निर्मलता का मंत्र
06:57 AM Jun 01, 2024 IST
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संत रामानुज जब प्रात:काल गंगा में स्नान करने जाते थे, तो ब्राह्मणों के कंधों पर हाथ रखकर जाते थे और लौटते समय हरिजनों के कंधों पर हाथ रखते आते थे। एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, ‘संतवर, यह क्या पाखंड-सा है कि आप जब स्नान करने जाते समय ब्राह्मणों के कंधों पर और आते समय हरिजनों के कंधों पर हाथ रखते आते हैं।’ विनम्रतापूर्वक रामानुज जी बोले, ‘मेरे प्यारे! जब मैं ब्राह्मण के कंधे पर हाथ रखता हूं तो मुझे इनके अंदर छुआछूत का मैला भाव मालूम पड़ता है और जब मैं हरिजन के कंधे का स्पर्श करता हूं तो मेरा मन शुद्ध, पवित्र तथा निर्मल-सा हो जाता है।’ छुआछूत को खत्म करने के संत के इस अनूठे तरीके का लोगों पर इतना प्रभाव पड़ा कि अनेक लोगों ने हरिजनों से छुआछूतपूर्ण व्यवहार का त्याग कर दिया था।
प्रस्तुति : बनीसिंह जांगड़ा
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