मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

अनेक देशों में है सूर्य उपासना की परंपरा

07:48 AM Nov 04, 2024 IST
फाइल फोटो

चेतनादित्य आलोक
छठ महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष में मनाया जाने वाला चातुर्मास का अंतिम त्योहार है। इसके पहले दिन ‘नहाय खाय’ में व्रती नहा-धोकर शुद्ध-सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन ‘खरना’ में व्रतधारी दिन भर उपवास करके छठी माई का पूजन कर गुड़ से बनी खीर एवं पूरी या रोटी का प्रसाद स्वयं भी ग्रहण करते हैं और श्रद्धालुओं में भी वितरित करते हैं। तीसरे दिन ‘पहला अर्घ्य’ होता है, जब व्रतधारी जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी भगवान श्री सूर्य नारायण को अर्घ्य देते हैं। चौथे दिन ‘दूसरा अर्घ्य’ होता है, जब उदीयमान भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रती श्रद्धालुओं में ठेकुआ, फल, सब्जियां, ईख इत्यादि का प्रसाद वितरित करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ-पूजा को श्रद्धापूर्वक करने से सुख-समृद्धि एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। इस वर्ष यह 5 से 8 नवंबर तक मनाया जाएगा।

Advertisement

सूर्योपासना का महत्व

भारतीय संस्कृति में उद्भव काल से ही सूर्योपासना का बड़ा महत्व रहा है। ऋग्वैदिक युग में भगवान सूर्य को जीवों की चराचर आत्मा मानकर उनकी उपासना की जाती थी। आज भी हिंदुओं के सारे तीज-त्योहार सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार ही मनाए जाते हैं। गौरतलब है कि भारत के आदिकालीन सूर्यवंशी भरत राजाओं का यह मुख्य पर्व था। मगध और आनर्त प्रदेशों के राजनीतिक इतिहास के साथ भी छठ-पूजा की ऐतिहासिक कडि़यां जुड़ी हुई हैं। वैसे उत्तराखंड का उत्तरायण पर्व, केरल का ओणम, कर्नाटक की रथ-सप्तमी तथा बिहार का छठ महापर्व मूलतः सूर्य-संस्कृति की उपासना के द्योतक हैं। चार दिनों तक चलने वाले छठ-पूजा का आयोजन तब होता है, जब भगवान श्री सूर्य नारायण दक्षिणायन होते हैं।

सूर्योपासना की परंपरा

सूर्य भगवान की उपासना का स्रोत भारतवर्ष रहा है। हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्रदत्त सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व आरंभ में मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता था, परंतु अब यह विराट् रूप ले चुका है, जिसके मानने और मनाने वाले संपूर्ण विश्व में पाए जाते हैं। वैसे भगवान सूर्य की उपासना की परंपरा किसी न किसी रूप में दुनिया भर की सभ्यताओं और संस्कृतियों में रही है। मान्यता है कि सिकंदर के अभियानों के पश्चात सीरिया में सूर्य-पूजा प्रारंभ हुई, जिसका प्रभाव पड़ोसी देश ईरान पर भी पड़ा। तत्पश्चात ईरान से होते हुए सूर्योपासना की परंपरा रोम तक पहुंची।

Advertisement

यूनान में सूर्य पूजा

भारत के बाद सूर्य-पूजा को सर्वाधिक महत्व यूनान में दिया जाता है। यूनान के दार्शनिक प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘रिपब्लिक’ में सूर्य यानी ‘हेलियोस’ की पूजा की महिमा का गुणगान किया है। यूनानी मान्यतानुसार हेलियोस घोड़े पर विराजमान रहते हैं और उनके घोड़े से आग के समान ज्वालाएं निकलती रहती हैं। यूनानी गाथाओं के अनुसार भगवान ‘सोल’ भी सूर्य के ही सूचक हैं और हेलियोस के समतुल्य हैं।

जापान में देवी के रूप में

जापानी गाथाओं के अनुसार जापान में भगवान सूर्य माता के रूप में पूजे जाते हैं। सूर्य यानी ‘अमतेरासू’ संपूर्ण ब्रह्माण्ड की देवी ‘ओमिकानी’ हैं। जापान के होनशू द्वीप पर अमतेरासू-ओमिकानी के मंदिर भी पाए जाते हैं, जहां पर हमारे देश में लगने वाले कुंभ मेले की भांति प्रत्येक 20 वर्ष के बाद एक मेला लगता है, जिसे ‘सिखिन सेंगू’ कहते हैं। उक्त अवसर पर जापानी लोग अमतेरासू-ओमिकानी यानी सूर्य देवी की पूजा भी करते हैं। प्राचीन जापानी मान्यताओं के अनुसार जापान का सम्राट सूर्य का वाहक होता है।

अमेरिका में खुशहाली के देवता

अमेरिकी गाथाओं के अनुसार विश्वभर में कई युगों तक अंधकार छाया रहा था, जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन असंभव था। उस काल में सूर्यदेव स्वर्ग में निवास करते थे। मध्य अमेरिकी देशों के मूल निवासियों (आजटेक) लोगों ने विश्व के कल्याणार्थ अपने प्राणों की बलि देकर सूर्यदेव को प्रसन्न किया। तात्पर्य यह कि इससे पूर्व चार बार ब्रह्माण्ड में सूर्य का प्राकट्य और अवसान हो चुका है। अमेरिका में ‘तोनतिहू’ यानी सूर्य अपनी काया से प्रकाश की किरणें निकालते हैं और आजटेक लोगों की रक्षा करते हैं। वे फसलों को खुशहाली और मनुष्यों को जीवन प्रदान करते हैं।

मिस्र

मिस्र में उदीयमान सूर्य को ‘होरूस’, दोपहर के सूर्य को ‘रा’ और अस्त होते सूर्य को ‘ओसिरिस’ कहते हैं। मिस्र की लोक मान्यताओं के अनुसार विश्व भर में ‘रा’ का राज है। ये ‘रा’ बाज का सिर लिए पूरी दुनिया की रखवाली और असुरों से मानव जाति की रक्षा करते हैं। प्राचीन मिस्र में ‘रा’ की पूजा का विधान था, परंतु मिस्री फराओ अमेनहोटेप चतुर्थ ने पुरानी परंपरा को समाप्त करते हुए लोगों से कहा कि वे अब नए सूर्य ‘अटेन’ की पूजा करें।

ईरान में मित्र रूप में

ईरान में सूर्य को ‘मित्र’ कहा जाता है। यह एक अनूठा उदाहरण है कि ईरानी ‘मित्र’ को ग्रीक और रोमन लोग भी सूर्य का ही प्रतीक मानते हैं। वहीं, वैदिक साहित्य के अनुसार ‘मित्र’ सूर्य भगवान के सहयोगी देवता हैं। ईरानी सभ्यता में ‘मित्र’ का पदार्पण ईसा पूर्व 200-300 के मध्य हुआ था।

Advertisement