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ग्लोबल वार्मिंग से परेशान मालाबार गिलहरी

07:58 AM Mar 08, 2024 IST

के.पी. सिंह
मालाबार गिलहरी भारत के पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट के कुछ हिस्सों और सतपुड़ा पर्वतमाला के साथ-साथ महाराष्ट्र के कई इलाकों में खासकर नागपुर के पठारी इलाकों में विशेष रूप से पायी जाती है। यह शाकाहारी गिलहरी महाराष्ट्र राज्य का राज वन्यजीव भी है। मराठी में इसे शेकरू कहते हैं। यह बड़ी गिलहरी सफेद और भूरे बालों वाली होती है। कुछ जानकारों के मुताबिक यह पेड़ों पर रहने वाली गिलहरियों में काया के हिसाब से सबसे बड़ी गिलहरी प्रजाति है। कई बार कई जगहों पर यह कई रंगों की भी पायी जाती है। आमतौर पर इसकी लंबाई 254 मि.मी से 457 मि.मी तक होती है। यह देश की सभी गिलहरियों में सबसे बड़ी तो है ही, कुछ जानकारों के मुताबिक दुनिया की भी सबसे बड़ी गिलहरी है।
कई बार यह गिलहरी खरगोश के आकार तक की होती है। इस गिलहरी को पेड़ों में फुदकना बहुत अच्छा लगता है। महाराष्ट्र, कनार्टक, गोवा और कोंकण के वो तमाम इलाके जो पश्चिमी घाट का हिस्सा है, इस गिलहरी का मूल घर हैं। पहले ये इलाके पूरे साल हरे भरे रहते थे, क्योंकि बारिश के दिनों में बहुत बारिश होती और इतनी गर्मी नहीं पड़ती थी, जितनी की आज पड़ती है। लेकिन कुछ सालों से लगातार पश्चिम घाट फरवरी-मार्च के आते-आते बहुत गर्म होने लगते हैं और मई-जून तक इनकी सारी हरी पत्तियां गायब हो जाती है, तब दूर तक पश्चिमी घाट तपता हुआ चट्टानी इलाका बन जाता है। इस स्थिति में यहां के वन्यजीवों के लिए लगातार मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। शेकरू भी ग्लोबल वार्मिंग के चलते पश्चिमी घाट में बढ़ते तापमान से पीड़ित होने वाली एक प्रमुख वन्यजीव है।
वनस्पतियों की चिंता करने वाली कई गैर-सरकारी संस्थाएं और पर्यावरणविद‍् लगातार गुहार लगा रहे हैं कि अगर पश्चिमी घाट में ग्लोबल वार्मिंग का यह कहर जारी रहा, तो जैव विविधता की दृष्टि से दुनिया की सबसे सम्पन्न इलाकों में से एक यह इलाका तहस-नहस हो जायेगा। मालूम हो कि इस इलाके में सैकड़ों तरह के ऐसे वन्यजीव और वनस्पतियां पायी जाती हैं जो देश के दूसरे इलाकों में नहीं पायी जातीं। इसलिए यह इलाका जैव विविधता का खजाना कहा जाता है, मगर जिस तरह से लगातार ग्लोबल वार्मिंग कहर ढा रही है, उससे पश्चिमी घाट में बड़ी तेजी से यहां के दुर्लभ जीव-जंतु खत्म हो रहे हैं और वनस्पतियां हमेशा-हमेशा कि लिए मुरझा रही हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि सरकार को युद्धस्तर पर पश्चिमी घाट की जैव विविधता बरकरार रखने के लिए उपाय करने होंगे।
वास्तव में मालाबार गिलहरी के लिए जहां एक तरफ कुदरत ने परेशानियां खड़ी कर दी हैं और ग्लोबल वार्मिंग तमाम वन्यजीवों के लिए धीमी कयामत बनकर आयी है, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय लोग भी अब इन गिलहरियों का चोरी-छुपे शिकार कर रहे हैं और इन्हें खा रहे हैं। एक तो पश्चिमी घाट के इन इलाकों में लगातार मानव हस्तक्षेप बढ़ रहा है, जंगलों की कटाई और स्थानीय स्तर पर खेतीबाड़ी करने की कोशिश से यहां के वन्यजीवों के लिए रहने की जगह कम हो रही है, वहीं दूसरी तरफ इन इलाकों में लगातार ऐसे तस्करों की भी आवक बढ़ी है जो इन गिलहरियों को पकड़ करके चीन और दूसरे देशों के लिए तस्करी करते हैं। पिछले कुछ दशकों में बड़ी तेजी से ऐसे वन्यजीवों को खाकर चीन और वैश्विक देशों में लोग अपनी पौरुष शक्ति बढ़ा रहे हैं। तो कहना चाहिए कि मालाबार गिलहरियां जहां एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग से परेशान हैं, वहीं दूसरी तरफ लोगांे की जीभ का स्वाद और पौरुष शक्ति का लालच भी उन पर कहर बनकर टूटा है।
इ.रि.सें.

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