साइलेंट किलर है ल्यूपस, महिलाएं ज्यादा शिकार — जागरूकता ही बचाव का रास्ता
चंडीगढ़, 9 मई
ल्यूपसएक ऐसा रोग है जो धीरे-धीरे शरीर को अंदर से प्रभावित करता है, लेकिन इसके लक्षण इतने सामान्य और भ्रमित करने वाले होते हैं कि मरीज को वर्षों तक सही निदान नहीं मिल पाता। इस बीमारी से खासकर महिलाएं प्रभावित होती हैं, और जागरूकता की कमी के कारण यह और खतरनाक हो जाती है।
मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, गुरुग्राम के क्लिनिकल डायरेक्टर (रुमेटोलॉजी) डॉ. इंद्रजीत अग्रवाल बताते हैं कि ल्यूपस शरीर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन समय रहते पहचान और इलाज से स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “ल्यूपस शरीर को चुनौती देता है, लेकिन जागरूकता मरीज को सशक्त बनाती है।”
क्या होता है ल्यूपस?
ल्यूपस एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की इम्यून सिस्टम स्वस्थ ऊतकों को ही शत्रु समझ कर उन पर हमला करने लगती है। इसका असर त्वचा, जोड़ों, किडनी, फेफड़े, हृदय और दिमाग तक पर पड़ सकता है। हर मरीज में इसके लक्षण अलग होते हैं, जिससे पहचान और निदान कठिन हो जाता है।
‘ग्रेट इमिटेटर’ क्यों कहा जाता है?
ल्यूपस को चिकित्सा जगत में “The Great Imitator” कहा जाता है, क्योंकि इसके लक्षण दूसरी बीमारियों जैसे थायरॉइड, संक्रमण, आर्थराइटिस या कैंसर से मिलते-जुलते हैं। इसलिए कई मरीज सही इलाज तक पहुंचने से पहले कई साल तक भटकते रहते हैं।
किसे हो सकता है जोखिम?
महिलाओं में यह रोग पुरुषों की तुलना में नौ गुना अधिक देखा गया है।
खासकर 15 से 45 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाएं ज्यादा प्रभावित होती हैं।
आनुवंशिकता, हार्मोनल बदलाव और पर्यावरणीय कारक (जैसे धूप या संक्रमण) जोखिम को बढ़ाते हैं।
ये लक्षण नजर आएं तो सावधान हो जाएं:
अत्यधिक थकान जो आराम से ठीक न हो
बिना कारण बुखार
जोड़ों में दर्द, सूजन
चेहरे पर तितली के आकार का लाल चकत्ता
बालों का झड़ना
धूप से एलर्जी
बार-बार मुंह में छाले
सीने में दर्द या सांस में तकलीफ
पैरों में सूजन या आंखों के नीचे फूलेपन की शिकायत
दौरे (मिर्गी), याददाश्त में कमी, मूड में बदलाव
निदान कैसे होता है?
ल्यूपस की कोई एक जांच नहीं होती। डॉक्टर मरीज के लक्षण, मेडिकल इतिहास और ब्लड टेस्ट (जैसे ANA, Anti-dsDNA, Anti-Sm) के आधार पर इसकी पुष्टि करते हैं। कुछ मामलों में स्किन या किडनी की बायोप्सी की जरूरत भी पड़ सकती है।
इलाज क्या है?
ल्यूपस का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए दवाएं और जीवनशैली में बदलाव बेहद जरूरी हैं।
प्रमुख उपचार में शामिल हैं:
NSAIDs: जोड़ों के दर्द में राहत
कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स: सूजन को कम करने के लिए
इम्यूनोसप्रेसिव दवाएं: गंभीर मामलों में
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन: त्वचा व जोड़ों के लक्षणों में उपयोगी
बायोलॉजिक्स (जैसे बेलिमुमैब): जब अन्य दवाएं प्रभावी न हों
जीवनशैली में बदलाव:
धूप से बचाव
ट्रिगर से बचाव
नियमित जांच और फॉलोअप
मानसिक व भावनात्मक सहयो
डॉ. अग्रवाल कहते हैं कि ल्यूपस ‘अदृश्य बीमारी’ है। कई बार मरीज को समाज से सहानुभूति नहीं मिलती, क्योंकि उसके लक्षण दिखते नहीं। जागरूकता अभियान, सही जानकारी और समय पर रुमेटोलॉजिस्ट को रेफरल से मरीज की ज़िंदगी बचाई जा सकती है।