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मूंगफली से भी फली-फूली कई क्रांतियां

07:37 AM Jan 17, 2024 IST
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प्रदीप औदिच्य

बस या ट्रेन में सफर करते हुए मूंगफली आपने नहीं खाई तो, भारतीय हैं ही नहीं। मूंगफली कहो या सींगदाना या कुछ भी नाम, पर इसने हमारे देश में सामाजिक क्रांति की मशाल थाम रखी है। गर्म बालू रेत पर सिंकी हुई मूंगफली को देखकर अगर आपका हाथ खुद ब खुद नहीं उठता तो आप किसी दूसरे ग्रह से आए हैं या आपकी सूंघने की शक्ति समाप्त हो गई है।
मूंगफली को गरीब और अमीर बिना किसी भेदभाव के खाते हैं, वह गजक में भी काम आती है, और चखने में भी। वह गली के किसी नुक्कड़ के ठेले पर भी मिल सकती है और साफ-सुथरी नमक मिली पैकिंग में वह महंगे मॉल में सजी-धजी इतराती है। वह गरीबों का ड्राई फ्रूट है तो अमीरों का शौकिया टाइम पास। ट्रेन में, बस स्टैंड पर, एयरपोर्ट के स्टोर में सब जगह उसकी पहुंच है। सर्दियों में सारे हिंदुस्तान में गर्म मूंगफली के ठेले पर लोग खरीद के मूंगफली खा रहे हैं। मूंगफली क्या है, अनाज है, फल है, ड्राई फ्रूट है, तिलहन है क्या, इसका विश्लेषण करते रहिए पर, कुछ तो ऐसा है उसमें कि इसका कई तरीके से खाने में प्रयोग किया जा सके। सामाजिक न्याय दिलाने और समानता का भाव कायम रखने में मूंगफली का अभूतपूर्व योगदान रहा है। सर्दियों में ठेके पर न जाने वाले लोग ठेले पर खड़े होकर इसको खरीदते हैं, जब तक ठेले वाला मूंगफली तोलता है तब तक, चार-पांच मूंगफली उठाकर खा जाना ये हमारी अघोषित परंपरा होती है।
न्यूटन ने जहां गुरुत्वाकर्षण के नियम पेड़ से गिरते हुए सेब से खोजा था, वहीं गति का नियम मूंगफली के ठेले से लिया था, उसका मानना था कि जो दोस्त मूंगफली खरीद कर लाता है, उसकी खाने की गति अन्य तीन दोस्तों की अपेक्षा अधिक होती है, ये गति का नियम है।
बेरोजगारी दर को कम करने के लिए भी मूंगफली का योगदान है। किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी की तुलना में मूंगफली ने अधिक रोजगार दिया हुआ है, ट्रेन से लेकर ठेले तक मूंगफली रोजगार देती है। वह देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करती है। मूंगफली का साहित्य क्षेत्र में भी अभूतपूर्व योगदान है, कई साहित्यकारों की किताबों के पन्ने मूंगफली बेचने के काम आए।
एक शहर में कवि सम्मेलन था। कवि सम्मेलन के पंडाल के बाहर रात को एक मूंगफली का ठेला लगा था। रात भर कवि सम्मेलन चला। उसी ठेले पर खड़े होकर मूंगफली खरीदी। वह मूंगफली वाला कवि सम्मेलन की बहुत तारीफ कर रहा था। मैं बहुत खुश हुआ उसकी साहित्य अभिरुचि देख कर। बाद में उसने बताया कि कविता वगैरह उसने कुछ नहीं सुना। न वह कवियों को जानता है। बस उसकी मूंगफली ज्यादा बिक गई है, वह इसलिए खुश है, और गर्म मूंगफली के ठेले ने रात भर श्रोताओं को वहां रुकने में सहायता भी की।
राजनीतिक क्षेत्र में भी इसका थोड़ा-बहुत योगदान है। नेता अपने कार्यकर्ताओं को मूंगफली की पुड़िया पकड़ा कर खुश कर देते हैं और खुद काजू के डिब्बे से भी खुश नहीं होते, जब तक उस डिब्बे में रंग-बिरंगे नोट न हों। कार्यकर्ता मूंगफली नमक लगाकर खाता है और नेता जी का नमक अदा करता है।

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