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लो जी फिर आ गया मौसम स्मॉग का

06:36 AM Nov 09, 2024 IST
लो जी फिर आ गया मौसम स्मॉग का
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सहीराम

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‘लो आया प्यार का मौसम’ की तर्ज पर अब यह गाना भी गाया जा सकता है कि ‘लो आया स्मॉग का मौसम’। हमारी ऋतुओं में अब स्मॉग को नयी ऋतु के रूप में शामिल कर लिया जाना चाहिए। अगर ऋतु छह होती हैं तो स्मॉग को सातवीं ऋतु के रूप में मान्यता दे देनी चाहिए। हालांकि, यह पता नहीं कि सात ऋतुएं होती कौन-सी हैं, वैसे ही जैसे यह पता नहीं होता कि इंद्रधनुष में सात रंग होते कौन से हैं। जैसे दुनिया के सात अजूबों की बात करते हुए लोग कई बार किसी आठवें अजूबे की भी बात करने लगते हैं।
वैसे ही स्मॉग को सातवीं ऋतु के रूप में मान्यता दे देनी चाहिए। बस फर्क यही है आठवां अजूबा वक्त-जरूरत के मुताबिक, मौके- मुकाम के मुताबिक और व्यक्तिगत पसंद के मुताबिक बदलता रहता है। लेकिन स्मॉग को सातवें मौसम के रूप में सभी से मान्यता मिल सकती है। कम से कम एनसीआर की पब्लिक से और राजनीतिक पार्टियों से तो अवश्य ही मिल सकती है। अलबत्ता यह जरूर हो सकता है कि राजनीतिक पार्टियां अपने फायदे के मुताबिक स्मॉग के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में लग जाएं, पर स्मॉग के मौसम से कोई इंकार नहीं करेगा।
जैसे सर्दी के आने की आहट सुबह-शाम की हल्की ठंडक से मिलने लगती है, वैसे ही दिल्ली- एनसीआर में स्मॉग के आने की आहट तब मिलने लगती है, जब सुबह के सूरज पर धुएं की हल्की-सी चादर तनने लगती है, आंखें जलने लगती हैं, गले में खराश होने लगती है, छीकें आने लगती हैं और नाक बहने लगती है। जब ज्ञानीजन और पर्यावरण प्रेमी किसानों को पराली जलाने के लिए गलियाने लगें और जब नासा के अंतरिक्ष से लिए गए चित्र पराली के फैलते और दिल्ली-एनसीआर को अपने आगोश में लेते धुएं की इमेज दिखाने लगें तो समझ जाइए कि स्मॉग का मौसम आ लिया है। हालांकि, सबसे ज्यादा शोर इसी मौसम के आने का मचता है बिल्कुल भेड़िया आया, भेड़िया आया वाले अंदाज में। सर्दी आने या गर्मी आने का इतना शोर कभी नहीं मचता। और वसंत ऋतु या पतझड़ के मौसम के आने जाने का खैर किसी को पता ही नहीं चलता।
खैर जी, जब जमना मैया सफेद बादलों भरे आकाश का-सा दृश्य पैदा करने लगे, जब विशेषज्ञ यह शोर मचाने लगे कि जमना के पानी में अमोनिया की मात्रा बढ़ गयी है, तब समझ जाइए कि स्मॉग का मौसम आ गया है। ऐसे में जमना में डुबकी लगाने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए नहीं तो हालत उन नेताजी जैसी हो सकती है जिन्होंने राजनीति साधने के लिए जमनाजी में डुबकी लगायी, जिससे स्किन प्रॉब्लम हो गयी और फिर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। दिवाली के पटाखों की तो खैर बात ही क्या करनी।

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