For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

सुरंग निर्माण में सुरक्षा मानकों का पालन बने यकीनी

06:21 AM Nov 30, 2023 IST
सुरंग निर्माण में सुरक्षा मानकों का पालन बने यकीनी
Advertisement

ज्ञानेन्द्र रावत

Advertisement

उत्तराखंड में चार धाम सड़क परियोजना के तहत बन रही सिलक्यारा सुरंग के हादसे ने सुरंगों की सुरक्षा को लेकर तमाम सवाल खड़े कर दिये हैं। इस हादसे में 400 घंटे जिंदगी की जंग लड़ते रहे 41 श्रमिकों की सकुशल निकासी के लिए देश की 15 से अधिक एजेंसियों के 650 से ज्यादा बचाव कर्मियों का दिन-रात परिश्रम प्रशंसनीय है वहीं राज्य के मुख्यमंत्री द्वारा एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित कर निभाई गयी भूमिका भी सराहनीय है।
इस हादसे में सत्रह दिन सुरंग में फंसे रहने और जिंदगी और मौत के बीच झूलते 8 राज्यों के श्रमिक बाहर आकर खुली हवा में सांस ले सके। दरअसल, यह सुरंग हादसा देश-दुनिया का ऐसा मामला रहा जो दुनियाभर के मीडिया की सुर्खियों में रहा। पूरी दुनिया ने सुरंग में फंसे इन मजदूरों की सकुशल वापसी की प्रार्थनाएं कीं। दीगर है कि इस बचाव अभियान में पहली बार पांच विकल्पों पर काम किया गया और आरवीएनएल, टीएचडीसी, ओएनजीसी, एनआईडीसीएल और सतलुज जल विद्युत निगम ने मुख्य सुरंग के समानांतर अलग-अलग राहत सुरंगों को बनाने का काम किया। यही नहीं, इस अभियान में काम आने वाले उपकरणों को लाने के लिए भारतीय वायु सेना के विमानों ने रात-दिन उड़ानें भरीं। इस अभियान में इंटरनेशनल टनल आर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष अर्नोल्ड डिक्स का सहयोग भी सराहनीय रहा है।
बहरहाल, यह हादसा सुरंग निर्माण में लगे योजनाकारों के लिए सबसे बड़ा सबक है। देश में अब जमीन की कमी के मद्देनजर सुरंग निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है। मैदानी इलाकों में ही नहीं, अब तो देश के हिमालयी राज्यों में सड़क, रेल व जल विद्युत परियोजनाओं के लिए सुरंगों का जाल बिछाया जा रहा है। यही नहीं, हाइड्रो टनल, मेट्रो टनल, रोड टनल, भूमिगत बिजली घर, पेट्रोलियम, रक्षा मंत्रालयों के भंडार, सीवेज प्रबंधन, पार्किंग और परमाणु संयंत्रों में व परमाणु युद्ध से बचाव के लिए भी सुरंगों का उपयोग हो रहा है।
विकास की गति को देखते हुए सुरंग निर्माण योजनाओं को रोका तो नहीं जा सकता लेकिन सुरंग निर्माण में अनुभवी विशेषज्ञों का निर्देशन और सुरक्षा प्रावधानों का सख्ती से पालन किया जाना बहुत जरूरी है। देश में ज्यादातर योजनाओं में सुरंग निर्माण के कार्यों की जिम्मेदारी सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों की निगरानी में स्वतंत्र रूप से निभाई जा रही है। अक्सर ये संस्थान पेशेवर तरीकों को न अपनाकर अपने फायदे के मद्देनजर शॉर्टकट अपनाते हैं। उसी का नतीजा ऐसे हादसों का सबब बनता है।
सुरंग निर्माण विशेषज्ञ और कोंकण रेलवे के पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर विनोद कुमार का कहना है कि सुरंग निर्माण परियोजनाओं को देखते हुए अब एक ऐसा संस्थान बनाया जाना जरूरी हो गया है जो निर्माणाधीन सुरंग प्रोजेक्ट्स का हर साल तकनीकी ऑडिट करे। तभी हम हादसों को रोक पायेंगे। भारत में सुरंग निर्माण की सभी अत्याधुनिक तकनीक और विशेषज्ञता मौजूद है। जहां तक सिलक्यारा सुरंग हादसे का सवाल है, ऐसी स्थिति में मलबा बाहर निकालने से संकट और बढ़ जाता है। ऐसे हालात में बचाव एजेंसियां हड़बड़ाहट में यही रास्ता अपनाती हैं। इस बारे में सरकार को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए।
सभी सुरंग विशेषज्ञ सुरंग निर्माण में अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप कार्यों को अंजाम देने पर बल देते हैं। इन मानकों के मुताबिक, तीन किलोमीटर से अधिक लम्बी सुरंग पर एस्केप पैसेज होना लाजिमी है जो हर 375 मीटर पर मुख्य सुरंग से जुड़ी होनी चाहिए ताकि आपात स्थिति में सुरंग के अंदर फंसे लोगों को सावधानीपूर्वक बाहर निकाला जा सके। इससे सुरंग निर्माण के समय और बाद में भी किसी खतरे की संभावना नहीं रहती है।
उत्तराखण्ड मेट्रो रेल कार्पोरेशन के डायरेक्टर प्रोजेक्ट एण्ड प्लानिंग ब्रजेश कुमार की मानें तो जियो टैक्नीकल इन्वेस्टिगेशन सुरंग निर्माण में सबसे अहम होती है जो गारंटी है कि सुरंग की खुदाई के बाद वह कितने समय तक टिकी रह सकती है। वहीं सुरंग निर्माण के समय यदि मलबा-मिट्टी आ जाये या फिर पानी रिसना शुरू हो जाये तो यह खतरे का संकेत है। अक्सर दुर्गम इलाकों में अनुभवी इंजीनियर नहीं मिल पाते। यह भी कि सुरंग निर्माण में निर्माणकर्ता एजेंसी का ट्रैक रिकार्ड अहम होता है। सुरंग निर्माण में आयी चुनौतियों का बाईपास समाधान ऐसे संकट को बढ़ा देता है। हादसों के लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन न किया जाना इसका सबसे बड़ा कारण है। सेफ्टी ऑडिट टीम की मंजूरी के बिना काम आगे नहीं बढ़ाना चाहिए।
हकीकत यह है कि निर्माण एजेंसी जल्दबाजी में उन नियमों को अनदेखा करती है जो ऐसे संकट का कारण बनते हैं। अधिकारियों में दृढ़ता बेहद जरूरी है। असलियत में सिलक्यारा हादसा यह चेतावनी है कि तय सुरक्षा मानकों से खिलवाड़ खतरनाक है। इसलिए तय सेफ्टी प्रोटोकॉल का पालन बेहद जरूरी है।
हिमालयी राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं का नये प्रकार का दौर शुरू हुआ है। अंधाधुंध विकास के प्रति भी विशेषज्ञ व पर्यावरणविद‍् चेता रहे हैं। पर्यावरणविद पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि हिमालय से पूरा देश जुड़ा है। दूसरे राज्यों को भी इसकी चिंता करनी चाहिए। सरकारों को भी सजग होना होगा। यदि जलवायु परिवर्तन और बदली परिस्थितियों में हिमालय की अनदेखी हुई तो पहाड़ को दरकते देर नहीं लगेगी। असल में, हिमालय जिन संकटों से जूझ रहा है, उन्हें देश के व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement