Manmohan Singh: मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को बताया था ‘‘विघटनकारी'' फैसला
नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा)
Manmohan Singh: भारत के आर्थिक सुधारों के वास्तुकार के रूप में प्रशंसित पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2019 में अपने अंतिम साक्षात्कार में से एक में देश की अर्थव्यवस्था को ‘‘अत्यधिक विनियमित'' करार देते हुए कहा था कि सरकार इसे नियंत्रित करती है, हस्तक्षेप बहुत अधिक बढ़ गया है और यहां तक कि नियामक भी ‘‘नियंत्रक में बदल गए हैं''।
अपने उत्तराधिकारी नरेंद्र मोदी के लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने से कुछ दिन पहले पांच मई, 2019 को ‘पीटीआई-भाषा' को दिए एक विशेष साक्षात्कार में सिंह ने आसन्न मंदी का संकेत देने के लिए तत्कालीन आर्थिक विकास के आंकड़ों का हवाला दिया था।
उन्होंने आर्थिक नीतियों में अदालतों के ‘‘बढ़ते हस्तक्षेप'' पर भी निराशा जाहिर की और कहा कि कांग्रेस अर्थव्यवस्था को अलग तरीके से संभालती। सिंह 2004 से 2014 तक दो कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री रहे। उन्हें भारत की आर्थिक सुधार प्रक्रिया का नेतृत्व करने का श्रेय दिया जाता है।
उन्होंने आरोप लगाया था कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में देश की अर्थव्यवस्था की गतिशीलता के बारे में दूरदृष्टि या समझ का अभाव है, जिसके कारण नोटबंदी जैसे ‘‘विघटनकारी'' फैसले लिए गए, जिसे उन्होंने पहले ‘‘संगठित लूट और वैधानिक डकैती'' करार दिया था।
सिंह ने यह भी कहा था कि लोग मौजूदा सरकार की हर दिन की बयानबाजी और दिखावटी बदलावों से ‘तंग' आ चुके हैं। उन्होंने कहा कि इस ‘‘भ्रम और दंभ भरी आत्मप्रशंसा'' के खिलाफ बदलाव की लहर उठ रही है। उन्होंने कहा कि वे हमेशा सरकार की समीक्षा और जवाबदेही का स्वागत करते रहे हैं, क्योंकि यह लोकतंत्र का अभिन्न अंग है।
सिंह ने दावा किया था कि आरोप लगने पर उन्होंने अपने ही लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी। उन्होंने कहा था कि मोदी के नेतृत्व वाली सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों के प्रति असंवेदनशील है, वह खुद को इसके लिए जवाबदेह नहीं मानती है। पूर्व प्रधानमंत्री ने दावा किया कि मोदी सरकार पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के वादे पर सत्ता में आई थी। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों में ‘‘हमने भ्रष्टाचार को अकल्पनीय स्तर तक बढ़ते देखा है।''
उन्होंने कहा कि नोटबंदी संभवत: स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा घोटाला था। भारत के आर्थिक सुधारों के जनक और राजनीति की मुश्किल भरी दुनिया में आम सहमति बनाने वाले डॉ. सिंह का बृहस्पतिवार देर रात दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे।
मनमोहन सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी की कड़ी आलोचना की थी
इस वर्ष हुए लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का स्वास्थ्य ठीक नहीं था लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कड़ी आलोचना करते हुए उन पर 'घृणास्पद भाषण' देकर सार्वजनिक विमर्श की गरिमा और प्रधानमंत्री पद की गंभीरता को कम करने का आरोप लगाया था। यह एक प्रकार से संकेत था कि खराब स्वास्थ्य के बावूजद उनके अंदर का राजनेता पूरे जोश में है।
सिंह ने लोकसभा चुनाव के सातवें चरण के तहत एक जून को होने वाले मतदान से पहले पंजाब के मतदाताओं से अपील करते हुए कहा था कि केवल कांग्रेस ही एक ऐसा विकासोन्मुख प्रगतिशील भविष्य सुनिश्चित कर सकती है, जहां लोकतंत्र और संविधान की रक्षा होगी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने सेना में अल्पकालिक भर्ती की ‘अग्निपथ' योजना को लागू करने के लिए भी भाजपा सरकार पर निशाना साधा था और इसे उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया था।
पंजाब के मतदाताओं को लिखे इस पत्र में उन्होंने कहा था, "भाजपा सोचती है कि देशभक्ति, शौर्य और सेवा का मूल्य केवल चार साल है। यह उनके नकली राष्ट्रवाद का परिचायक है।" कांग्रेस ने पंजाब में लोकसभा चुनाव से पहले लिखे गए सिंह के इस पत्र को 30 मई को मीडिया को जारी किया था। सिंह ने कहा था कि नियमित भर्ती के लिए प्रशिक्षण लेने वालों को मोदी सरकार ने बुरी तरह धोखा दिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘सशस्त्र बलों के माध्यम से मातृभूमि की सेवा करने का सपना देखने वाला पंजाब का युवा, किसान का बेटा अब केवल चार साल के कार्यकाल के लिए भर्ती होने के बारे में दो बार सोच रहा है। अग्निवीर योजना राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालती है। इसलिए कांग्रेस पार्टी ने अग्निवीर योजना को खत्म करने का वादा किया है।"
मोदी पर हमला बोलते हुए सिंह ने कहा था, 'मैं इस चुनाव अभियान के दौरान राजनीतिक संवाद पर करीबी नजर रख रहा हूं। मोदी जी नफरत फैलाने वाले भाषणों के सबसे शातिर रूप में लिप्त हैं, जो प्रकृति में विशुद्ध रूप से विभाजनकारी हैं। मोदी जी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने सार्वजनिक संवाद की गरिमा को कम किया है और इस तरह उन्होंने प्रधानमंत्री के पद की गंभीरता को कम किया है।"
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था, "अतीत में किसी भी प्रधानमंत्री ने इस तरह के घृणास्पद, असंसदीय और असभ्य शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है जो कि समाज के किसी खास वर्ग या विपक्ष को निशाना बनाने के मकसद से कहे गए हों। उन्होंने मेरे लिए कुछ गलत बयान भी दिए हैं। मैंने अपने जीवन में कभी भी एक समुदाय को दूसरे से अलग नहीं किया है। यह भाजपा का एकमात्र कॉपीराइट है। भारत के लोग यह सब देख रहे हैं।"
उन्होंने मतदाताओं से भारत में प्यार, शांति, भाईचारे और सद्भाव को एक मौका देने की अपील की थी और पंजाब के मतदाताओं से विकास और समावेशी प्रगति के लिए मतदान करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था, "मैं सभी युवाओं से अपील करता हूं कि वे सावधानी बरतें और उज्जवल भविष्य के लिए मतदान करें। केवल कांग्रेस ही विकासोन्मुख प्रगतिशील भविष्य सुनिश्चित कर सकती है, जहां लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की जाएगी।"
मनमोहन सिंह ने 1991 के ऐतिहासिक केंद्रीय बजट का बचाव कैसे किया?
नयी दिल्ली, 27 दिसंबर (भाषा) भारत के आर्थिक सुधारों के जनक मनमोहन सिंह को 1991 के अपने उस ऐतिहासिक केंद्रीय बजट की व्यापक स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिए अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ा था, जिसने देश को अपने सबसे खराब वित्तीय संकट से उबारा था। पी.वी. नरसिंह राव नीत सरकार में नवनियुक्त वित्त मंत्री सिंह ने यह काम बेहद बेबाकी से किया।
बजट के बाद संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों का सामना करने से लेकर संसदीय दल की बैठक में व्यापक सुधारों को पचा न पाने वाले नाराज कांग्रेस नेताओं तक....सिंह अपने फैसलों पर अडिग रहे। सिंह के ऐतिहासिक सुधारों ने न केवल भारत को दिवालियापन से बचाया, बल्कि एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में इसकी दिशा को भी पुनर्परिभाषित किया।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी' में लिखा, ‘‘ केन्द्रीय बजट प्रस्तुत होने के एक दिन बाद 25 जुलाई 1991 को सिंह बिना किसी पूर्व योजना के एक संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित हुए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके बजट का संदेश अधिकारियों की उदासीनता के कारण विकृत न हो जाए।''
इस पुस्तक में जून 1991 में राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद तेजी से आए बदलावों का जिक्र है। रमेश ने 2015 में प्रकाशित इस पुस्तक में लिखा, ‘‘ वित्त मंत्री ने अपने बजट की व्याख्या की और इसे ‘‘मानवीय बजट'' करार दिया। उन्होंने उर्वरक, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि के प्रस्तावों का बड़ी दृढ़ता से बचाव किया।''
राव के कार्यकाल के शुरुआती महीनों में रमेश उनके सहयोगी थे। कांग्रेस में असंतोष को देखते हुए राव ने एक अगस्त 1991 को कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की बैठक बुलाई और पार्टी सांसदों को ‘‘ खुलकर अपनी बात रखने'' का मौका देने का फैसला किया। रमेश ने लिखा, ‘‘ प्रधानमंत्री ने बैठक से दूरी बनाए रखी और मनमोहन सिंह को उनकी आलोचना का खुद ही सामना करने दिया।'' उन्होंने कहा कि दो-तीन अगस्त को दो और बैठकें हुईं, जिनमें राव पूरे समय मौजूद रहे।
रमेश ने लिखा, ‘‘ सीपीपी की बैठकों में वित्त मंत्री अकेले नजर आए और प्रधानमंत्री ने उनका बचाव करने या उनकी परेशानी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया।'' केवल दो सांसदों मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा ने सिंह के बजट का पूरी तरह समर्थन किया। अय्यर ने बजट का समर्थन करते हुए तर्क दिया था कि यह बजट राजीव गांधी की इस धारणा के अनुरूप है कि वित्तीय संकट को टालने के लिए क्या किया जाना चाहिए।
पार्टी के दबाव के आगे झुकते हुए सिंह ने उर्वरक की कीमतों में 40 प्रतिशत की वृद्धि को घटाकर 30 प्रतिशत करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन एलपीजी तथा पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि को यथावत रखा था। राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की चार-पांच अगस्त 1991 को दो बार बैठक हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि छह अगस्त को सिंह लोकसभा में क्या वक्तव्य देंगे।
पुस्तक के मुताबिक, ‘‘ इस बयान में इस वृद्धि को वापस लेने की बात नहीं मानी गई जिसकी मांग पिछले कुछ दिनों से की जा रही थी बल्कि इसमें छोटे तथा सीमांत किसानों के हितों की रक्षा की बात की गई।'' रमेश ने लिखा, ‘‘ दोनों पक्षों की जीत हुई।
पार्टी ने पुनर्विचार के लिए मजबूर किया, लेकिन सरकार जो चाहती थी उसके मूल सिद्धांतों... यूरिया के अलावा अन्य उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना तथा यूरिया की कीमतों में वृद्धि को बरकरार रखा गया।'' उन्होंने पुस्तक में लिखा, ‘‘ यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सर्वोत्तम रचनात्मक उदाहरण है। यह इस बात की मिसाल है कि किस प्रकार सरकार तथा पार्टी मिलकर दोनों के लिए बेहतर स्थिति बना सकते हैं।''