लघु कथाओं में जीवन के लंबे अनुभव
सरस्वती रमेश
वरिष्ठ लेखक गोविंद शर्मा का लघुकथाओं का संग्रह ‘ठू्ंठ’ हाल ही में छप कर आया है। इसकी कथाएं चंद शब्दों में जीवन भर के लम्बे अनुभवों को कहती हैं। कथाओं का सार हमारी चेतना को झकझोरने का काम करता है। हमारे हृदय पर पड़ी संवेदनहीनता की मोटी परत को खुरचता है।
अपनी कथाओं के माध्यम से लेखक ने समाज की विसंगतियों पर करारा प्रहार किया है। लघुकथा ‘बराबरी’ में पोती के जन्म से दुखी मां को बेटे ने समझाया- ‘आजकल बेटा-बेटी बराबर होते हैं।’ तब मां ने प्रश्न किया- ‘यह बात तब क्यों भूल गया था जब तुम्हारे पिता की संपत्ति का बंटवारा हुआ था।’ बेटे के पास अब कोई उत्तर नहीं था। इस कथा के जरिये लेखक ने हमारे समाज की दोगली सोच पर करारा तमाचा जड़ा है।
‘घुसपैठ’ के जरिये लेखक ने विकास पर तंज कसा है। दरअसल, शहर घूमकर लौटे बंदर ने अपने साथी बंदरों को खबर दिया कि जल्द ही उनके जंगल उजाड़ घर बनेंगे। तब एक बूढ़ा बंदर बोला- दिन-ब-दिन आदमी की घुसपैठ बढ़ती जा रही है। इस पर शहर से लौटे बंदर ने कहा- नहीं चाचा, घुसपैठ कहने से आदमी नाराज हो जाएगा। वह इसे विकास कहता है।
लेखक ने कथाओं में विकास का भयावह चेहरा, भूख की पीड़ा, प्रेम, विश्वास, प्रकृति, जीवन, सामाजिक आडंबर, बेकारी की समस्या- सभी पर कलम चलाई है। दोगले लोगों की खबर ली है। सच्चे लोगों को सराहा है।
विविधताओं से भरी ये कथाएं जीवन के लगभग हर आयाम से पाठकों को रूबरू करवाती हैं।
पुस्तक : ठूंठ लेखक : गोविंद शर्मा प्रकाशक : साहित्यागार प्रकाशन, जयपुर पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 225.