महाकुम्भ : डुबकी लगाने वालों का आंकड़ा हुआ 10 करोड़ पार
महाकुम्भ नगर, 23 जनवरी (एजेंसी)
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुम्भ में अब तक 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा चुके हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के बयान के अनुसार, 10 करोड़ श्रद्धालुओं के डुबकी लगाने का यह आंकड़ा बृहस्पतिवार दोपहर 12 बजे पार हो गया। सरकार ने इस बात पर प्रकाश डाला कि श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, प्रतिदिन संगम में डुबकी लगाने और आध्यात्मिक पुण्य के लिए लाखों लोग पहुंच रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का अनुमान है कि इस बार महाकुम्भ में 45 करोड़ से अधिक लोग डुबकी लगाएंगे। बयान में कहा गया, ‘अकेले बृहस्पतिवार को ही दोपहर 12 बजे तक 30 लाख लोगों ने त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई जिसमें 10 लाख कल्पवासी और विदेश से आए श्रद्धालु तथा साधु-संत शामिल हैं।’ सबसे अधिक करीब 3.5 करोड़ श्रद्धालुओं ने मकर संक्रांति के दौरान डुबकी लगाई, जबकि पौष पूर्णिमा के दौरान 1.7 करोड़ से अधिक लोगों ने स्नान किया।
महाकुंभ में हिंदू आचार संहिता जारी करने की तैयारी
महाकुंभ नगर (हरिमंगल) : प्रयागराज महाकुंभ में जिन तमाम मुद्दों पर मंथन चल रहा है उनमें सबसे चर्चित बिंदुओं में हिंदू आचार संहिता भी शामिल है। देश भर के धर्माचार्योंए धार्मिक संस्थाओं से विचार-विमर्श के बाद काशी विद्वत परिषद के विद्वानों द्वारा हिंदू आचार संहिता तैयार की गयी है। इस आचार संहिता को इसी महाकुंभ में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये श्रद्वालुओं के समक्ष लोकार्पित किया जाएगा और उनसे आग्रह किया जाएगा कि सनातन धर्म की रक्षा के लिये इस पर गंभीरता से मंथन कर आत्मसात करें। इसी बीच काशी विद्वत परिषद द्वारा तैयार हिन्दू आचार संहिता को लागू किये जाने की तैयारी की गयी है। इसमें कुल 246 पेज हैं। अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेन्द्रानन्द सरस्वती ने बताया कि हिन्दू समाज की समस्याओं और उनके समाधान को लेकर 2000 वर्ष पहले नैमिशारण में संतों की विशाल बैठक होती थी। वह परम्परा बंद हो जाने से हिंदू समाज की समस्याएं बिना किसी समाधान के आगे बढ़ती गयी जो आज समाज में आयी गिरावट से साफ देखा जा सकता है। कहा जाता है कि इस आचार संहिता के लिये पूर्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक केएस सुदर्शन और विश्व हिंदू परिषद के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे स्व. अशोक सिंघल ने एक बार संतों के बीच मंथन कर प्रक्रिया शुरू कराई थी, लेकिन वह मुहिम परवान नहीं चढ़ सकी।