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एक त्योहार की अनेक कथाएं

06:37 AM Aug 28, 2023 IST

प्रभा पारीक
हिंदू धर्म में श्रावण मास को पवित्र माना गया है। इस पवित्र मास में रक्षाबंधन का संयोग इस दिन को और भी महत्वपूर्ण बनाता है। इस दिन के साथ अनेक धार्मिक कथाएं व मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
एक बार भगवान विष्णु से बलि राजा ने इन्द्र की मांग पर वैकुंठ का आधिपत्य मांग लिया तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मण स्त्री के रूप में बलि राजा को राखी बांध कर विष्णु के वैकुंठ धाम को वर स्वरूप उपहार के रूप में पुनः प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की थी। बाद में लक्ष्मी ने अपने पति का वैकुंठ वापस मांग कर अपनी असलियत बताई पर बलि राजा रक्षा सूत्र से प्रसन्न हुए।
एक कथा यह भी है कि यम की बहन यमुना प्रति वर्ष अपने भाई मृत्यु के देवता यमराज को पवित्र श्रावणी पूर्णिमा के दिन राखी का धागा बांध कर मंगल कामना करती थी। यम ने प्रसन्न होकर वरदान दिया कि जो भाई श्रावणी पूर्णिमा के दिन अपनी बहन से राखी बंधवा कर अपनी बहन को रक्षा का विश्वास दिलायेगा, उसे कभी परेशान नहीं करूंगा। इसीलिये रक्षाबंधन के दिन पवित्र धागा, जो राखी के नाम से जाना जाता है, बहनों द्वारा भाई की कलाई पर बांधने की प्रथा है। इन्द्राणी भी अपने भाई इंद्र को इसी दिन राखी बांधती है।
ब्राह्मणों के लिए यह दिन ऋषि तर्पण का दिन माना गया है। इसलिये हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन पुरुष अपना पवित्र धागा जनेऊ यज्ञोपवीत, जिसे बदलने का उत्तम दिन श्रावणी पूर्णिमा माना गया है। ऋर्षि तर्पण के बाद जिसे बदलकर पवित्र जल में बहाने की परंपरा है। महाराष्ट्र में इस दिन सत्यनारायण कथा करवाने की भी प्रथा है। वर्षा के जल से लबालब भरे समुद्र में नारियल को समुद्र में विसर्जित करने के बाद मछुआरे अपनी नौका समुद्र के जल में उतार कर पुनः अपने मछली पकड़ने के व्यवसाय में लग जाते हैं। यह मान्यता है कि इस दिन भगवान राम ने समुद्र में सेतु निर्माण का काम आरंभ किया था। इसीलिए हिंदू लोग पत्थर के प्रतीक स्वरूप नारियल को समुद्र में विसर्जित कर भगवान की अाराधना करते हुए, पृथ्वी, मानव जल, आकाश, वनस्पति की मंगल-कामना करते हैं।
वर्षा के बाद तृप्त धरा धान्य सम्पदा लुटाने का तत्पर होती है। किसानों में भी नई फसल का उत्साह होता है। नदी-नाले जल से सराबोर होते हैं। मौसम हर तरह से अनुकूल होता है, तब इस त्योहार के आगमन पर लाेगों का उत्साह शिखर पर होता है। भारत के कई राज्यों में इसे नारियली पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है। जहां रक्षाबंधन के साथ नदी, सरोवर, तालाब, सागर आदि के जल से भरपूर होने पर भगवान इंद्र व वरुण देव का आभार व्यक्त करते हुए नारियल अर्पण किया जाता है। नदी-नालों सरोवरों, कुओं आदि जल स्रोतों की पूजा की जाती है। जल से जुड़े नये व्यवसाय के लिये भी इस दिन को उत्तम माना गया है।

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