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मांगों को सिरे चढ़ाने के लिए दिल्ली कूच

08:06 AM Feb 14, 2024 IST
मांगों को सिरे चढ़ाने के लिए दिल्ली कूच
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सुरजीत सिंह

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नवंबर, 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने के साथ ही किसान आंदोलन खत्म हो गया था। इसमें कुछ मांगों पर सहमति बनने के बाद समय-समय पर बातचीत कर समस्याओं का समाधान करने पर सहमति बनी। यह किसान आंदोलन ऐतिहासिक था। आंदोलन की समाप्ति के समय पंजाब में विधानसभा चुनावों का जोर था। लगभग सभी किसान यूनियनों ने आंदोलन के दौरान गैर-राजनीतिक रहने का संकल्प लिया था। उन्होंने आंदोलन के दौरान राजनीतिक दलों को करीब नहीं आने दिया। जब पंजाब में चुनावों का दौर शुरू हुआ तो सबसे पहले हरियाणा के गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने इस चुनाव में कदम रखा और राजेवाल ग्रुप समेत बाकी किसान संगठनों ने इसका विरोध किया।
लेकिन जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता गया, बलबीर सिंह राजेवाल संयुक्त किसान मोर्चा की जगह संयुक्त समाज मोर्चा का झंडा लेकर चुनाव मैदान में कूद पड़े और पूरे पंजाब में अपने उम्मीदवार उतार दिए। राजेवाल जब चुनाव मैदान में उतरे तो किसान संगठनों ने कड़ा विरोध किया, लेकिन राजेवाल पीछे नहीं हटे। परिणामस्वरूप, राजेवाल की पार्टी को चुनाव में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। केवल एक उम्मीदवार ही अपनी जमानत बचा पाया, बाकी सभी की जमानत जब्त हो गई। बलबीर सिंह राजेवाल अपने निर्वाचन क्षेत्र समराला में अपनी जमानत बचाने में विफल रहे।
निस्संदेह, बलबीर सिंह राजेवाल बहुत बुद्धिमान किसान नेता हैं। किसान संगठनों में उनके स्तर के नेता विरले ही हैं। वह पूरे किसान आंदोलन में छाए रहे। वार्ता की मेज पर वे किसानों के मुद्दों पर अधिकारियों और भाजपा नेताओं पर भारी पड़े। जब वे बातचीत की मेज पर बैठते हैं तो पूरी तरह तैयार होकर आते हैं। आंदोलनकारी किसान संगठनों ने राजेवाल पर कई इल्जाम लगाए। इस हद तक कि उनके किसान संगठन को संयुक्त किसान मोर्चा से बाहर कर दिया गया। बाकी सभी किसान संगठन यदाकदा पंजाब में आंदोलन करते रहे। कभी बंदी सिंहों के नाम पर तो कभी पंजाब के पानी को बचाने के नाम पर। उन्होंने कभी केंद्र सरकार को धमकाया तो कभी राज्य सरकार को, लेकिन ठोस आंदोलन नहीं बन सका।
हाल ही में भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) ने पंजाब का पानी बचाने के नाम पर चंडीगढ़ में धरने की घोषणा की थी, लेकिन इसे वापस ले लिया गया। अब जब लोकसभा चुनाव नजदीक हैं तो किसानों ने भी केंद्र सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। अब किसानों का आंदोलन दो गुटों में तब्दील हो गया है। एक तरफ संयुक्त किसान मोर्चा और दूसरी तरफ संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक)। संयुक्त किसान मोर्चा में मुख्य रूप से भारतीय किसान यूनियन (लखोवाल), राजेवाल, भारतीय किसान यूनियन (एकता उगराहां), कादियां किसान यूनियन, आजाद किसान संघर्ष कमेटी, पंजाब किसान यूनियन, किरती किसान यूनियन (हरदेव) जम्हूरी किसान सभा, भारतीय किसान संघ शामिल हैं। किरती किसान मोर्चा (रोपड़), दोआबा किसान संघर्ष कमेटी, राष्ट्रीय किसान यूनियन, अखिल भारतीय किसान महासंघ समेत सरकारी कर्मचारी, व्यापारी, दुकानदार और ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ 16 फरवरी के भारत बंद में हिस्सा लेकर मोर्चा खोल दिया है।
जबकि मुख्य रूप से जगजीत सिंह डल्लेवाल के नेतृत्व में संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक), भारतीय किसान यूनियन (एकता सिद्धुपुर), किसान मजदूर संघर्ष समिति और भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) किसानों की मांगों को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ सीधे तौर पर भिड़ गए हैं। गैर-राजनीतिक मोर्चा पहले किसान आंदोलन की तरह अपना 6 महीने का राशन ट्रॉलियों पर लादकर दिल्ली की ओर बढ़ रहा है। पंजाब भर से सरकार की पाबंदियों के बावजूद किसानों का कारवां आगे बढ़ रहा है। साल 2021 के आंदोलन में सभी किसान संगठन एक मंच पर आकर केंद्र सरकार के खिलाफ खड़े हुए थे। साथ ही समाज के विभिन्न वर्गों से भी उन्हें भरपूर समर्थन मिला। वह अब उपलब्ध नहीं हैं। प्रमुख किसान संगठनों ने दिल्ली मार्च से मुंह मोड़ लिया है। इनमें गुरनाम सिंह चढ़ूनी और राकेश टिकैत के संगठन शामिल हैं।
दूसरी ओर, आम लोगों ने भी किसानों के रोजाना सड़क जाम करने के कार्यक्रमों का विरोध करना शुरू कर दिया है। आम तौर पर देखा गया है कि एक बार जब कोई आंदोलन सफल या असफल हो जाता है तो उसे दोबारा उसी रूप में खड़ा करना मुश्किल हो जाता है। किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार ने किसानों से बातचीत कर मसले को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन कुछ मांगों और सहमति को छोड़कर मामला सिरे नहीं चढ़ पाया। किसानों की मांगों में मुख्य रूप से डॉ. स्वामीनाथन के फार्मूले के अनुसार फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य, पूर्ण कर्जमाफी, फसलों और किसानों का बीमा, किसानों को प्रतिमाह दस हजार रुपये का भुगतान, लखीमपुर खीरी में किसानों पर दर्ज किए मुकदमे वापस लेना शामिल है। किसानों को कुचलने के दोषियों को सजा देने के साथ ही सभी मुद्दों का समाधान करने की मांग की गई है। इन्हीं मुद्दों और मांगों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के बैनर तले किसानों ने दिल्ली की ओर कूच किया है।

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