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छोटी हास्य भूमिकाओं से बनाया मुरीद

08:08 AM Sep 16, 2023 IST
छोटी हास्य भूमिकाओं से बनाया मुरीद
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प्रदीप सरदाना

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बरसों तक अपने अभिनय से दर्शकों को हास्य की खूबसूरत दुनिया में ले जाने वाले अभिनेता बीरबल अब नहीं रहे। गत 12 सितंबर शाम को उनके निधन का समाचार मिला तो उनके साथ बिताए कितने ही हसीन पल याद आने लगे। साथ ही याद आने लगीं वे फिल्में जिनमें छोटी भूमिकाओं के बावजूद भी बीरबल अपनी ऐसी छाप छोड़ते थे कि बड़े से बड़े अभिनेता भी उनके मुरीद हो जाते थे।

खुश मिजाज और सक्रिय

पंजाब के गुरदासपुर में 29 अक्तूबर 1938 को जन्मे बीरबल का असली नाम सत्येन्द्र कुमार खोसला था। यदि अभी वह कुछ दिन और रहते तो अगले महीने अपना 85 वां जन्मदिन मना रहे होते। हालांकि अपनी इस उम्र में भी बीरबल इतने खुश मिजाज और सक्रिय थे कि कुछ न कुछ काम करते ही रहते थे। कुछ समय पहले ही उनकी फिल्म ’10 नहीं 40’ प्रदर्शित हुई थी। इसके लिए भी वह जब दिल्ली आए तो उनसे काफी बातें हुईं थीं।

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जेहन में बसने वाली शख्सियत

हालांकि उन्हें पिछले कुछ समय से घुटनों में दर्द के कारण चलने में थोड़ी दिक्कत होती थी। लेकिन वह इस बात से खुश थे कि उन्हें आज भी लोग भूले नहीं हैं। उन्हें फिल्मों, टीवी और मंच पर भी काम मिलता रहता है। जब कुछ समय पहले फेविकोल ने उन्हें अपनी विज्ञापन फिल्म में लिया तब तो कई दिग्गज अभिनेता दंग रह गए। विज्ञापन की इस आधुनिक, भव्य और विशाल दुनिया में सैकड़ों कलाकारों को छोड़कर बीरबल को लिया गया।

ढेरों फिल्मों में भूमिकाएं

बीरबल ने अपने 60 बरसों के फिल्म कैरियर में करीब 600 फिल्मों में काम किया। हिन्दी के साथ उन्होंने पंजाबी, गुजराती, मराठी, बांग्ला, तमिल, राजस्थानी और भोजपुरी फिल्मों में भी अपने अभिनय के रंग दिखाये। बड़ी बात यह रही कि बीरबल ने अपने दौर के सभी फ़िल्मकारों, सभी नायकों और सभी नायिकाओं के साथ काम किया। चाहे वह देव आनंद, राज कपूर और दिलीप कुमार हों। या फिर शशि कपूर, शम्मी कपूर, ऋषि कपूर और मनोज कुमार, धर्मेंद्र, जीतेंद्र, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन। कुछ निर्माता तो अपनी सभी फिल्मों में बीरबल को लेते ही थे। हालांकि अपनी यह जगह बनाने के लिए बीरबल को काफी संघर्ष करना पड़ा।

शिक्षा लाहौर से जालंधर तक

बीरबल यानि सत्येन्द्र खोसला के पिता यूं जालंधर के रहने वाले थे। लेकिन उनका परिवार पहले गुरदासपुर और फिर दिल्ली आकर बस गया था। सत्येन्द्र की स्कूली पढ़ाई गुरदासपुर, लाहौर और दिल्ली में हुई। लेकिन बीए इन्होंने जालंधर, पंजाब विश्वविद्यालय से की। असल में अविभाजित भारत में इनके पिता की लाहौर में प्रिंटिंग प्रेस थी। लेकिन देश विभाजन के बाद दिल्ली आने पर उन्होंने वह प्रेस सदर बाज़ार में शुरू कर दी।

