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टिकट वंचितों के संन्यासी होने का मतलब !

06:35 AM Mar 09, 2024 IST

सहीराम

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वैसे तो जी यह रामराज्य आने का ही संकेत है, लेकिन कोई चाहे तो यह भी कह सकता है कि अच्छे दिन आ गए हैं। भले ही आंखों पर विश्वास न हो रहा हो, पर सच मानिए यह एकदम कलियुग से सतयुग या त्रेतायुग में संक्रमण का-सा दृश्य है। चाहे उलट दिशा में ही हो। कल के कलियुग में होता यह था कि चुनाव आते थे, तो टिकटों की दावेदारियां होती थी। हर सीट के लिए कोई हजार-पांच सौ दावेदार तो होते ही थे। एक-एक घर से पांच-पांच, दस-दस दावेदार होते थे। पोस्टर छपने लगते थे, पर्चे बंटने लगते थे। दीवारें दावेदारियों से पटने लगती थीं। सिटिंग विधायक और सिटिंग सांसद तो खैर दावेदार होते ही थे, साथ में पार्टी के भीतर उनके विरोधी, प्रतिद्वंद्वी और यहां तक कि दीगर परिवारीजन भी दावेदार होते थे।
जी, पार्टियों के भीतर भी और परिवारों के भीतर भी विरोध, प्रतिद्वंद्विता होती है। लेकिन आज के रामराज्य या सतयुग में यह नहीं होता। इसका श्रेय निश्चित रूप से नरेंद्र मोदीजी को देना होगा, वरना तो जी पार्टी दफ्तर दावेदारों के समर्थकों से ऐसे भरे होते थे, जैसे किसी जमाने में सिनेमा के पहले शो पर टिकट खिड़की पर भीड़ उमड़ा करती थी।
पहले के कलियुग में टिकट न मिलने या कटने पर बगावत आम होती थी। बागी या तो चंबल में होते थे या फिर चुनाव के वक्त पार्टियों में पैदा होते थे। इस चुनाव से उस चुनाव के बीच अलबत्ता कुछ असंतुष्ट तो अवश्य होते हैं, पर बागी नहीं होते। आजादी मिलने से पहले क्रांतिकारियों को भी बागी कह दिया जाता था और कुछ क्रांतिकारी टाइप के लोग अपना उपनाम तक बागी रख लेते थे। लेकिन अब बागी होने का वैसा एडवेंचर न बचा। बागी सिर्फ चुनाव के वक्त ही पैदा होते थे और चुनाव खत्म होते-होते, वे भी कहीं न कहीं अपना जुगाड़ फिट करके चुप हो बैठते थे वैसे जैसे रहीम ने कहा है-रहिमन चुप हो बैठिए देख दिनन को फेर। लेकिन अब चुनाव का टिकट कटने पर कोई बागी नहीं होता-कम से कम भाजपा में तो नहीं होता और सच तो यह है साहब कि दूसरी पार्टियों को उससे सीख लेनी चाहिए बल्कि वह मंत्र ले लेना चाहिए, जिससे बागियों को संत बनाया जा सके।
भाजपा में सचमुच ऐसा हो रहा है कि जिन्हें कल के कलियुग में बागी होना चाहिए था, वे आज के रामराज्य में संन्यासी हो रहे हैं। भाजपा में अब जिसका भी टिकट कटा या जो भी टिकट से वंचित हुआ, वही घोषणा कर रहा है कि मैं संन्यास ले लूंगा। डा‍ॅ. हर्षवर्धन से लेकर गौतम गंभीर तक या फिर रमेश बिधुड़ी, सब संन्यासी हो रहे हैं। यहां तक कि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी पुनः संन्यास की ओर जा रही हैं। तो जनाब सभी पार्टियों को यह मंत्र तो भाजपा से ले ही लेना चाहिए।

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