सुझाया था कि बोलना तो पड़ेगा ही परन्तु उसकी झेंप या उसकी आर्थिक स्थिति ने उसे कमजोर बना दिया था। शीतल भी कभी खुलकर निवेदन न कर सकी। यह तो सतिन्दर को बबीता से पता चलता है कि शीतल उसे चाहती थी। कहानी के मर्म को रचयिता ने बखूबी पकड़ा है। फ्लैश बैक में चलती कहानी अनेक प्रसंगों को सहजता से उठाती है।

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लेखक ने जो नारी की या कहिए शीतल की सुन्दरता का बखान किया है, वह स्वाभाविक है परन्तु हमें मध्यकालीन लेखकों के नख, शिख वर्णन की याद दिला देता है। यह संग्रह की एक बेजोड़ कहानी है। ‘गिरफ्तारी’ कहानी कृषक समाज की समकालीन समस्या को लेकर लिखी गई है, जो घोर यथार्थवादी तेवर के कारण प्रेमचन्द के होरी का स्मरण करवाती है। पराली जलाने की समस्या आज पंजाब, हरियाणा के किसानों पर थोप दी गई है। बनवारी का तर्क कि उसकी मां तो उम्र भर चूल्हे पर रोटियां बनाती रही है और पचासी साल की उम्र में भी उसकी आंखें उतनी ही तेज हैं, जितनी पहले थीं।

बुढ़ापे का एक दिन बेहद मार्मिक कहानी है जो वृद्धों की समस्या को सहानुभूति से उकेरती है। एक अन्य रोचक कहानी है ‘गुुरु गोविन्द’ जिसमें ईमानदार अध्यापक की प्रताड़ना एवं बिगड़ रहे शिक्षा वातावरण का चित्रण है। ‘पीठासीन अधिकारी’ कहानी तो यथार्थपरक प्रस्तुति के कारण पहले ही प्रशंसित हो चुकी है। संग्रह की अन्य कहानियां भी पाठक को न केवल बांध लेती हैं बल्कि उसे कुछ सोचने पर विवश भी करती हैं। ‘पीठासीन अधिकारी’ निस्सन्देह एक परिपक्व, कलात्मक पठनीय संग्रह है जो समकालीन समस्याओं को बखूबी उघाड़ता है।

पुस्तक : पीठासीन अधिकारी कहानी-संग्रह लेखक : ब्रह्मदत्त शर्मा प्रकाशक : केएल पचोरी प्रकाशन, गाजियाबाद पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 150.

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