छोटी-छोटी खुशियों की तलाश
रश्मि खरबंदा
कहा जाता है कि आप एक व्यक्ति को देश से बाहर ले जा सकते हैं, पर देश को व्यक्ति के दिल से नहीं बाहर कर सकते। अपनी मिट्टी से दूर व्यक्ति अपनी संस्कृति के अंश सहेज कर रखता है। साथ ही नई परंपराओं का स्वागत करता है। कवयित्री डॉ. सुरीति रघुनंदन की काव्यकृति ‘पानी के पिंजरे’ उनकी मातृभूमि भारत और कर्मभूमि मॉरीशस की विलक्षणता दर्शाती है।
संग्रह में प्रारंभिक कविताएं मॉरीशस की प्राकृतिक सुंदरता, जीवनशैली और कर्मठता को बयां करती हैं। इनमें ‘लघु-भारत’ के तत्वों का उल्लेख भी है जो इन दो देशों की साझा-संस्कृति को उजागर करते हैं। अपने देश से दूर होने की टीस ‘मेरे वतन’ और ‘माटी की खुशबू’ में नज़र आती है। शीषर्क कृति ‘पानी के पिंजरे’ प्रवासी मन की पीड़ा को शब्द प्रदान करती हुई कहती है :-
बरसों से नहीं बढ़ पाए/ वतन की ओर कदम।/ भारत की चर्चा पर ठहरते/ ठिठक कर हरदम।
कवयित्री की जन्मस्थली आगरा का अक्स ‘आगरा-सी’ में झलकता है। कविता ‘ताजमहल’ में एक अनुपम विचार प्रस्तुत है, जिसमें इस प्रेम-प्रतीक इमारत के गमगीन अहसासों को पीछे छोड़ने की आस है। इसी प्रकार की प्रेम-रस से सदाबहार हैं कविताएं ‘मान लो’, ‘भूल-भुलैया’, ‘संबंध, ‘राधा-सी’ एवं ‘हौसले बड़े’। इस दौर के ऑनलाइन प्यार पर आधारित है ‘संदेश’ जो तकनीक की अल्पकालिकता को प्रेम के स्थायित्व का व्यतिरेक करती है। तकनीक के कई और नुकसान साझा करती हैं कविताएं ‘फेसबुक’ और ‘मोबाइल’।
किताब में मां-पिता पर गमगीन कर देने वाली रचनाएं हैं और साथ ही जीवन के कुछ कटु सत्य भी हैं। इन सबके बावजूद, कवयित्री आगे बढ़ते रहने का संदेश देती है। ‘बसंत’, ‘रंगोली’, ‘होली’ जैसी कविताएं जीवन की कठोरता में मिठास घोलने और भागती ज़िदगी में छोटी-छोटी खुशियां ढूंढ़ने का साहस हैं।
पुस्तक : पानी के पिंजरे लेखिका : डॉ. सुरीति रघुनंदन प्रकाशक : आधारशिला पब्लिशिंग हाउस, चंडीगढ़ पृष्ठ : 95 मूल्य : रु. 350.