मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

कृषि व किसान को समृद्ध करने का मंत्र

06:30 AM Oct 25, 2024 IST

मधुरेन्द्र सिन्हा

Advertisement

भारत को 2028 तक पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का इरादा है, और इसमें जिन तत्वों और सेक्टर के योगदान की जरूरत पड़ेगी, उनमें एक है सहकारिता क्षेत्र। यह भारतीय कृषि की रीढ़ है और इससे ही कृषि और कृषक समृद्ध हो रहे हैं। दुनियाभर में जितने भी सहकारिता संगठन हैं, उनका 27 फीसदी अकेले भारत में है, और उससे देश की कुल जनसंख्या का 20 फीसदी हिस्सा जुड़ा हुआ है। देश में इस समय कुल 8.55 लाख को-ऑपरेटिव सोसायटीज़ हैं और इनमें 29 करोड़ लोग सीधे तौर से शामिल हैं, जिन्हें इससे रोजगार और वित्तीय सुरक्षा मिलती है।
विश्व के सबसे बड़े 300 को-ऑपरेटिव में भारत के इफको, कृभको और अमूल इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। इन्होंने करोड़ों भारतीयों को न केवल रोजगार दिया है बल्कि उन्हें सम्मानजनक जिंदगी भी दी है। भारत का सहकारिता क्षेत्र कृषि ऋण देने में भी ऊंचा स्थान रखता है। भारत के कुल कृषि ऋण का 20 फीसदी इस क्षेत्र के जरिये बंटता है। कृषि उत्पादन में भी इसका बड़ा योगदान है और हमारी कुल कृषि उपज का 21 फीसदी इसी क्षेत्र से आता है। भारत की चीनी मिलों के बारे में तो सभी जानते हैं। को-ऑपरेटिव सेक्टर की चीनी मिलें कुल चीनी का 31 फीसदी उत्पादित करती हैं। गेहूं और चावल की खरीद में भी इस क्षेत्र का बड़ा योगदान है।
नि:संदेह, इस क्षेत्र में वह क्षमता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को पांच खरब डॉलर के लैंडमार्क तक ले जा सकता है। इसे ही ध्यान में रखकर वर्ष 2021 में एक नया स्वतंत्र मंत्रालय बनाया गया, जिसे सहकारिता मंत्रालय का नाम दिया गया। इसकी कमान गृह मंत्री के हाथों में सौंपी गई। मंत्रालय का जोर कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण के अलावा उसे सशक्त बनाने पर है और उसमें उसे सफलता मिल रही है। इस मंत्रालय ने एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य सामने रखा है और वह देश की दो लाख पंचायतों में अगले पांच वर्षों में बहूद्देशीय प्राथमिक क्रेडिट सोसायटियों यानी पैक्स का गठन करने के महत्वपूर्ण कार्य में जुटा हुआ है। इनमें से अब तक 12,000 से भी ज्यादा का पंजीकरण हो चुका है और शेष इसी रास्ते पर हैं।
दरअसल, सहकार से समृद्धि का जो विजन रखा गया है उसके लिए देश में सहकारिता आंदोलन को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि देश में यह स्थायित्व को बढ़ावा दे, जो आगे चलकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। इन नये पैक्स, डेयरी तथा मत्स्य पालन सहकारिता सोसायटीज को हर पंचायत में गठित किया जा रहा हैै। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
सहकारिता मंत्रालय ने नाबार्ड, एनडीडीबी और एनएफडीबी के साथ मिलकर उन पंचायतों में, जो अभी इसके अंतर्गत नहीं आई हैं, बड़ी संख्या में छोटे तथा सीमांत किसानों को जोड़ना शुरू कर दिया है। इसका ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जबर्दस्त असर पड़ेगा। प्राथमिक कृषि क्रेडिट सोसायटीज को 300 तरह की ई-सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है जिनमें बैंकिंग, बीमा, आधार पंजीकरण और उनके अद्यतन की व्यवस्था है। अगले पांच वर्षों में मंत्रालय 70,000 नये बहूद्देशीय पैक्स गठित करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है। इसके अलावा, वह बड़े पैमाने पर नये बहूद्देशीय डेयरी को-ऑपरेटिव सोसायटीज और 6,000 नये मत्स्य पालन को-ऑपरेटिव भी स्थापित करना चाहता है। वर्तमान के 46,500 डेयरी को-ऑपरेटिव और लगभग 5,500 मत्स्य पालन को-ऑपरेटिव भी मजबूत किये जायेंगे। इसके लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना सहित कई स्कीमों की मदद ली जायेगी। इसके साथ ही 25,000 नये पैक्स, डेयरी और मत्स्य को-ऑपरेटिव गठित करके राज्य सरकारें भी इस दिशा में योगदान करेंगी।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2025 को संयुक्त राष्ट्र ने सहकारिता का वर्ष घोषित किया है। उस साल का थीम होगा—को-ऑपरेटिव बनाते हैं एक बेहतर दुनिया। इसके लिए राजधानी दिल्ली में नवंबर महीने में इसका बाकायदा उद्घाटन होगा।
भारत को-ऑपरेटिव सेक्टर में सबसे बड़ी विकेन्द्रित अनाज भंडारण योजना पर काम कर रहा है। इसमें 27 राज्य और केन्द्रशासित राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर के सभी बड़े को-ऑपरेटिव फेडरेशन आयेंगे। इसने व्हाइट रिवोल्यूशन 2.0 को भी सभी के सामने रखा है। यह नई श्वेत क्रांति महिलाओं का सशक्तीकरण करेगी, रोजगार बढ़ायेगी और सहकारिता का दायरा फैलायेगी। ऐसी योजना है कि पांचवें वर्ष तक डेयरी को-ऑपरेटिव ही अकेले 1,000 लाख किलोग्राम दूध हर दिन इकट्ठा करें। इससे गोपालकों की आय बढ़ेगी और रोजगार भी बढ़ेगा। सहकारिता मंत्रालय की कोशिश है कि भारत दुग्ध प्रसंस्करण उपकरणों का सबसे बड़ा निर्माता भी बने। सहकारिता मंत्रालय अन्नदाताओं को ऊर्जादाता बनने के लिए प्रेरित कर रहा है। अगर किसानों को इस दिशा में प्रेरित किया जा सकेगा तो वे 10 लाख करोड़ रुपये तक के इम्पोर्ट बिल को कम कर सकते हैं। इसके लिए किसान कृषि अवशेषों से ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत तैयार करें। इससे उनकी आय भी बढ़ेगी और ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने में मदद भी मिलेगी।

Advertisement
Advertisement