बात की बात और पेट पर लात
आलोक पुराणिक
साहबो धंधे पर लात, पेट पर लात बहुत डेंजरस होती है। सचमुच की लात तो क्या, लात की आशंका तक डरा देती है। मालदीव के कुछ नेता डर गये, इस आशंका से कि भारत के लक्षदीप पर टूरिस्ट आने लगे, तो मालदीव का क्या होगा। फिर मालदीप के नेताओं ने गाली-गलौज शुरू की, फिर फुल फाइट शुरू हो गयी।
धंधे पर लात सचमुच में पड़े या नहीं, आशंका से ही इतनी टेंशन पैदा हो सकती है। अपने-अपने धंधे को बचाना चाहिए। पर दूसरे से न लड़ना चाहिए। अपना धंधा बेहतर करना चाहिए, अपनी सर्विस बेहतर करनी चाहिए। कस्टमर बेहतर सर्विस, बेहतर प्रोडक्ट की तरफ जाता है। कंपीटिटर से क्या लड़ना, अपना आइटम बेहतर करो।
लक्षदीप अपने साथ कई दोस्तों को ले आया, फिर मालदीव की तुड़ाई की। लक्षदीप के साथ बहुत दोस्त बहुत जल्दी आ गये। लक्षदीप के साथ वो दोस्त भी आ गये, जिन्हें उसने बुलाया भी न था। मालदीव ने चीन के अपने दोस्तों को बुलाया, वो दोस्त न आये। लक्षदीप अकेले ही काफी था। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि औकात से ज्यादा न उछलना चाहिए, अगर वजन पचास किलो हो, तो एक सौ पचास किलो वाले पहलवान से न भिड़ना चाहिए।
दूसरी शिक्षा यह मिलती है कि दोस्तों के बूते दूसरों से पंगे नहीं लेने चाहिए। अपना बूता हो, तब ही लड़ना-भिड़ना चाहिए। तीसरी शिक्षा यह मिलती है कि बकवास कम करनी चाहिए और सोशल मीडिया पर बकवास तो बिलकुल ही नहीं करनी चाहिए। यह बात मालदीव के बर्खास्त बेरोजगार मंत्रियों से सीखी जानी चाहिए।
रोजगार की रक्षा कैसे की जाये, उसे बढ़ाया कैसे जाये, यह सीखना चाहिए शाहरुख खान से। शाहरुख बहुत-बहुत कामयाब फिल्म स्टार हैं, फिर भी काम की तलाश में रहते हैं।
शाहरुख खान ने हाल में एक कार्यक्रम में कहा कि अगर मणिरत्नम उन्हें अपनी फिल्म में काम दें, तो वह प्लेन के ऊपर छैंया-छैंया डांस करने को तैयार हैं। मणिरत्नम की एक फिल्म दिल से में शाहरुख ने रेलगाड़ी के ऊपर छैंया-छैंया डांस किया था। अब शाहरुख खान प्लेन पर छैंया-छैंया करने के तैयार हैं। यानी करीब पच्चीस सालों में चेंज हो गया। जो बंदा रेल के ऊपर डांस करता था, वह अब प्लेन के लेवल का हो गया है।
संबित पात्रा कह सकते हैं कि यह मोदीजी के नेतृत्व में हुआ है। कांग्रेस प्रवक्ता कह सकते हैं कि वह रेलगाड़ी भी नेहरूजी के जमाने में बनना शुरू हो गयी थी और प्लेन भी नेहरूजी के जमाने में बनना शुरू हुए थे। रोजगार मिलने चाहिए चाहे नेहरूजी के जमाने से मिलना शुरू हुए हैं या मोदी के जमाने से मिल रहे हैं।
बहरहाल, रोजगार की भूख सबकी वैसे ही हो, जैसी भूख शाहरुख खान में है।