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लोकनायक का चिंतन मौजूदा दौर में भी प्रासंगिक

05:26 AM Oct 11, 2024 IST
लोकनायक का चिंतन मौजूदा दौर में भी प्रासंगिक
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डॉ. रामजीलाल

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लोकनायक जयप्रकाश नारायण का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन तथा स्वतंत्र भारत के इतिहास में खास स्थान है वहीं समाजवादी विचारक होने के नाते भी उनका योगदान विशेष है। दरअसल, प्रमुख समाजवादी नेताओंं में शामिल जयप्रकाश नारायण की भूमिका अद्वितीय है।
बिहार के एक गांव सिताब दियारा में 11 अक्तूबर 1902 को जन्मे जयप्रकाश नारायण ने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ग्रहण की और मैट्रिक एवं इंटर की पढ़ाई पटना में की। महात्मा गांधी के प्रभाव के कारण उन्होंने पढ़ाई का परित्याग करके असहयोग आंदोलन में भाग लिया। फिर साल 1922-1929 तक अमेरिका में उच्चतर शिक्षा ग्रहण की। अमेरिका में रहते हुए उन्होंने कार्ल मार्क्स, लेनिन तथा भारतीय साम्यवादी चिंतक एमएन राय के विचारों का गहन अध्ययन किया और वे साम्यवादी बन गए।
जयप्रकाश नारायण का विचार था कि राष्ट्रीय राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक समानता न्याय एवं गरिमापूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है। परंतु पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) में साम्यवादी पार्टी की तानाशाही, भारतीय साम्यवादी दल के दृष्टिकोण तथा भारतीय परिस्थितियों के कारण जयप्रकाश कट्टर साम्यवादी नहीं बन सके। इसमें गांधीजी का प्रभाव भी एक वजह थी। राष्ट्रीयता की भावना के कारण वे साम्यवाद से विमुख हो गए।
वर्ष 1929 में अमेरिका से भारत वापस लौटे तो जवाहरलाल नेहरू के निमंत्रण पर कांग्रेस पार्टी में सम्मिलित हो गए। वे इलाहाबाद स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पार्टी की श्रमिक गतिविधियों का संचालन करने लगे। वर्ष 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। उन्हें गिरफ्तार करके एक वर्ष कठोर कारावास का दंड दिया गया। इस दौरान नासिक जेल में उनकी मुलाकात तत्कालीन युवा समाजवादियों-अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, मीनू मसानी से हुई। इसी के चलते वर्ष 1934 में जेल से रिहा होने के बाद कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना में जयप्रकाश नारायण की भूमिका अति महत्वपूर्ण रही। उन्हें इस पार्टी का संस्थापक महासचिव बनाया गया। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का लक्ष्य शोषणमुक्त समाज की स्थापना करना था। इन्होंने आर्थिक-सामाजिक पुनर्निर्माण के सिद्धांत का समर्थन किया तथा पूंजीवाद, उदारवाद का विरोध किया।
भारत में साम्राज्यवादी शासन को समाप्त करने के लिए जयप्रकाश नारायण ने अहिंसात्मक, हिंसात्मक एवं क्रांतिकारी साधनों के प्रयोग पर बल दिया। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण अपने 5 साथियों सहित हजारीबाग जेल से भागने में सफल हो गए। ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन को समाप्त करने के लिए इन्होंने ‘भूमिगत गोरिल्ला आंदोलन’ चलाने के लिए आजाद दस्तों की स्थापना की। इसी क्रम में जयप्रकाश नारायण को 18 सितंबर, 1943 को लाहौर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया और केंद्रीय जेल लाहौर में 50 दिन तक अमानवीय यातनाएं सहीं। अप्रैल, 1946 में जेल से रिहा होने के पश्चात जयप्रकाश नारायण ने ‘जन क्रांति के सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया।
जयप्रकाश नारायण त्याग की मूर्ति थे। उन्होंने स्वतंत्र भारत में कोई भी सरकारी पद ग्रहण नहीं किया। वर्ष 1954 में जयप्रकाश नारायण राजनीति का त्याग करके सर्वोदय आंदोलन में सम्मिलित हो गए। साल 1974 तक जयप्रकाश नारायण सर्वोदयवादी रहे। परंतु राजनीति एवं समाज में व्यापक स्तर पर फैले भ्रष्टाचार, गरीबी, एवं सत्ता संघर्ष की राजनीति के बोलबाले के कारण जयप्रकाश नारायण पुनः सक्रिय राजनीति में लौट आए और यूथ फॉर डेमोक्रेसी संस्था स्थापित करके छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया।
पांच जून, 1974 को पटना में एक विशाल जनसमूह को संबोधित करते हुए उन्होंने संपूर्ण क्रांति के सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे विद्यार्थियों के साथ-साथ भारत के विपक्षी दलों का भी समर्थन प्राप्त था। संपूर्ण क्रांति को कुचलने के लिए इंदिरा गांधी की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा 25 जून 1975 की मध्यरात्रि आपातकाल की घोषणा की गई। आंतरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई जिनमें जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, जॉर्ज फ़र्नांडिस, घनश्याम तिवाड़ी, लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। हजारों लोगों को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया, प्रेस पर प्रतिबंध लगा दिए और नागरिक अधिकार निलंबित कर दिये। आपातकाल 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 यानी 21 महीने तक लागू रहा। 18 जनवरी, 1977 को राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा भंग कर दी गई और छठी लोकसभा के लिए 16-20 मार्च तक चुनाव हुए। राष्ट्रपति ने 23 मार्च को आपातकाल समाप्त करने की घोषणा कर दी। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की सीटें 350 से घटकर 153 रह गई। इंदिरा गांधी सहित कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव हार गये।
जयप्रकाश नारायण के प्रयासों से नव निर्मित जनता पार्टी के विभिन्न घटकों में संतुलन स्थापित हुआ और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। जयप्रकाश नारायण लोकनायक व सम्राट निर्माता बन गए। आजादी के लगभग तीस वर्ष बाद केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। भारतीय राजनीति में यह युगांतरकारी मोड़ था। 8 अक्तूबर, 1979 को खराब स्वास्थ्य के कारण जयप्रकाश नारायण स्वर्ग सिधार गए।आर्थिक असमानता, महंगाई, बेरोजगारी एवं सरकारों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग की चुनौतियों के चलते लोकनायक जयप्रकाश नारायण के चिंतन की प्रासंगिकता आज भी है।

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