कहानी में मोड़ देने को पर्दे पर खूब बिखरे रंग
हेमंत पाल
फिल्मों के कथानक का त्योहारों से कुछ ख़ास ही रिश्ता है। ऐसी कई फ़िल्में हैं, जिनमें त्योहारों को आधार बनाकर कथानक रचे गए। ऐसे मामलों में सबसे ज्यादा उपयोग हुआ होली का। इसलिए कि होली ऐसा त्योहार है जिसका प्रसंग आने के बाद कथानक में ट्विस्ट लाना आसान होता है। याद किया जाए तो जिस भी फिल्म में होली दृश्य या गीत दिखाई दिए, उनमें अचानक कहानी में बदलाव दिखाई दिया। होली और सिनेमा का रिश्ता बहुत गहरा है। होली भले ही रंगों का त्योहार है, पर ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के जमाने से यह परदे पर छाई रही। फिल्म की कहानी में ट्विस्ट लाने के लिए निर्देशक को जब भी किसी मौके की जरूरत होती है सबसे आसान होता है, किसी त्योहार का प्रसंग लाकर कहानी का प्लॉट बदला जाए। ‘जख्मी’ से लेकर ‘शोले’ और ‘सिलसिला’ तक को याद किया जा सकता है, जिनमें होली गीत के बाद एकदम कहानी का ट्रैक बदला था।
फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से शुरू हुए होली दृश्य
ऐसी कई फ़िल्में हैं, जिनके कथानक में होली एक महत्वपूर्ण कड़ी बनी। कभी होली ने प्यार के रिश्ते को मजबूत किया तो कभी हुड़दंग दुश्मनी का कारण बना। सिनेमा में जब भी होली दिखाई गई, कथानक में मोड़ जरूर आया। फिल्म इतिहास में संभवतः 1944 में पहली बार अमिय चक्रवर्ती ने दिलीप कुमार के साथ ‘ज्वार भाटा’ में होली दृश्य फिल्माया था। उसके बाद फिल्मों में होली दिखाने का चलन शुरू हुआ। यह श्वेत-श्याम फिल्मों का दौर था। जब होली दृश्य दर्शकों को लुभाने लगे, तो इन्हें कथानक में शामिल करने की होड़ लग गई। ‘मदर इंडिया’ में शमशाद बेगम का गाया ‘होली आई रे कन्हाई’ अभी भी सुना जाता है। वी शांताराम ने फिल्म ‘नवरंग’ में भी होली गीत ‘चल जा रे हट नटखट’ रखा जो महिपाल और संध्या पर फिल्माया गया। 70 के दशक की फिल्मों में होली के कुछ अच्छे दृश्य पर्दे पर दिखे। राजेश खन्ना पर ‘कटी पतंग’ में फिल्माया गाना ‘आज न छोड़ेंगे हम हमजोली’ निर्देशक ने उस सामाजिक बंधन को तोड़ने के लिए रखा था, जिसमें एक विधवा को समाज रंगों से बेदखल कर देता है।
आज होली खेलेंगे साजन...
होली गीतों का जिक्र हो तो सबसे पहले आता है 1940 में आई फिल्म ‘औरत’ का गाना। निर्देशक महबूब खान की इस फिल्म में अनिल बिस्वास के संगीतबद्ध गाने ‘आज होली खेलेंगे साजन के संग’ और ‘जमुना तट श्याम खेले होरी’ हिंदी सिनेमा के पहले होली गीत माने जाते हैं। बाद में महबूब खान ने इस फिल्म की कहानी को ‘मदर इंडिया’ नाम से बनाया। इसमें भी होली का सदाबहार गाना ‘होली आई रे कन्हाई रंग छलके, बजा दे जरा बांसुरी’ था। उसके बाद गीता दत्त का गाया ‘जोगन’ के गीत ‘डारो रे रंग डारो रे रसिया’ सुपरहिट होली गीत बना। श्वेत श्याम फिल्मों के दौर में भी होली के गाने दर्शकों को भाते थे।
होली के दिन दिल खिल जाते हैं...
