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मद्महेश्वर मंदिर जहां पांडवों को मिली मोक्ष की राह

08:10 AM Apr 15, 2024 IST
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सत्यव्रत बेंजवाल
प्रत्येक वर्ष की भांति ‘केदारनाथ’ धाम की यात्रा लाखों शैव भक्त करते हैं। केदारनाथ का शिव मंदिर शीतकाल में कपाट बंद होने के उपरान्त वैदिक मंत्रोच्चार से अक्षय तृतीया (10 मई) को खुलता है। भगवान ‘केदार’ को ‘पंचकेदार’ के रूप में भी दर्शन करने का वर्णन ‘स्कन्द पुराण’ के केदारखंड में वर्णित है। ‘पंचकेदार’ में प्रथम केदारनाथ भगवान, द्वितीय केदार मद्महेश्वर, तृतीय केदार तुंगनाथ, चतुर्थ केदार रुद्रनाथ और पंचम केदार कल्पेश्वर हैं।
‘स्कंद पुराण’ में पंचकेदार की कथानुसार महाभारत युद्ध में पांडवों द्वारा भ्रातृहत्या पाप से मुक्ति हेतु भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु शिव के पीछे हिमालय (उत्तराखंड) पहुंचे। भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदारनाथ में बस गये। पांडव भी उनके पीछे-पीछे केदारनाथ पहुंच गए। उनको आते देख भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर पशुओं के बीच चले गए। युधिष्ठिर के कहने पर भीम‌ ने विराट रूप धारण कर दो पहाड़ों पर अपना पैर रखकर खड़े हो गए। सभी पशु भीम के नीचे से निकल गए किन्तु तभी भीम ने बैल रूपी भगवान शिव की पीठ पकड़ ली, पांडवों की श्रद्धा को जान भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर पापमुक्त किया। पांडवों ने यहां पर मंदिर का निर्माण किया, जिसमें आज भी बैल के पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजित है।
पंचकेदारों में द्वितीय केदार ‘मद्महेश्वर’ में बैल की नाभी रूपी शिवलिंग के रूप में शिव के मध्यभाग के दर्शन के कारण यहां का नाम मद्महेश्वर पड़ा। तृतीय केदार तुंगनाथ में भुजाएं, मुख रुद्रनाथ जटाएं कल्पेश्वर में स्थित मंदिर है। यह सभी मंदिर उत्तराखंड में स्थित रुद्रप्रयाग जनपद में स्थित है। यहां पर महादेव का शक्तिपुंज मौजूद है। पंचकेदार में प्रथम ‘केदारनाथ’ मंदिर 12वें ज्योतिर्लिंग के रूप में भी जाना जाता है तथा यह वो धाम है जहां युगों-युगों से लोग कर्मफल से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं।
मद्महेश्वर मंदिर लगभग 12000 फीट की ऊंचाई पर चौखंभा हिमालय की तलहटी में स्थित है। यहां पर भी शैव पुजारी हैं। पौराणिक कथानुसार शिव-पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि यहीं बिताई थी। यहां का जल इतना पवित्र है कि कुछ बूंदें ही मोक्ष के लिए पर्याप्त हैं। यहां भी शीतकाल में छह माह के लिए मंदिर कपाट बंद हो जाते हैं। यहां पहुंचने के लिए उत्तराखंड के रुद्रप्र‌याग से मंदाकिनी नदी के साथ-साथ केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग से उखीमठ तथा उनियाणा गांव पहुंचकर रांसी गौंडार से करीब 10 किमी की चढ़ाई पार कर मद्महेश्वर मंदिर पहुंचा जाता है। पंचकेदारों के द्वितीय केदार-मद्महेश्वर के बारे में केदारखंड के अध्याय 48 में लिखा गया कि इस शिव क्षेत्र के दर्शन मात्र से मनुष्य सारे पाप दूर होते हैं :-
मध्यमहेश्वर महात्म्यं सोपाख्यानं मया तव।
सर्वपाप हरं पुण्यं कथित‌म्शिवभक्तिदम‍्।
मंदिर छत्र शिखर शैली में बना है, जिसका शीर्ष काष्ठ निर्मित है।

बूढ़ा मद्महेश्वर

भगवान मद्महेश्वर धाम से लगभग दो कि.मी. की ऊंची चोटी पर भगवान बूढ़ा मद्महेश्वर का धाम (मंदिर) है। किंवदंतियों अनुसार बूढ़ा मद्महेश्वर की पूजा-अर्चना अत्यंत आवश्यक है तथा यहां की यात्रा तभी सफल बताई जाती है, जब यहां के दर्शन भी किए जाएं। बताया जाता है कि महादेव यहां पर जाग्रत रूप में विराजमान रहते हैं। बूढ़ा मद्महेश्वर भी 6 माह से अधिक समय तक बर्फ से ढका रहता है। मद्महेश्वर मंदिर जाने का सबसे सही समय के मई-जून के मध्य रहता है। मंदिर सर्दियों में नवंबर से अप्रैल माह तक बंद रहता है।
पंचकेदारों के मंदिरों के निर्माण के बाद पांडवों ने मोक्ष के लिए केदारनाथ में ध्यान किया, यज्ञ किया और फिर महापंथ (स्वर्गारोहिणी) नामक स्वर्गीय मार्ग से मोक्ष प्राप्त किया।
पुराना, ‘बूढ़ा मद्महेश्वर’ मंदिर एक छोटा-सा मंदिर है। वर्तमान मंदिर में, गर्भगृह में काले पत्थर से बना ‘नाभि’ के आकार का शिवलिंग स्थापित है। दो अन्य छोटे मंदिर हैं एक शिव की पत्नी पार्वती, दूसरा अर्द्धनारीश्वर का। माना जाता है कि भीम ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मुख्य मंदिर के दाईं ओर एक छोटा मंदिर और है, जिसके गर्भगृह में संगमरमर से बनी देवी सरस्वती स्थापित हैं।

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शीतऋतु में उखीमठ में पूजा

मंदिर परिसर के पानी को अति पवित्र माना जाता है। शीतकाल के दौरान बर्फ की चादर बिछ जाने पर निरंतर पूजा के लिए भगवान की प्रतीकात्मक मूर्ति को धार्मिक परंपराओं के साथ उखीमठ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। यहां पुजारी दक्षिण भारत से हैं। उन्हें वीर शैव के जंगमा कहा जाता है जो कर्नाटक राज्य के मैसूर से आते हैं। मंदिर के चारों ओर हिमालय की पूरी मनोरम शृंखला एवं सुदूरवर्ती बर्फ से आच्छादित चौखम्बा, केदारनाद, नीलकंठ त्रिभुवन, काफेट, पंचुल्ली आदि मनोरम चोटियां हैं।
किंवदंतियों के अनुसार जो व्यक्ति भक्ति भाव से मद्महेश्वर की यात्रा करता है या यहां के जल को ग्रहण-स्नान करता है उन्हें शिवलोक की प्राप्ति होती है।

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