किशोर कुमार के प्रशंसक

सत्येंद्र अपने तीन भाइयों और दो बहनों में सबसे बड़े थे। इसलिए पिता चाहते थे कि उनका बड़ा बेटा उनके प्रेस व्यवसाय में साथ जुड़कर उनका हाथ बंटाए। लेकिन सत्येन्द्र को 18 बरस की उम्र में पढ़ाई के दौरान अभिनय और किशोर कुमार के गीत गाने का ऐसा शौक चढ़ा कि उन्हें लगा उनकी ज़िंदगी सिनेमा ही है। उस दौर में किशोर की ‘फंटूश’ देखने के बाद तो वह किशोर कुमार के इतने जबर्दस्त प्रशंसक बन गए कि दिन रात किशोर के ही गीत गाते रहते थे। लेकिन पिता इनके इस शौक को लेकर बेहद खफा थे। वह कहते थे कि तुम्हारी न ऐसी शक्ल सूरत है न कुछ और कि तुम हीरो बन सको।

‘दो बदन’ से डेब्यू

पिता की नाराजगी देख सत्येन्द्र ने दिल्ली में प्रेस का काम देखना शुरू कर दिया। लेकिन वह प्रिंटिंग का ऑर्डर लेने के बहाने फरवरी 1963 में मुंबई निकल गए। वहां उन्होंने प्रेस के लिए ऑर्डर तो क्या लिए, फिल्म स्टूडियो के चक्कर लगाने शुरू कर दिये। बड़ी मुश्किल से ‘राजा’ जैसी फिल्म में एक-दो दृश्य का मौका मिला। लेकिन पहला अच्छा मौका 1966 में राज खोसला की फिल्म ‘दो बदन’ से मिला। जिसमें कॉलेज के एक मूर्ख छात्र की भूमिका थी। अपनी उस भूमिका में वह ऐसे जमे कि कितनी ही फिल्मों में उन्हें ऐसी भूमिका मिलने लगी।

छात्र की सदाबहार भूमिका

दिलचस्प यह है कि 1960 के दशक में वह सुनील दत्त के साथ कॉलेज स्टूडेंट बनकर आए तो 1980 के दशक में वह संजय दत्त के साथ भी कॉलेज स्टूडेंट की भूमिका में आए। जिससे वह करीब 20 बरस तक कॉलेज स्टूडेंट बनकर आते रहे।

सत्येंद्र से बीरबल बनने की बात

जहां तक उनके सत्येंद्र से बीरबल बनने की बात है तो यह नाम उन्हें राज खोसला और मनोज कुमार की फिल्म ‘अनीता’ की शूटिंग के दौरान मिला। राज खोसला का कहना था- सत्येन्द्र नाम तो हीरो वाला है –जीतेंद्र, धर्मेन्द्र। तुम कोई कॉमेडी टच वाला नाम रखो। तब सत्येन्द्र ने उन्हें बीरबल सुझाया तो मनोज कुमार को यह पसंद आया।

फिल्मों की लंबी सूची

बीरबल की फिल्मों की लंबी सूची में बूंद जो बन गयी मोती, मेरा साया, दो रास्ते, बॉम्बे टू गोवा, अमीर गरीब, कटी पतंग, इश्क इश्क इश्क, रोटी कपड़ा और मकान, मेरा गांव मेरा देश, लूटमार, देस परदेस, क्रान्ति, रॉकी, संतोष, क्लर्क, धर्मकांटा और शोले जैसे अनेक नाम हैं। अपनी फिल्मों के साथ मंच पर भी वह अंत तक किशोर कुमार के गीत गाकर धूम मचाते रहे। अभिनेता ओमप्रकाश, देव आनंद और किशोर कुमार की मिमिकरी भी वह इतने अच्छे ढंग से करते थे कि जब इन तीनों ने स्वयं बीरबल की यह कला देखी तो वह भी हैरान रह गए।

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