भले परदे पर रंग नजर न आते हों, लेकिन इन गीतों का जादू ऐसा होता था कि लोगों को परदे पर रंग-बिरंगी होली का ही अहसास होता था। देश में बनी पहली टेक्नीकलर फिल्म ‘आन’ में दिलीप कुमार की अदाकारी के अलावा इस फिल्म के गाने ‘खेलो रंग हमारे संग’ ने लोगों पर खूब जादू किया। फिर तो होली के गानों का सिलसिला ही चल निकला। रमेश सिप्पी की ‘शोले’ में धर्मेंद्र और हेमा मालिनी की छेड़छाड़ वाला गाना ‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं’ हर होली पर सुनाई देता है। 70 और 80 के दशक की फिल्मों में होली के गाने खूब बजे। इस दौरान बने सुपरहिट होली गीतों में ‘षड्यंत्र’ का गाना होली आई रे.., ‘कामचोर’ का गाना ‘मल दे गुलाल मोहे’ और फिल्म ‘बागबान’ का गाना ‘होली खेले रघुवीरा ..’ कालजयी गीत बने। लेकिन, सबसे ज्यादा हिट हुआ फिल्म ‘सिलसिला’ का अमिताभ की आवाज का गाना ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली रंग बरसे।’
ट्रैक बदलने के लिए भी पिरोये होली प्रसंग
फिल्मकारों को जब भी मस्ती गीत की जरूरत महसूस हुई में कथानक में होली प्रसंग से जुड़ा गीत पिरो दिया गया। सिनेमा के शुरुआती समय में जब फ़िल्में श्वेत-श्याम थीं, तब भी होली प्रसंग फिल्माए और पसंद किए गए। देखा जाए तो अभी तक ‘होली’ नाम से भी एक फिल्म बनी और दूसरी फिल्म ‘होली आई रे’ नाम से बनी। ‘फागुन’ शीर्षक से भी दो फिल्में बनी। 1967 में ‘भक्त प्रहलाद’ फिल्म बनी जिसमें होली का धार्मिक आधार बताया गया था। फ़िल्मी कथानक को जटिल हालात से निकालने या ट्रैक बदलने के लिए भी होली दृश्यों का इस्तेमाल किया गया। यश चोपड़ा ने अपनी फिल्मों में बार-बार होली दृश्यों का उपयोग किया। साल 1981 में आई ‘सिलसिला’ के गीत ‘रंग बरसे भीगे चुनर वाली’ गीत को उलझन वाली स्थिति से निकालने के लिए ही लिखा गया। इस होली गीत ने ही अमिताभ और रेखा को घुटन से निकलने का मौका दिया। ‘रंग बरसे...’ गाते अमिताभ भांग के नशे में इतना मस्त जाते हैं कि संजीव कुमार और जया भादुड़ी की मौजूदगी भुला देते हैं। इससे फिल्म की कहानी ही बदल जाती है। साल 1984 में आई फिल्म ‘मशाल’ में ‘होली आई होली आई..’ में अनिल कपूर और रति अग्निहोत्री के प्रेम का रंग निखारा गया। साथ ही दिलीप कुमार और वहीदा के बीच मौन संवाद पेश किया। ऐसा ही दृश्य यश चोपड़ा की ही फिल्म ‘डर’ में भी था। होली प्रसंग शाहरुख को जूही चावला से नजदीकी का मौका देता है। ‘मोहब्बतें’ में यश चोपड़ा ने ‘सोहनी सोहनी अंखियों वाली’ से जोड़ियों के बीच होली सीक्वेंस फ़िल्माया। राजकुमार संतोषी ने भी ‘दामिनी’ में होली को कहानी का मुख्य आधार बनाकर दिखाया।
‘शोले’ में होली के सीन के बाद आया मोड़
‘शोले’ में गब्बर सिंह के डकैतों की गैंग के हमले से अनजान गांव वाले होली पर झूमते नजर आते हैं। डाकुओं से जय और वीरू का पहली बार सामना भी यहीं होता है। फिल्म ‘जख्मी’ में सुनील दत्त होली पर डफली बजाते हुए दुश्मनों को चुनौती देते हैं। बासु चटर्जी की फिल्म ‘दिल्लगी’ में धर्मेन्द्र होली गीत गाते हुए हेमा मालिनी को रिझाते हैं। ‘आखिर क्यों’ में राजेश खन्ना और स्मिता पाटिल का होली गीत रिश्तों में नई पेचीदगी खड़ी कर देता है। ऐसी बहुत सी फिल्में हैं, जिनमें या तो गीतों के सहारे या फिर किसी भी अच्छी-बुरी घटना को अंजाम देने के लिए होली दृश्य दिखाए गए। फिल्म ‘मोहब्बतें’ में होस्टल के सभी लड़के अपनी प्रेमिकाओं के साथ गुरुकुल से निकालकर होली मनाने में सफल होते हैं। इसके अलावा भी कई ऐसी फ़िल्में हैं जिसमें होली दृश्यों के बाद कथानक अचानक बदला। फागुन, मदर इंडिया, वक़्त, जख्मी, कटी पतंग, बागबान, दीवाना, मंगल पांडे, दिल्ली हाइट्स जिनमें होली बतौर त्योहार ही नहीं फिल्मायी, बल्कि कथानक का हिस्सा बनी।
बरसों बाद आया ‘बलम पिचकारी जो तूने...’
‘कोहिनूर’ का गीत ‘तन रंग लो जी आज मन रंग लो’ भी पसंद किया गया था। ‘गोदान’ में भी एक होली गीत फिल्माया गया था। ‘आखिर क्यों’ का गीत ‘सात रंग में खेल रही है दिलवालों की टोली रे’ और ‘कामचोर’ के गीत ‘मल दे गुलाल मोहे’ के जरिये कहानी को आगे बढ़ाया गया। फिल्मों में होली का क्रेज पिछले दशक तक रहा। दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर की फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ का गाना ‘बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी’ खूब हिट हुआ। इसके बाद ‘वॉर’ में रितिक रोशन और टाइगर श्रॉफ जरूर एक होली गीत में धूम मचाते दिखे थे। लेकिन, फिर कोई ऐसा होली गीत सुनाई नहीं दिया, जो कि जुबान पर चढ़ा हो।