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सुनहरे भाले की चमक से दमकी किस्मत

12:15 PM Aug 13, 2021 IST

पानीपत के पानी का दुनिया को दम दिखाने वाला नीरज चोपड़ा जब से टोक्यो ओलंपिक से सोने का मेडल लेकर आया है, पूरे देश में उसकी बल्ले-बल्ले हुई है। देश के लोगों ने पलक-पांवड़े बिछाकर उसका स्वागत किया है। लक्ष्मी तो जमकर बरस रही है। सरकारें दिल खोलकर इनाम दे रही हैं। कॉरपोरेट जगत ने तो लाल कालीन ही बिछा दिया है। निस्संदेह, उसका कारनामा है ही इतना बड़ा। ओलंपिक में भारतीय भागीदारी के सौ सालों में पहली बार कोई खिलाड़ी एथलेटिक्स में सोने का तमगा लाया है। फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह और उड़नपरी पीटी उषा जिस पदक के लिये सेकेंडों के अंतर से चूके थे, उस फिसलते पदक को नीरज ने जकड़ लिया। अपनी फुर्तीली चाल व लंबे बालों की वजह से जिस नीरज को ‘मोगली’ कहा जाता रहा है, उसने लंबी स्वर्णिम छलांग लगा ही दी। खेल के दौरान कभी जिसकी कलाई टूटी हो और दो साल पहले कंधे की सर्जरी हुई हो, वह खिलाड़ी पूरी दुनिया के खिलाड़ियों को पछाड़ कर सोने का मेडल ले आये, तो वाहवाही तो बनती है।

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पक्की बात है नीरज का नाम भारतीय खेलों के इतिहास में सोने के अक्षरों में दर्ज हुआ है। टोक्यो ओलंपिक में जैवलिन थ्रो यानी भाला फेंक में भारत के लिए इकलौता सोने का पदक नीरज चोपड़ा ही लाये। सुखद है कि जिन खेलों का आगाज मीराबाई चानू की चांदी से हुआ, उसका समापन नीरज के सोने से हुआ। यानी अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के सोने-चांदी के दिन लौटे हैं। नीरज को इस बात का भी श्रेय है कि उसकाे पदक मिलते ही देश ने ओलंपिक के इतिहास में सबसे ज्यादा पदक का आंकड़ा भी छू लिया। क्वॉलिफिकेशन राउंड में अपने वर्ग में सबसे लंबी दूरी भाले से तय करके ही नीरज ने भारतीयों में पदक की भूख जगा दी थी।

ओलंपिक मुकाबले में 87.58 मीटर जैवलिन थ्रो फेंककर नीरज ने भारत की झोली में सोने का तमगा डाला। हालांकि, यह तेईस साल का गबरू जवान इस साल हुई इंडियन ग्रां प्री-3 में 88.07 मीटर भाला फेंककर अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ चुका था। इससे पहले जून में पुर्तगाल के लिस्बन शहर में हुए अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट में नीरज ने सोने का पदक जीता था जो अंजू बॉबी जॉर्ज के बाद दुनिया की किसी बड़ी एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाला दूसरा भारतीय एथलीट था।

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पानीपत के एक छोटे से गांव से जीवन की शुरुआत करने वाले नीरज ने कभी नहीं सोचा था कि वह दुनिया का नंबर एक भाला फेंकने वाला बनेगा। वह लड़कपन से बेफिक्र व मस्त रहने वाला था। भारी-भरकम शरीर वाला नीरज हाथी जैसी मस्त चाल चलता था। कुर्ता-पायजामा पहने अस्सी किलो वजनी नीरज को मित्रमंडली सरपंच जी कहकर संबोधित करती थी। फिर फिटनेस की फिक्र हुई। तब पानीपत के स्टेडियम जाने का सिलसिला शुरू हुआ। पहले वॉलीबाल खेलना शुरू किया। बाद में दोस्तों के कहने पर जैवलिन थ्रो में हाथ आजमाया। खेल में जुनून पैदा हुआ तो बेहतर सुविधाओं के लिये पंचकूला जाना बेहतर समझा। धीरे-धीरे देश के चोटी के खिलाड़ियों से सीखने को मिला और प्रतिस्पर्धा भी शुरू हई। अच्छी सुविधाएं मिलने लगीं। अच्छी गुणवत्ता वाला जैवलिन रास आने लगा। भाले की धार की मार दूर तक होने लगी। साल 2016 आते-आते पता चलने लगा कि भारत के एथलेक्टिस के आकाश में एक ध्रुव तारे का उदय होने वाला है। दरअसल, इसी साल नीरज ने पोलैंड में अंडर ट्वेंटी वर्ग में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में सोने का तमगा जीता।

फिर तो नीरज ने मुड़कर नहीं देखा। वैश्विक स्पर्धाओं में उसके खेल की चर्चा होने लगी। गोल्ड कोस्ट में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में जैवलिन थ्रो में उसने गोल्ड मेडल जीता। साल 2018 के एशियाई खेलों में 88 मीटर जैवलिन थ्रो कर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाते हुए सोने का पदक जीता। फिर जिस बात का डर हर उदीयमान खिलाड़ी को होता है, नीरज को भी कंधे की चोट का शिकार होना पड़ा। उनके खेल की गति थम-सी गई। कई टूर्नामेंट खेल नहीं पाये। सर्जरी के बाद कई माह खेल को विराम देना पड़ा। फिर पूरी दुनिया को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया तो अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाएं भी बाधित हुईं। शायद कुदरत ने नीरज को इस चोट से उबरने और नयी ऊर्जा देने के लिये यह समय दिया। इससे पहले 2012 में बॉस्केटबॉल खेलते वक्त नीरज कलाई तुड़वा बैठे थे। तब भी नीरज आशंकित थे कि मेरे भविष्य पर इसकी छाया न पड़े। लेकिन नीरज न केवल बिल्कुल ठीक हुए बल्कि आज भारत की झोली में यह सोने का तमगा भी डाल दिया।

दरअसल, नीरज की कामयाबी में उन्हें मिली सुविधाओं का भी योगदान है। उन्हें विदेशी कोच मिले। बायोमैकेनिकल विशेषज्ञ मिले। दूर तक भाला फेंकने की सामर्थ्य बढ़ाने वाली जर्मनी की महंगी मशीनें उपलब्ध हुईं। किसी खिलाड़ी को स्वर्णिम लक्ष्य के लिये तपस्या से गुजरना पड़ता है। नीरज को जब लगा कि अंतर्राष्ट्रीय एथलेटिक्स स्पर्धाओं में मुकाबले की ताकत जुटाने के लिये मांसाहारी होना पड़ेगा तो उन्होंने शाकाहार को तिलांजलि दे दी। बहरहाल, नीरज निजी जिंदगी में मस्त रहते हैं। भाले के अलावा नीरज को बाइक चलाने का भी शौक है, बब्बू मान के गाने पसंद हैं और हरियाणवी रागनियां दिल को झंकृत करती हैं। वे कहते हैं, ‘मैं सोने का मेडल जेब में लेकर टोक्यों में घूमता रहा, ये पूरे इंडिया का है।’ अब नीरज की नजर 2024 के ओलंपिक पर है।

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किस्मतसुनहरे