मैरिज ब्यूरो सेवाएं भी उपभोक्ता कानून के दायरे में
श्रीगोपाल नारसन
टेलीविजन पर लंबे समय से चल रहे धारावाहिक ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में शायद आपने भी देखा होगा कि पत्रकार पोपट लाल अपनी शादी के लिए मैरिज ब्यूरो में निर्धारित शुल्क देकर रजिस्ट्रेशन कराता है फिर भी उसकी शादी नहीं हो पाती। लेकिन अगर शादी के लिए रिश्ता मिलने में मैरिज ब्यूरो की तरफ से कोई शिथिलता या सेवा में कमी की जाती है तो मैरिज ब्यूरो के विरुद्ध सेवा में कमी को लेकर उपभोक्ता अदालत के माध्यम से राहत प्राप्त की जा सकती है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग एर्नाकुलम की खंडपीठ ने मैट्रिमोनी साइट को शिकायतकर्ता की शादी हेतु मैच खोजने में सुविधा प्रदान करने में विफलता के लिए सेवाओं में कमी का उत्तरदायी ठहराया है। जिला आयोग ने कंपनी के विरुद्ध शिकायतकर्ता को 4,100 रुपये वापस करने और मुकदमे में खर्च के लिए 3,000 रुपये के साथ ही 25,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। शिकायतकर्ता ने 2 दिसंबर, 2018 को केरल मैट्रिमोनी वेबसाइट पर अपना बायोडाटा पंजीकृत किया था। इसके बाद, उन्हें कंपनी से कई कॉल आयी, और कंपनी के प्रतिनिधि ने 4,100/- रुपये शुल्क मांगा। शिकायतकर्ता ने 4,100/- रुपये भुगतान कर दिया। इस के बाद कंपनी ने शिकायतकर्ता के साथ कोई सम्पर्क नहीं किया और पूछने पर भी जवाब नहीं दिया।
कंपनी का तर्क : मात्र सूचनाओं तक पहुंच की मध्यस्थ
परेशान शिकायतकर्ता ने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग एर्नाकुलम में कंपनी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। शिकायत के जवाब में, कंपनी ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता को 21 जनवरी, 2019 से तीन महीने के लिए क्लासिक पैकेज के तहत 4,100 रुपये में एक विशिष्ट मैट्री आईडी के साथ पंजीकृत किया गया था। वह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत एक मध्यस्थ के रूप में काम करती है, जिसके तहत वह उपभोक्ता की सूचना प्रसारित करने या एक्सेस करने के लिए संचार प्रणालियों तक की सुविधा उपलब्ध कराती है। साथ ही कहा कि कंपनी के नियम और शर्तों में स्पष्ट है कि वह सेवा अवधि के भीतर शादी की गारंटी नहीं देता है।
उपभोक्ता आयोग ने माना गैर जिम्मेदारी
जिला उपभोक्ता आयोग ने मत दिया कि केरल मैट्रिमोनी के यहां भले ही शिकायतकर्ता ने दुल्हन खोजने के लिए आवेदन दिया हो, लेकिन शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए आवेदन के अनुसार शादी के लिए आने वाली लड़कियों का विवरण प्रदान करने के लिए कंपनी जिम्मेदार नहीं है। लेकिन कंपनी ने विवाह की सुविधा के लिए किसी भी जिम्मेदारी से इनकार कर दिया, जिसका अर्थ है कि शिकायतकर्ता के लिए दुल्हन खोजने में कंपनी को चिंता नहीं है। कंपनी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया कि उसने शादी की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए दुल्हन खोजने हेतु कोई कदम उठाया हो।
दिल्ली का मामला
एक अन्य मामले में पैसे लेकर भी मैरिज ब्यूरो ने शादी के लिए दुल्हन तलाश रहे व्यक्ति की मदद नहीं की। उसके फोन का जवाब तक देना भी बंद कर दिया। मामला उपभोक्ता आयोग में पहुंचा तो मैरिज ब्यूरो की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ। लिहाजा आयोग ने आदेश दिया कि शिकायतकर्ता के 31 हजार रुपये 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ वापस किए जाएं, साथ ही पांच हजार रुपये मुआवजा भी दिया जाए। दिल्ली निवासी सौरभ राय ने ग्लोबल एलायंस मैट्रीमोनी के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में केस दायर किया था। शिकायत में कहा था कि शादी के लिए रजिस्ट्रेशन उपरोक्त मैरिज ब्यूरो में कराया था और 14 दिसंबर 2016 को 31 हजार रुपये फीस दी। काफी समय गुजरने के बाद भी मैरिज ब्यूरो की तरफ से कोई दुल्हन नहीं तलाशी गई। शादी के लिए कोई प्रयास नहीं किया। जिसे आयोग द्वारा उपभोक्ता सेवा में कमी माना गया।
जानकारी देने में की बहानेबाजी
इसी प्रकार गुजरात के कलोल की एक उपभोक्ता अदालत ने एक मैरिज ब्यूरो को 1.11 लाख रुपये वापस करने का आदेश दिया है। उपभोक्ता द्वारा मैरिज ब्यूरो को पैसे देने के बाद भी उसे एक साल तक दुल्हन नहीं मिली थी। उपभोक्ता ने जुलाई 2020 में अपने बेटे के लिए दुल्हन खोजने के लिए मैरिज ब्यूरो को पैसे दिए थे। उस व्यक्ति ने आरोप लगाया कि पैसे देने के बाद उसे ब्यूरो की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गई,जब पीड़ित ने मैरिज ब्यूरो से संपर्क किया, तो उन्हें बताया गया कि उपयुक्त प्रोफाइल मिलने पर उन्हें सूचित किया जाएगा। कुछ समय बाद उन्हें एक युवती की प्रोफाइल दिखाई गई।
दो दिन बाद, ब्यूरो ने उपभोक्ता को बताया कि बायोडाटा प्राप्त करने में दो सप्ताह और लगेंगे, कुछ समय बाद ब्यूरो ने बताया कि लड़की की शादी हो चुकी है। एक महीने बाद दूसरी लड़की की फोटो दिखाई गई, लेकिन बायोडाटा नहीं दिया। इस पर पीड़ित ने गांधीनगर उपभोक्ता अदालत में वाद दायर किया। अदालत ने निर्णय दिया कि मैरिज ब्यूरो ने उचित सेवाएं प्रदान नहीं की और मैरिज ब्यूरो को धनवापसी का आदेश दिया गया व जुर्माना भी लगाया।
लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।