प्रेम भक्ति ईश्वर प्राप्ति का सरलतम मार्ग : माता सुदीक्षा
विनोद लाहोट/निस
समालखा, 17 नवंबर
संत निरंकारी मिशन द्वारा समालखा स्थित संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल पर आयोजित किए जा रहे 77वें वार्षिक निरंकारी संत समागम में आस्था का भारी सैलाब उमड़ा है। संत समागम का द्वितीय दिन सेवादल को समर्पित रहा। रविवार को सेवादल द्वारा विशाल एवं भव्य सेवादल रैली का आयोजन किया गया। इस आकर्षक रैली में देश एवं दूर-देशों से आए हुए सेवादल के भाई एवं बहनों ने भाग लिया और मिशन की शिक्षाओं एवं आध्यात्मिकता पर आधारित लघु नाटिकायें प्रस्तुत की गईं। इस अवसर पर शारीरिक व्यायाम, खेलों एवं विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति द्वारा प्रमुखता से निःस्वार्थ सेवा भाव को अभिव्यक्त किया गया।
इस मौके पर सद्गुरु माता सुदीक्षा ने सेवादल रैली में ध्वजारोहण किया ओर उपस्थित श्रद्धालुओं को सेवा, समर्पण और विनम्रता का दिव्य संदेश देते हुए कहा कि सेवा का भाव न केवल पवित्र है अपितु यह जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और अनुशासन का सुंदर प्रतीक है। उन्होंने सेवादारों का मनोबल बढ़ाते हुए कहा कि सेवादल की वर्दी को केवल बाहरी आवरण न मानकर इसे अपने भीतर के अहंकार को मिटाने और सेवा-भाव को जागृत करने का माध्यम समझना है। सेवादल के सदस्य अपनी ड्यूटी निभाने के साथ-साथ घर-परिवार की जिम्मेदारियों का सामंजस्य करते हुए भी सेवा को निभाते है। यही तालमेल एक आदर्श जीवन का उत्तम उदाहरण है। मंगलकारी प्रवचनों की रसधारा प्रवाहित करते हुए सद्गुरु माता ने अपने दिव्य संदेश में कहा कि संसार में विचरण करते हुए जब हम अपने सीमित दायरे से सोचते हैं तो केवल कुछ ही लोगों से रूबरू हो पाते हैं, किन्तु ब्रह्मज्ञान की दिव्य रोशनी से जब हम इस परमपिता परमात्मा संग जुड़ते है तब हम सही अर्थों में सभी से प्रेम करने लगते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेम भक्ति ईश्वर प्राप्ति का सरलतम मार्ग है। भक्ति की परिभाषा को एक नया दृष्टिकोण देते हुए सद्गुरु माता ने कहा कि यदि जीवन के हर क्षण को भक्ति में बदल दिया जाए, तो अलग से पूजा का समय निकालने की आवश्यकता ही नहीं रहती। यही विचारधारा जब व्यापक रूप ले लेती है तो सबके प्रति निस्वार्थ सेवा और प्रेम की भावना को जाग्रत करती है। आपने संतों के संग और ध्यान (सुमिरण) को आत्मा की गहराई से जोड़ने का सरल माध्यम बताया।
सद्गुरु माता ने उदाहरण स्वरूप समुद्र की गहराई और शांति को सहनशीलता और विनम्रता का सुंदर प्रतीक बताया। जिस प्रकार समुद्र अपने अंदर सब कुछ समेटे हुए होता है फिर भी शांत अवस्था में रहता है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी अपने भीतर सहिष्णुता और विशालता विकसित करनी चाहिए।
सेवादल रैली के दौरान प्रस्तुत नाटकों और संदेशों ने यह दर्शाया कि सेवा केवल कार्य नहीं अपितु यह एक दिव्य भावना है जो हमारे आचरण और शरीर की भाषा में झलकनी चाहिए। अंत में सद्गुरु माता ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि प्रत्येक सदस्य में सेवा, सुमिरण और सत्संग का जज्बा निरंतर बढ़ता रहे और हमस ब अपने जीवन को निरंकार के प्रति समर्पित करते हुए समाज में अनुकरणीय योगदान दें।